झारखंड का भविष्य तय करेगा स्थानीय नीति- अमित महतो

झारखंड का भविष्य तय करेगा स्थानीय नीति- अमित महतो

कटकमसांडी (हजारीबाग) : झारखंड का भविष्य तय करेगा स्थानीय नीति- अमित महतो- झारखंड

निर्माण के दो दशक से ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद भी अब तक झारखंड की स्थानीय नीति का

झारखंडी जनभावनाओं के अनुरूप परिभाषित न होना चिंता का विषय है.

चूँकि स्थानीय नीति ही नियोजन नीति को भी तय करेगा

इसलिए सरकार को अपने किए गए वादे को पूर्ण करना होगा.

सरकार को जल्द से जल्द स्थानीय नीति को परिभाषित करना होगा.

उक्त बातें माटी का स्वाभिमान आंदोलन के खतियान महापंचायत में

कटकमसांडी में सिल्ली के पूर्व विधायक अमित महतो ने कही.

पूर्व विधायक अमित महतो ने कहा कि झारखंड में झारखंड के ही लोगों की हकमारी की जा रही है.

नौकरियों में अतिक्रमण, बिना नीति नियुक्ति होना अवसर की समानता के संवैधानिक अधिकार को कुचलने के समान है.

देश के सभी राज्यों की अपनी-अपनी स्थानीय नीति है. लेकिन आज तक

झारखंड में झारखंडी जन भावनाओं के अनुरूप स्थानीय नीति नहीं बन पायी.

यह स्पष्ट तौर पर राजनीतिक उदासीनता को दर्शाता है. इच्छाशक्ति के आभाव को परिलक्षित करता है.

स्थानीय नीति झारखंडियों का मौलिक हक- संजय मेहता

माटी का स्वाभिमान आंदोलन के संयोजक संजय मेहता ने कहा कि राज्य के भीतर झारखंडी जन भावनाओं के आधार पर ही सरकारी और प्रशासनिक निर्णय लेने होंगे. झारखंड झारखंडियों के लिए बना है. लेकिन झारखंडी कौन है यह सरकार आधिकारिक तौर पर परिभाषित नहीं कर रही है. अब तक झारखंडी जनता को छला गया है. जनता अपना हक़ माँग रही है. सरकार को इन पहलुओं पर विचार करना होगा. सरकार खतियान आधारित स्थानीय नीति को लागू करने के लिए क्या कर रही है यह जनता को बताना होगा. संजय मेहता ने कहा कि झारखंड में माटी का स्वाभिमान आंदोलन को धार दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि झारखंड को अब एक पुनर्जागरण की ज़रूरत है.

हर झारखंडी मांग रहा स्थानीय नीति- विजय सिंह भोक्ता

ज़िला परिषद सदस्य विजय सिंह भोक्ता ने कहा कि तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरी में झारखंडी को प्राथमिकता ज़रूरी है. सरकार को इस पहलू पर भी सोचना होगा की कैसे तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरी में झारखंड के लोगों का हिस्सा नब्बे प्रतिशत हो. विजय भोग्ता ने कहा कि भारत राज्यों का संघ है. राज्यों के निर्माण की परिकल्पना में उस क्षेत्र के लोगों का कल्याण निहित होता है. झारखंड एक अलग राज्य है. भले ही वह बिहार का हिस्सा रहा है लेकिन झारखंड छोटानागपुर इलाक़े की अपनी मौलिक कला, संस्कृति, भाषा और विरासत रही है.

स्थानीय को मिले अधिकार

2000 में जब झारखंड राज्य स्थापना हुई तभी से 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति की मांग होती रही है. चूंकि आदिवासी और मूलवासियों के लिए यह राज्य बना है. जयपाल सिंह मुंडा ने भी संविधान सभा में इसकी वकालत की थी. झारखंड कोई स्वाभाविक राज्य नहीं है, बल्कि संघर्ष के बाद हासिल हुआ राज्य है. इसलिए झारखंड में अवसर में प्राथमिकता के आधार पर लाभ पाने का अधिकार झारखंडी को है. स्थानीय को अधिकार नहीं मिलेगा तो राज्य बनने का सही सपना साकार नहीं हो सका.

ये लोग हैं असली झारखंडी

तीर्थनाथ आकाश ने कहा कि झारखंड में आदिवासी और मूलवासी की पहचान उनकी भाषा- संस्कृति, परंपरा, जीवन शैली, रीति-रिवाज से संभव है. असल में कहें तो झारखंड की भाषा, संस्कृति स्वतः झारखंडियत को परिभाषित करती है. 5 आदिवासी भाषाएं (संताली, मुंडारी, हो, खड़िया व कुड़ुख) और 4 मूलवासी भाषाएं ( खोरठा, कुरमाली, नागपुरी व पांच परगनिया ) ही झारखंडी भाषा-संस्कृति की परिचायक है. सरकार चाहे तो इन्हें स्थानीयता के नीति निर्धारण के आधार बिंदु के तौर पर ले सकती है. सरकार खतियान आधारित स्थानीय नीति को जल्द से जल्द परिभाषित करे.

सभा में ये लोग रहे उपस्थित

सभा में बिनोद मेहता, प्रियंका कुमारी, सूरज कुमार, नागेश्वर मेहता, उपेन्द्र कुशवाहा, प्रकाश कुमार, नागेश्वर कुमार, पप्पू कुमार, प्रशांत कुमार, कैलाश गंझु, मक़सूद आलम, सद्दाम अंसारी, अलीजान अंसारी, आरिफ़ अंसारी, शेर अली, कुणाल मेहता, राजीव मेहता, आदित्य कुमार, मुकेश कुमार, आर्यकांत मेहता, अलाउद्दीन अंसारी, राजा कुमार, कौलेश्वर साहू, भोला शंकर गुप्ता, कैलाश मेहता, किशोर मेहता, बासुदेव साव, विजय कुमार, पिंटू गंझु, चरका यादव, गौतम कुमार, मुकेश यादव सहित सैकड़ों लोग उपस्थित रहे.

रिपोर्ट : सुरेंद्र

1932 का खतियान

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