जनार्दन सिंह की रिपोर्ट
डिजिटल डेस्क : Delhi के नतीजों में भाजपा को नई संजीवनी दे गई कांग्रेस की आहुति और डूब गई AAP। Delhi के बीते शनिवार को घोषित हुए चुनावी नतीजों के बाद भाजपा को जो नई संजीवनी मिली है उसमें कांग्रेस ने भी खूब आहुति दी जिसके चलते AAP का कुनबा बुरी तरह बिखर गया। फिर तो स्वाभाविक तौर पर 27 साल बाद Delhi में भाजपा की सत्ता वापसी तय हो गई।
कांग्रेस की Delhi चुनाव में आहुति बनती थी और उसने वही किया भी। गुजरात और हरियाणा में समझाने के बाद भी AAP वाले कांग्रेस के खिलाफ अपना अलग झंडा बुलंद किए रहे जिससे भाजपा को ही विपरीत हालातों में भी फायदा मिला। उसके बाद तो सियासत की पुरानी खिलाड़ी रही कांग्रेस ने AAP को दिल्ली में अपनी जमीनी पकड़ और ताकत का ऐसा अहसास कराया है कि AAP के तमाम सूरमा (पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन, अवध ओझा आदि) साफ हो गए।
कांग्रेस पहले भी Delhi में शून्य पर थी और अब भी है लेकिन वोट प्रतिशत के लिहाज से कांग्रेस पहले की तुलना में काफी मजबूत हुई है। इसी का असर है कि भाजपा को 48 सीटें मिलीं और चौथी बार सत्ता में आने का सपना संजोए बैठी AAP (आम आदमी पार्टी) को महज 22 सीटें ही मिलीं। कांग्रेस ने ऐसी बाजीगरी दिखाई कि Delhi के 70 सीटों में खुद की 67 सीटों पर जमानत भले ही जब्त हुई लेकिन वोट प्रतिशत बढ़ने के साथ AAP को कचोटने वाली हार के कगार पर ले जाने को काफी रहा।
Delhi के नतीजों से लगा AAP की साख पर बट्टा
Delhi के आए चुनावी नतीजों से और कुछ भले ना हो या फिर जितने भी तमाम दावे हो रहे हों लेकिन एक बात साफ है कि AAP की साख पर करारा बट्टा लगा है। चुनावी अभियान के दौरान आप नेतृत्व के नेता विपक्ष पर आरोपों की झड़ी लगाते दिखे।
इसमें उन्होंने चुनाव आयोग जैसी सांविधानिक संस्था को भी कठघरे में खड़ा कर दिया। दिल्ली पुलिस को भाजपा की पुलिस तक करार दे दिया। यहां तक कि हरियाणा व केंद्र सरकार पर साजिशन यमुना में जहर मिलाने और जनसंहार करने तक के आरोप मढ़ दिए। आम लोगों में इसका असर नकारात्मक पड़ा।
बातचीत में कई मतदाताओं ने इसे आप का बचकाना आरोप करार दिया। इससे लोगों में आप की बची-खुची साख पर बट्टा लग गया। केजरीवाल के आवास से जुड़े विवाद का असर भी मतदाताओं में नकारात्मक ही गया। भाजपा ने इसे शीश महल करार दिया था।
खुद को आम आदमी कहने वाले केजरीवाल के आवास की जो तस्वीरें बाहर आई, उसने दस साल में केजरीवाल की बनी बनाई इमेज को नुकसान पहुंचाया। इससे गरीब तबके में पैठ बनाने में भाजपा को सहूलियत हुई और आरक्षित श्रेणी की चार सीटें जीतने में भी कामयाबी मिली।
Delhi के मुस्लिम बाहुल्य 5 सीटों पर जैसे -तैसे जीत पाई AAP…
चुनावी नतीजों के बाद जो तस्वीर सामने है, उसमें Delhi की मुस्लिम बाहुल्य 5 सीटों पर AAP को जीत मिली है लेकिन आसानी से नहीं, बल्कि जैसे-तैसे। इसमें सीलमपुर, मटिया महल, बल्लीमारान, ओखला और बाबरपुर हैं। मुस्तफाबाद सीट पर उसे हार का सामना करना पड़ा है।
उस सीट पर पिछली बार हाजी युनूस ने जीत दर्ज की थी। वहीं, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने दो सीट ओखला से शिफा-उर-रहमान और मुस्तफाबाद से ताहिर हुसैन को टिकट दिया था। दोनों ही सीटों पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा है।
