कितनी कठिन है डगर पनघट की? राष्ट्रपति चुनाव के लिए बिछायी जाने लगी है शतरंज की बिसात

कितनी कठिन है डगर पनघट की?

Ranchiकितनी कठिन है डगर पनघट की-देश के 17वें राष्ट्रपति का चुनाव जुलाई महीने में होना तय है. इसको लेकर पक्ष और विपक्ष के बीच राजनीतिक शतरंज की बिसात बिछ चुकी है.

हालांकि ज़्यादातर राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि चार राज्यों में विधानसभा चुनाव में जीत के बाद भाजपा को अपने उम्मीदवार को जिताने में ज़्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी.  लेकिन क्या वास्तव में ऐसा ही है या विपक्ष कोई ऐसी चाल चलने की जुगत में है जो भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ा सकती है.

राष्ट्रपति चुनाव में बहुमत के लिए किसी प्रत्याशी को 5 लाख 46 हजार 320 मत हासिल करना ज़रूरी होता है. बीजेपी के पास अपने 4 लाख 65 हजार 797 वोटों के साथ सहयोगी दलों के 71 हजार 329 वोट हैं.

यानी कुल मिलाकर एनडीए के पास 5 लाख 37 हजार 126 वोट हैं जो बहुमत से सिर्फ 9 हजार 194 वोट कम हैं। ये कमी BJD या YSR कांग्रेस आसानी से पूरी कर सकते हैं। लेकिन उड़ीसा के मुख्यमंत्री और BJD नेता नवीन पटनायक ने ये कह कर कि उनकी पार्टी राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार देखकर फैसला करेगी, BJP नेतृत्व की धड़कने बढ़ा दी हैं.

विपक्ष की कोशिश एनडीए फोल्डर से अपना उम्मीदवार देकर सत्ता समीकरण को बिगाड़ने की होगी 

इस परिस्थिति में विपक्ष की पूरी कोशिश होगी कि वो एक ऐसा उम्मीदवार तलाशे जो NDA फोल्डर का हो.

इससे उसे सबसे बड़ा फायदा तो ये है कि NDA जो अभी बहुमत से महज 9 हजार 194 वोट वोट पीछे है,

उसका घाटा और बढ़ जाएगा और ऐसे में BJP को अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए नए सहयोगियों की तलाश करनी होगी.

यहाँ सवाल उठता है कि NDA के दलों में से वो दल और वो व्यक्ति कौन हो सकता है जो विपक्ष की योजना

में फिट बैठता हों और जिनकी स्वीकार्यता सभी विपक्षी दलों के बीच हो.

तेजस्वी से नीतीश की गलबहियों का क्या है राजनीतिक निहितार्थ

राजनीति को गहराई से समझने वालों की मानें तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वो चेहरा हो सकते हैं.

शायद यही वजह है कि इफ़्तार पार्टियों के अवसर पर तेजस्वी यादव से

उनकी मुलाकात के राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं.

इसके अलावा उन्होंने कुछ मुद्दों पर BJP से अलग स्टैंड लेकर भी राजनीतिक कयासबाज़ियों को हवा दी है.

लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि इन मुद्दों पर उनका स्टैंड हमेशा से ही अलग रहा है.

क्या नीतीश कुमार विपक्षी खेमे से राष्ट्रपति पद के साक्षा उम्मीवार होंगे

तो क्या नीतीश कुमार विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होंगे?  फ़िलवक्त नीतीश इस तरह की

किसी भी संभावना से इंकार कर रहे हैं, लेकिन राजनीति में कई बार ‘नहीं’ का मतलब ‘नहीं’ ही नहीं होता.

वैसे भी भाजपा उन्हें अधिक से अधिक उपराष्ट्रपति बनने का ऑफर दे सकती है.,

या वो बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में काम करते रह सकते हैं,  जबकि विपक्ष उन्हें

इससे कहीं ज़्यादा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का ऑफर दे सकता है.

Wait and Watch की मुद्रा में है नीतीश, परिस्थितियों का कर रहें है आकलन 

लेकिन ये भी सच है कि नीतीश कुमार माहिर राजनीतिज्ञ हैं और वो कोई भी निर्णय लेने से पहले पूरी तरह

से आश्वस्त होना चाहेंगें. इसलिए फ़िलहाल वो Wait and Watch की मुद्रा में हैं.

इन परिस्थितियों में भाजपा क्या कर सकती है?  निश्चित तौर पर वो एक ऐसे उम्मीदवार की तलाश

करेगी जो नए सहयोगियों को जोड़ने और पुराने सहयोगियों को बनाए रखने में मददगार हो.

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को सामने रख कर दक्षिण की पार्टियों पर साधा जा सकता है निशाना 

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ऐसे उम्मीदवार हो सकते हैं. उनके राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने से दक्षिण भारत

की राजनीतिक पार्टियों को साधा जा सकता है.

इसके अलावा देश की कुछ अन्य राजनीतिक पार्टियों बीच भी वो स्वीकार्य हो सकते हैं.

अब देखना ये है कि भाजपा नेतृत्व और विपक्ष कितने सधे हुए तरीक़े से राष्ट्रपति चुनाव के लिए

अपनी गोटियां सेट करते हैं.  इन परिस्थितियों में हो सकता है कि इस बार का राष्ट्रपति चुनाव देश में नए

राजनीतिक समीकरण की पृष्ठभूमि तैयार करे.

राजनीतिक विश्लेषण:- राकेश रंजन कटरियार

गोवा : रुझान में किसी भी पार्टी को नहीं मिला बहुमत

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