साहिबगंजः राजमहल प्रखंड का मंडय गांव में स्थित पगली दुर्गा मंदिर किसी परिचय का मोहताज नहीं है. दूर-दूर से लोग इस दुर्गा मंदिर में मन्नतें मांगने आते हैं.
किवदंती है कि 17वीं शताब्दी में इस गांव में बहुत बड़ी महामारी आई थी. इस महामारी में गांव की बड़ी आबादी चल बसी, घर-घर के घर उजड़ गए, महिलाएं विधवा हो गई, बच्चे अनाथ हो गए. महामारी के भय और आतंक से तरस्त लोग राजमहल के दूसरे गांवों में जाकर बसने लगे. गांव विरान गया, कुछ गिने-चुने लोग ही गांव में बच गएं.
कुछ दिनों के बाद बगल के गांव का एक बच्ची भूल से खेलते-खेलते मंदिर के सामने के तालाब में गिर कर डुब गई. बच्ची के माता-पिता पहले इसी गांव में रहते थें, लेकिन महामारी के भय में गांव छोड़कर बगल के गांव में बस गए थे.
रात में बच्ची के माता-पिता को सपना आया कि तुम्हारी बच्ची हमारे तलाब में डूबी हुई है, लेकिन, अगर तुम लोग मंडय गांव वापस आकर हमारी पूजा-अर्चना करो तो तुम्हारी बच्ची को मैं पुनर्जीवित कर दूंगी.
माता-पिता ने अगले सुबह मंदिर में माता का पूजा-अर्चना प्रारंभ कर दिया. आखिरकार बच्ची फिर से जिन्दा हो गई. उस दिन ने मंदिर की ख्याति और बढ़ गई.
इस मंदिर की विशेषता है कि माता की प्रतिमा का निर्माण उसी तालाब की मिट्टी से किया जाता है और विसर्जन भी उसी तलाब में होता है. नवमी के दिन पगली मंदिर में दूर-दूर से बड़ी संख्या में भक्त अपनी फरियाद लेकर आते हैं और मन्नत पूरी होने पर माता रानी को बकरे की बलि देते हैं.
रिपोर्टः अमन