कानपुर : CM Yogi का अहम संदेश – राष्ट्र के लिए चुनौती बनने वाले को एक ओर करना पड़ेगा। यूपी के CM Yogi आदित्यनाथ ने रविवार को कानपुर में अहम संदेश दिया।
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CM Yogi ने कहा – ‘जो राष्ट्र के लिए चुनौती बन रहा है, तो उसे एक ओर करना पड़ेगा।…चाहे वह कोई भी मत, मजहब या उपासना विधि हो। …आज मनुष्य का मनुष्य बना रहना सबसे बड़ी चुनौती है। इसके लिए संस्थानों को अपने विद्यार्थियों को ज्ञानवान तथा शीलवान बनाना पड़ेगा।
…उनके सामने वह लक्ष्य रखना पड़ेगा, जो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने देशवासियों के सामने रखा है। हमारा व्यक्तिगत स्वार्थ कोई मायने नहीं रखता। हम सभी के सामने राष्ट्र धर्म का लक्ष्य होना चाहिए’।
CM Yogi बोले – राष्ट्र धर्म को सर्वोपरि मानना पड़ेगा…
कानपुर नगर में रविवार को रामा विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश के तृतीय दीक्षान्त समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर CM Yogi अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
CM Yogi ने कहा कि – ‘राष्ट्र धर्म को सर्वोपरि मानना पड़ेगा। यदि हम राष्ट्र धर्म को सर्वोपरि मानकर कार्य करेंगे तो भारत को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक पाएगा। …पूरे विश्व का ध्रुवीकरण आज भारत के इर्द-गिर्द होने जा रहा है।
…यदि आप अगले 10 वर्षों की यात्रा को देखेंगे तो यह यात्रा शानदार तरीके से आगे बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। इस शानदार यात्रा के लिए आपको स्वयं को तैयार करना होगा’।

CM Yogi – मंदिर जाने वाले और न जाने वाले दोनों ही सनातनी…
इसी क्रम में CM Yogi आदित्यनाथ ने आगे कहा कि – ‘मुख्यमंत्री जी ने कहा कि कोई भी सनातन धर्मावलम्बी यह नहीं कह सकता है कि वह तभी हिन्दू है, जब मंदिर जाएगा। जो मंदिर जाता है तथा जो नहीं जाता है, दोनों सनातनी हैं। हिन्दू होने के लिए वेदों को मानना, न मानना शास्त्रों में विश्वास करना, न करना आवश्यक परिस्थितियां नहीं है।
…भारत में किसी भी ऋषि ने यह कभी नहीं कहा कि जो मैं कह रहा हूं वह सत्य है। ऋषियां ने कहा कि देश और समाज के लिए जो अच्छा हो उसका आचरण करके आगे बढ़ना चाहिए। हमारी भारतीय परम्परा ने धर्म की बहुत संक्षिप्त व्याख्या की है। जो इस जीवन में सांसारिक उत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त करे तथा जिसके माध्यम से परलोक के लिए भी मार्ग प्रशस्त हो, वही धर्म है।
…इसीलिए कर्तव्य, सदाचार और नैतिक मूल्यों के प्रवाह को ही धर्म माना गया है। धर्म की यह व्याख्या दुनिया में कहीं भी अंगीकार नहीं की गई है। भारत में वैदिक धर्म को न मानने वाले चार्वाक को भी ऋषि माना गया। यहां वेदों की व्यवस्था पर विश्वास न करने वाले बुद्ध को एक अवतार के रूप में मान्यता प्रदान की गई। हम लोग इस महान परम्परा के वारिस हैं’।
CM Yogi ने कहा – ऋषियों ने धर्म को उपासना विधि को एक ईष्ट या ग्रंथ तक सीमित नहीं किया
CM Yogi आदित्यनाथ ने कहा कि – ‘…धर्म का अर्थ बहुत विराट होता है। दुनिया में भारत के ऋषियों ने ही धर्म के वास्तविक अर्थ को समझा है। ऋषियों ने धर्म को उपासना विधि तथा किसी एक ईष्ट या ग्रंथ तक सीमित नहीं किया।
…आज भी प्रत्येक सनातन धर्मावलम्बी अपने घर में वेद, पुराण तथा अन्य धार्मिक पुस्तकों को इसलिए संजोकर रखता है, क्योंकि यह ग्रंथ हमारी धरोहर हैं। यह हमारी पहचान भी है। हमारी ऋषि परम्परा कहती है कि ‘धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः स पन्थाः’ धर्म का तत्व बहुत सूक्ष्म होता है। इसको प्रत्येक व्यक्ति नहीं समझ सकता। इसलिए जो महापुरुष कहें, उसी का अनुसरण किया जाना चाहिए।
…वेदों की परम्परा सृष्टि के उद्भव के समय की परम्परा है। लम्बे कालखण्ड में अलग-अलग ऋषियों द्वारा वेदों की रचना की गई। उस समय श्रवण की भी परम्परा थी। गुरु द्वारा वेदों का पाठन किया जाता था। शिष्य उसे अंगीकार करते थे।
…यह प्रक्रिया लम्बे समय तक चलती रही और 5000 वर्ष पूर्व महर्षि वेदव्यास के नेतृत्व में ऋषियों की एक बड़ी मण्डली ने वेदों को लिपिबद्ध करने का काम किया। यह कार्य अपने यूपी के ही जनपद सीतापुर के नैमिषारण्य में किया गया’।

CM Yogi ने युवाओं को समझाया – दीक्षान्त समारोह दीक्षा का अन्त नहीं बल्कि नए जीवन की शुरुआत
इसी क्रम में CM Yogi ने युवाओं को समझाया और कहा – ‘दीक्षान्त समारोह दीक्षा का अन्त नहीं, बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत होता है। प्राचीन काल में गुरुकुल अथवा किसी ऋषि के आश्रम में स्थापित विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा उपदेश स्नातकों को दिया जाता था कि, ‘सत्यं वद धर्मं चर’ अर्थात् सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो।
…तैत्तिरीय उपनिषद का यह मंत्र आज हजारों वर्षों के बाद भी भारत में दीक्षा उपदेश बनकर युवाओं को भावी जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। जीवन में ऐसे अनेक पड़ाव आते हैं, जो व्यक्ति को महान बनने का अवसर प्रदान करते हैं। लेकिन यह व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करता है कि वह अवसर को अपने अनुकूल ढालने की सामर्थ्य रखता है अथवा नहीं।
…श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है कि ‘श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं’ अर्थात् जो श्रद्धावान है वही ज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी है। जिसके मन में गुरु, माता-पिता, वरिष्ठजन आदि के प्रति श्रद्धा का भाव नहीं है, उसको ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती।
…इसीलिए भारतीय परम्परा में कहा गया है कि देश, काल और पात्रता का ध्यान रखा जाना चाहिए। पात्रता के अनुसार ही ज्ञान प्रदान किया जाना चाहिए’।