भाजपा ने कांग्रेस के हाथों से कैसे निकाली गोड्डा लोकसभा सीट, जानें पूरा इतिहास

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पॉलिटिकल किस्से में आज हम बात करेंगे झारखंड में भाजपा की सबसे हॉट सीट गोड्डा संसदीय सीट की. गोड्डा लोकसभा सीट भले ही आज भाजपा का गढ़ माना जाता है लेकिन इतिहास के पन्नों को पलट के देखें तो इस सीट पर कभी कांग्रेस का राज हुआ करता था.

वर्तमान में यहां कांग्रेस दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती है, आखिरी बार 20 साल पहले साल 2004 में कांग्रेस के फुरकान अंसारी यहां से सांसद बने थे. उसके बाद गोड्डा में निशिकांत दुबे की एंट्री हुई और बीते तीन टर्म से निशिकांत यहां से सांसद हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने एक बार फिर निशिकांत दुबे पर ही भरोसा जताया है.
क्या गोड्डा में इस बार कांग्रेस अपनी वापसी कर पाएगी या भाजपा गोड्डा से नया इतिहास बनाएगी.

निशिकांत ने गोड्डा में एंट्री के साथ ऐसा तूफान लाया कि गोड्डा में कांग्रेस फिर वापस भी नहीं आ पाई. आपको जानकर हैरानी होगी कि निशिकांत शुरु से राजनीति से नहीं जुड़े थे. निशिकांत कोर्पोरेट घराने से सियासत में आए और इस कदर सफल हुए कि भाजपा ने लगातार चौथी बार उन्हें प्रत्याशी बनाया है.

निशिकांत दुबे की राजनीतिक करियर की बात करें तो साल 2009 से पहले वो राजनीति से जुड़े भी नहीं थे. निशिकांत राजनीति में आने से पहले कोर्पोरेट हाउस में काम किया करते थे. कुछ समय वे देवघर में अपने मामा के घर में रहे इसी दौरान निशिकांत अपने मामा से प्रभावित हुए. बता दें उनके मामा जनसंघ देवघर इकाई के पार्टी अध्यक्ष थे. यहीं से उनके मन में सियासत में जाने की इच्छा जगी. निशिकांत दुबे का प्रेम भाजपा की तरफ बढ़ता गया जबकि उनके पिता राधेश्याम दुबे एक कम्युनिस्ट थे. धीरे धीरे निशिकांत एबीवीपी से जुड़े फिर इस रास्ते चलते हुए वो भाजयुमो के सदस्य बने .फिर भाजपा में शामिल हो गए. निशिकांत 2009 में सक्रिय राजनीति में आए और पहली बार में ही पार्टी ने उन्हें गोड्डा सीट से टिकट दे दिया और अपने पहले संसदीय चुनाव में ही निशिकांत ने जीत हासिल की. जिसके बाद निशिकांत दुबे के जीत का सिलसिला रुका नहीं.

गोड्डा लोकसभा का प्रवेश द्वार देवघर को कहा जाता है. निशिकांत दुबे ने देवघर की जनता के बीच अच्छी लोकप्रियता हासिल कर ली है और देवघर की जनता को एयरपोर्ट सहित एम्स की सौगात दी है. इसलिए माना जा रहा कि गोड्डा से भी निशिकांत को फायदा हो सकता है.

हालांकि भाजपा ने निशिकांत को चौथी बार टिकट दे दिया है लेकिन इंडिया गठबंधन ने अब तक टिकट की घोषणा नहीं की है. लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि यह सीट गठबंधन के तहत इस बार भी कांग्रेस की झोली में जाएगी और महागामा विधायक दीपिका पांडे कांग्रेस की उम्मीदवार हो सकती है.

अगर कांग्रेस दीपिका को टिकट देती है तो 2024 में इस सीट से कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है. दीपिका और निशिकांत के बीच 36 का आंकड़ा है. दोनों एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोलते रहते हैं. हालांकि दीपिका के लिए गोड्डा लोकसभा का जातीय समीकरण काम कर सकता है .

गोड्डा लोकसभा में मुस्लिम, यादव, सवर्ण, वैश्य, अनुसूचित जाति और आदिवासी समाज के सर्वाधिक मतदाता है. कुल मतदाताओं में लगभग 18 फीसदी मुस्लिम है . वहीं यादव और सवर्ण भी लगभग 18- 18 फीसदी जबकि 16 फीसदी वैश्य,12 फीसदी अनुसूचित जाति,10 फीसदी आदिवासी मुख्य रूप से मतदाता है इसके अलावा बाकी अन्य की संख्या 8 फीसदी है.

दीपिका खुद ब्राह्मण है और उनकी शादी कुर्मी परिवार में हुई है ऐसे में दीपिका दो जातियों के वोट अपने पाले में कर सकती है. और मधुपूर, जरमुंडी, पौड़ेयाहाट और महागामा विधानसभा क्षेत्रों से दीपिका को सपोर्ट मिलने की उम्मीद जताई जा रही है.

हालांकि अब आने वाले समय में ही पता चल पाएगा कि कांग्रेस किसे अपना उम्मीदवार बनाती है.
भाजपा ने अब तक गोड्डा से 8 बार और कांग्रेस ने 6 बार जीत दर्ज कर की है. आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि गोड्डा लोकसभा में क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा काफी कम रहा है. इस सीट के लिए मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही चला है. 1977 के चुनाव में गोड्डा सीट पर जेपी आंदोलन का असर दिखा और 1977 में भारतीय लोक दल पार्टी से जगदंबी प्रसाद यादव सांसद बने और 1991 में झारखंड मुक्ति मोर्चा से सूरज मंडल ने यहां से जीत हासिल की थी. इसके अलावा गोड्डा सीट पर कभी भी क्षेत्रिय पार्टियों की वापसी नहीं हुई है.

