रांची: झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ अंतिम जंग अपने निर्णायक मोड़ पर है, लेकिन अब इस जंग में एक नई चुनौती सामने आ रही है – वज्रपात। हाल ही में चाईबासा के सारंडा जंगलों में तैनात केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के एक कैंप में आकाशीय बिजली गिरने से असिस्टेंट कमांडेंट की मौत हो गई, जबकि तीन अन्य जवान गंभीर रूप से झुलस गए।
राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अनुराग गुप्ता ने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण और अभूतपूर्व बताया। उन्होंने कहा कि पिछले 25 वर्षों में नक्सल ऑपरेशनों के दौरान वज्रपात से किसी अधिकारी की मृत्यु की यह पहली घटना है। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या वज्रपात से हुई मौतों को भी इंश्योरेंस कवरेज में शामिल किया जाए? डीजीपी ने बताया कि पहले सांप के काटने से मौत भी इंश्योरेंस के तहत नहीं आती थी, लेकिन एक घटना के बाद उसे जोड़ा गया। अब वज्रपात को लेकर भी मंथन चल रहा है।
सारंडा के घने जंगलों में जहां एक ओर नक्सलियों द्वारा बिछाई गई IEDs सुरक्षा बलों के लिए चुनौती बनी हुई हैं, वहीं अब वज्रपात और मानसूनी आपदाएं भी बड़ा खतरा बनकर उभर रही हैं। खासतौर पर मानसून के दौरान चाईबासा और आस-पास के जंगलों में भारी बारिश, नदी-नालों में उफान, जहरीले जीव-जंतु और आकाशीय बिजली से सुरक्षा बलों को सतर्क रहना पड़ता है।
डीजीपी ने कहा कि नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियान को मानसून से पहले ही निर्णायक मोड़ पर पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में सीआरपीएफ, झारखंड जगुआर, झारखंड पुलिस (JAP), और सैप की कई कंपनियां पूरे फोर्स के साथ सरंडा के जंगलों में तैनात हैं। वरिष्ठ अधिकारियों का भी व्यापक स्तर पर डिप्लॉयमेंट किया गया है।
उन्होंने दावा किया कि सुरक्षा बलों का मनोबल ऊंचा है और बीते दिनों कई बड़ी बरामदगियां भी हुई हैं। गिरिडीह में एक पुरानी टूटी हुई 20056 मॉडल की राइफल तक बरामद की गई है। डीजीपी के मुताबिक, नक्सलियों का नेटवर्क अब आखिरी दौर में है और यह अभियान उन्हें पूरी तरह खत्म करने की दिशा में बढ़ रहा है।