Wednesday, June 25, 2025
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25 जून एक तारीख नहीं इतिहास है, इस दिन को याद कर आज भी…

एस के राजीव, बिहार संपादक

पटना: भारतीय राजनीति में 25 जून एक ऐतिहासिक तिथि है और 25 जून आते ही दिमाग में आपातकाल की यादें ताजा हो जाती है। 1975 में इसी दिन देश में तत्कालीन इंदिरा सरकार ने आपातकाल लागू किया था और नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था। इस घटना के बाद विरोध में खड़े हुए आंदोलन ने देश में उस समय इंदिरा सरकार को बदलकर रख दिया था और इंदिरा गांधी की जगह मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने थे। आज भी इस दिन को याद कर लोग सिहर उठते हैं।

भारतीय इतिहास में 25 जून एक ऐसा कालिख भरा दिन है जिसका इतिहास तो स्याह है ही वर्तमान भी उसे याद कर आज भी सिहर उठता है। हालांकि इस पूरे प्रकरण का एक लंबा इतिहास है जिसकी कहानी आज भी बयां की जाती हैं और जब तक राजनीति शब्द खुद को स्थापित करती रहेगी तब तक इस दिन को भी लोग अपनी अपनी जुबानी बयां करते रहेंगे।

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हालांकि 25 जून भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और मंडल आयोग की सिफारिशों के कार्यान्‍वयन की शुरुआत करने वाले विश्‍वनाथ प्रताप सिंह के जन्म दिन के रुप में भी मनाया जाता है लेकिन आरक्षण की बदौलत देश सहित बिहार की सियासत पर राज करने वाले नेता भी आज विश्वनाथ प्रताप को याद तक नहीं करते। मंडल की सिफारिशों के लागू होने के बाद से थोड़ी ही सही लेकिन भारतीय समाज के व्‍यवस्‍था की जड़ता काफी हद तक जकड़न मुक्‍त हुई है और समाज के सबसे निचले पायदान पर बैठा व्‍यक्ति भी सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच विश्वनाथ प्रताप के सपनों को पूरा कर रहा हैं।

कहते हैं सत्ता जब क्रूर हो जाती है तब वह सारे हदों की सीमाओं को लांघ जाती है। 25 जून 1975 को जब इंदिरा सरकार ने आपातकाल की घोषणा देश में की थी तब बिहार ने देश को जेपी जैसे नेताओं को दिया जिनके लिये लोकतंत्र की मर्यादा के सामने सियासत की कुर्सी कोई मायने नहीं रखती थी। आज भी जब देश आपातकाल को याद कर रहा है तो जेपी की स्मृतियां स्वतः ही मानस पटल पर उभरने लगती है। हां यह बात अलग है कि जेपी के चेले आज बिहार में सत्ता पर 1990 से काबीज तो हैं लेकिन उनके लिये अब सियासत परिवारवाद का दूसरा नाम हो चला है।

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दरअसल लोकतंत्र को सही मायने में स्थापित करने का काम इस देश की जनता करती है तभी तो चुनाव में जनमत जिसके साथ होता है सत्ता की स्वीकार्यता उसी की होती है। लेकिन निरंकुश होती आपातकाल जैसी सत्ता पर भी यही जनमत अपनी मुहर लगाकर उसे फिर से घुटने पर ला देती है।

लिहाजा 25 जून के उस दिन को जरुर याद रखिये जिसने भारत जैसे लोकतांत्रिक देश से आपातकाल को जन्म दिया तो वहीं 27 प्रतिशत आरक्षण का मंडल के माध्यम से लाभ देकर समाज के सबसे निचले पायदान पर बैठे व्यक्ति को सरकारी नौकरी से लेकर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पर भी बैठाया। जाहिर है 25 जून भारत के लिये महज एक तारिख भर नहीं बल्कि एक वो इतिहास है जिसे हमेशा याद रखा जायेगा।

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