एक नजर गोड्डा लोकसभा सीट पर डालते हैं

गोड्डा जब स्वतंत्र लोकसभा सीट के में नहीं था और अखण्डित बिहार का अंग था, उस वक्त देश में हुए पहले चुनाव में संताल परगना प्रमंडल क्षेत्र से पहले सांसद के रूप में देवघर के पुरोहित समाज के पंडित रामराज जजवाड़े निर्वाचित हुए थे.

जिसके बाद गोड्डा लोकसभा सीट 1962 में अस्तित्व में आई और 1962 में गोड्डा में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए.
पहले लोकसभा चुनाव में ही गोड्डा में कांग्रेस की जीत हुई. 1962 में कांग्रेस के प्रभु दयाल हिम्मतसिंगका गोड्डा से सांसद बने.

जिसके बाद दूसरी बार गोड्डा में 1967 में चुनाव हुए और गोड्डा में एक बार और कांग्रेस से प्रभु दयाल हिम्मतसिंगका फिर से सांसद बन दिल्ली पहुंचे.

1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की मौत के बाद सहानुभूति की लहर में एक बार फिर से कांग्रेस ने जीत दर्ज की. यहां से जगदीश मंडल कांग्रेस से जीते.

1977 में कांग्रेस की जीत का सिलसिला टूट गया और 1977 में कांग्रेस पार्टी को यह सीट गंवानी पड़ी. इस बार गोड्डा में भारतीय लोकदल ने जीत हासिल की. साल 1977 में जेपी आंदोलन में गोड्डा सीट पर लोक दल के प्रत्याशी ने बड़ी जीत दर्ज की थी .भारतीय लोक दल के जगदंबी प्रसाद यादव ने इस सीट पर जीत दर्ज करते हुए 68.6 फीसदी वोट हासिल किए. जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 25.5 फीसदी वोट मिले.

साल 1980 में गोड्डा सीट पर कांग्रेस ने एक बार फिर वापसी की. और मौलाना समीनुद्दीन यहां से जीते.
1984 में कांग्रेस ने अपनी जीत को बरकरार रखा और कांग्रेस से मौलाना सलाउद्दीन गोड्डा से सांसद बने.

1989 में गोड्डा सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी जीत का खाता खोला. पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर जीत दर्ज की. जनार्दन यादव भारतीय जनता पार्टी से इस लोकसभा क्षेत्र से विजयी हुए. इन्हें कुल 53.01 फीसदी वोट मिले थे. वहीं दूसरे स्थान पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के सूरज मंडल रहे.

अगली लोकसभा चुनाव में सुरज मंडल ने अपनी हार का बदला लिया और 1991 में गोड्डा में पहली बार झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपना परचम लहराया. ये पहली और आखिरी बार था जब गोड्डा में किसी क्षेत्रिय ने जीत हासिल की थी.
इसके बाद साल 1996,1998,1999 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से जगदंबी प्रसाद यादव लगातार जीते.

वर्ष 2001 में उसके असामयिक निधन के बाद हुए उपचुनाव में जगदंबी यादव की सहानुभूति लहर भाजपा के साथ रही तथा भाजपा के प्रदीप यादव चुनाव जीतकर पहली बार सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया। 2002 के उपचुनाव में भी भाजपा से प्रदीप यादव सांसद बने.

2004 में एक बार फिर भाजपा की जीत का क्रम टूटता है और कांग्रेस से फुरकान अंसारी गोड्डा से जीतते हैं.

जिसके बाद गोड्डा की सियासत में निशिकांत दुबे प्रवेश करते हैं और 2009,2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाते हैं, निशिकांत दुबे ने लगातार तीन बार यहां से जीत हासिल की और अपनी छवि इतनी मजबूत कर दी कि आलाकमान ने चौथी बार उन्हें टिकट दिया है.

गोड्डा लोकसभा संताल परगना प्रमंडल के अंतर्गत आता है. गोड्डा लोक सभा सामान्य सीट है.इस लोकसभा के अंतर्गत 6 विधानसभा क्षेत्र हैं . देवघर, पौड़ेयाहाट, महागामा, गोड्डा , जरमुंडी और मधुपूर है.

इनमें से देवघर विधानसभा क्षेत्र सिर्फ अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है बाकी सभी विधानसभा क्षेत्र सामान्य है.गोड्डा जिला के तीन विधानसभा क्षेत्र के महगामा की बात करें तो यहां कांग्रेस की विधायिका दीपिका पांडेय सिंह है, वहीं गोड्डा से अमित मंडल बीजेपी के विधायक है.पोड़ैयाहाट के विधायक प्रदीप यादव है जो जेवीएम के टिकट से चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस के साथ हो गए.अब देवघर जिला के देवघर विधानसभा क्षेत्र के विधायक नारायण दास है जो बीजेपी के है, जबकि मधुपुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक हाफिजुल हसन है जो झामुमो से हैं.

अब महागठबंधन जब टिकट की घोषणा करेगी तभी आगे की तस्वीर स्पष्ट हो पाएगी. गोड्डा में कांग्रेस अपना परचम लहरा पाती है या भाजपा विजयी रथ पर फिर से सवार होती है.

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