झारखंड की राजनीति में नंबर दो तो नंबर दो होता है

झारखंड की राजनीति में नंबर दो तो नंबर दो होता है

रांची: यह रंग है राजनीति का यह रंग है महत्वाकांक्षा का यह रंग है गद्दी की चाह का है। बीते तीन दिनों से झारखंड की राजनीति का यही तीन रंग देखने को मिल रहा है कुछ चेहरों पर मायूसी तो कुछ चेहरों पर भविष्य की संभावनाएं दिख रही हैं इसके अलावा कुछ चेहरे ऐसे भी हैं जो महत्वाकांक्षी है। गद्दी की चाह इन्हें लगातार अपने रंग को बदलने के लिए विवश कर रही हैं।

5 महीने के लिए झारखंड का रंग हरा जरूर था पर फिर भी इसकी चमक कुछ अलग थी जो पुराने हरे रंग से भी अलग था अब झारखंड की राजनीति 5 महीने पुराने रंग में बदलने को बेताब है, उम्मीद और संभावनाएं भी है कि रथ यात्रा की शुरुआत के साथ झारखंड का वह पुराना हरा रंग फिर से लौट आएगा ‌ लेकिन यह रंग लौटा क्यों इसके पीछे केवल महत्वाकांक्षा है या गाद्दी की चाह यह जांच के साथ-साथ विचार का भी विषय है।

मामले पर अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग राय या यूं कहें विचार सामने आ रहे हैं कुछ का कहना है जो पुराना हरा रंग था जो चमकीला भी था उसे उड़ान तस्तरी की चाहत है जो झारखंड विधानसभा चुनाव में उसे यहां से वहां वहां से यहां ले जाए, इस पुराने रंग को प्रोटोकॉल में किसी से नीचे रहना पसंद नहीं था इसीलिए नये रंग को बदला गया।

अब जो नया हरा रंग था जिसकी चमक थोड़ी सी फीकी भी थी पर वास्तविक था उसका चेहरा मायूस है उसकी उम्मीद धुंधली सी लग रही है बेचारा क्या करें पुराने रंग के आगे नए रंग की चमक कमजोर, उसे हार तो मानना ही था पर नए रंग को उम्मीद है उसकी जमीन उसका सपोर्ट जरूर करेगी जो विधानसभा चुनाव में दिखेगा और इसके प्रभाव से पुराने रंग भी पूरी तरह से अवगत है।

इसलिए अभी से पुराने रंग को नंबर दो की कुर्सी देने की होड़ शुरू हो गई है। पर नंबर दो तो नंबर दो होता है और संतोष कभी नंबर दो में नहीं होता संतोष नंबर एक में ही होता है देखते हैं आने वाला समय इन दोनों रंगों के संतोष को कितना कायम रखता है।

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