Hazaribagh: होली को लेकर लोगों में उत्साह चरम सीमा पर है। होली में रंग गुलाल का बाजार सजा है। दूसरी ओर हजारीबाग में बूट-झंगरी का बाजार भी सजा है। हजारीबाग में सदियों से मान्यता चली आ रही है कि होलिका दहन के दिन लोग बूट-झंगरी जलते हैं। अगले दिन सुबह प्रसाद के रूप में लेने के साथ ही होली बनाई जाती है।
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Hazaribagh: होलिका दहन के बाद नए साल की शुरुआत
हिंदुओं के सबसे बड़ा त्योहार होली का खास महत्व है। होलिका दहन के बाद नए साल की शुरुआत होती है। ऐसे में कुछ परंपरा भी है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। उनमें से एक है होलिका दहन के दौरान बूट-झंगरी, जिसे चना भी कहा जाता है, उसे जलाने की। हजारीबाग में शायद ही ऐसा कोई चौक चौराहा हो, जहां किसान चना बेचते नजर न आए।
हजारीबाग में चने को स्थानीय भाषा में लोग बूट-झंगरी भी कहते हैं। होलिका दहन के समय चना आग में डालने की परंपरा है। इसके बाद सुबह होली शुरू होने के पहले परिवार के लोग प्रसाद स्वरूप उस चने को खाते हैं। कहा जाए तो पहला निवाला नया साल का होता है।
Hazaribagh: बूट-झंगरी का लगा बाजार
हजारीबाग में बूट-झंगरी का बाजार लगता है। किसान दूर दराज से बाजार पहुंचते हैं और अपनी दुकान लगाते हैं। हजारीबाग के लोग भी जमकर खरीदारी करते हैं। हजारीबाग के हर एक परिवार के घर हरा चना की खरीदारी होती है। किसान का उत्पाद भी खूब बिकता है। भारत अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिए पूरे देश भर में जाना जाता है, जो इसे अलग पहचान पूरे विश्व में देती है।
शशांक शेखर की रिपोर्ट