मुस्तफाबाद में AAP प्रत्याशी आदिल खान को भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट ने 17 हजार 578 वोटों से हराया। इस सीट पर ताहिर हुसैन को 33 हजार 474 वोट मिले और वो तीसरे स्थान पर रहे। उधर, ओखला सीट से अमानतुल्लाह खान ने जीत दर्ज की है। हालांकि, पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार उनकी जीत का अंतर कम रहा।
बल्लीमारान सीट से AAP प्रत्याशी इमरान हुसैन ने जीत दर्ज की है। मटिया महल सीट से AAP के आले मोहम्मद ने जीत दर्ज की है। उत्तर पूर्वी दिल्ली की सीलमपुर सीट पर AAP प्रत्याशी चौधरी जुबैर अहमद ने 42 हजार477 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की है। AAP के प्रदेश संयोजक गोपाल राय ने बाबरपुर सीट पर जीत दर्ज की है।

भाजपा के सामने AAP का सियासी मॉडल हुआ धराशायी, शराब मामले ने कराई किरकिरी…
Delhi के चुनावी नतीजों के पूरे परिदृश्य पर गौर करें तो AAP अपने ही सियासी पापों के दलदल में फंस गई। Delhi में 2020 में मिले मजबूत जनादेश के साथ ही AAP को नैतिक आधार भी डगमगाने लगा था। इसकी शुरुआत दिल्ली सरकार के मंत्री रहे सत्येंद्र जैन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से हुई थी।
30 मई 2022 को ईडी ने मंत्री सत्येंद्र जैन को मनी लॉन्ड्रिंग के केस में गिरफ्तार किया था। यह AAP पर लगा पहला बड़ा झटका था। उसके बाद AAP को सबसे ज्यादा नुकसान कथित शराब घोटाले से हुआ। इसमें मंत्री मनीष सिसोदिया, सांसद संजय सिंह समेत मुख्यमंत्री केजरीवाल तक को जेल जाना पड़ा।
AAP पार्टी बेशक खुद के आरोपों को सियासी साजिश करार दे रही है, लेकिन आरोपों ने AAP की उस बुनियाद को ही चूर-चूर कर दिया, जिस पर पूरी इमारत खड़ी की गई थी। AAP नेताओं पर अभी आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं और सभी नेता जमानत पर हैं। फिर भी, जनता की अदालत ने इन्हें नकार दिया।
यमुना की सफाई, टूटी सड़कें, पेयजल संकट, सीवर की समस्या समेत अपनी दूसरी नाकामियों के लिए आप नेतृत्व लगातार भाजपा को जिम्मेदार बताता रहा। अपने पूरे चुनावी अभियान में AAP ने केंद्र सरकार पर काम न करने देने की बात कही, लेकिन कोई नेता इसका ठोस जवाब नहीं दे सका कि वह दोबारा सरकार बनाने पर उसी केंद्र सरकार के साथ कैसे काम कर सकेंगे। इससे आम लोगों ने AAP के आरोपों के साथ जाने को तवज्जो नहीं दी।
इसकी जगह दिल्ली के शासन मॉडल की नाकामी का जवाब भाजपा में यकीन जताकर ढूंढ़ा। कई तरह के आरोपों से घिरी AAP सांगठनिक स्तर पर कमजोर होती गई। आम कार्यकर्ताओं की छोड़िए, विधायकों तक की बात सुनने वाला कोई नहीं था। यही वजह रही कि चुनाव से ऐन पहले एक साथ AAP के आठ विधायक भाजपा के साथ चले गए, जिनका टिकट AAP ने काट लिया था।
वहीं, जिन बाहरी लोगों को टिकट दिया, वह स्थानीय स्तर पर आप कार्यकर्ताओं से संपर्क नहीं बना सके। इसका नतीजा यह रहा कि वोटिंग के दिन कई पोलिंग बूथ ऐसे दिखे, जहां AAP के काउंटर पर कार्यकर्ता ही नहीं थे। इसके उलट भाजपा के काउंटर पर भीड़ दिखी। भाजपा के लिए फ्लोटिंग वोटर्स का मन बदलने में यह रणनीति कारगर साबित हुई।
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