RANCHI DESK : शारदीय नवरात्रि की नवमी तिथि, जिसे दुर्गा नवमी या महानवमी कहा जाता है. इस दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरुप की आराधना करते हैं. महानवमी को कन्या पूजन और हवन का भी विधान है.
शारदीय नवरात्र का नवां दिवस यानी महानवमी में माता के नवें स्वरूप माँ सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना और आराधना की जाती हैं. चार भुजा धारण करने वाली मां सिद्धिदात्री लाल रंग की साड़ी पहने हुए कमल के आसन पर विराजमान हैं. उनके दाहिनी ओर नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाई ओर से नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है. माता सिद्धिदात्री को सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली कहा गया है.
नवरात्र के नौ दिन माता के नौ शक्ति स्वरूप की पूजा अर्चना और व्रत कर महानवमी के दिन नौ कन्या की पूजा माता के नौ स्वरूप में की जाती हैं. ये कन्याएं मां दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक होती हैं. और इनके साथ एक बालक जो भैरव के रूप में भी पूजा की जाने की परंपरा हैं. कन्या पूजन 2 साल से लेकर 10 साल तक की कन्याओं का किया जाता है. शुभ मुहूर्त में नवमी पूजा करके कन्या पूजन किया जाता है. कन्याओं के साथ एक बालक को भी भोजन कराया जाता है. भोजन में हल्वा, पूड़ी और चना शामिल होता है क्योंकि ये भोजन माता का प्रिय माना जाता है. फिर श्रद्धानुसार भोजन कराकर सभी कन्याओं का पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार माँ सिद्धिदात्री को सिद्धियों की स्वामिनी भी कहा जाता है. नवमी तिथि का व्रत कर, माता की पूजा-आराधना करने के बाद माता को तिल का भोग लगाना इस दिन कल्याणकारी रहता है. यह उपवास व्यक्ति को मृत्यु के भय से राहत देता है और अनहोनी घटनाओं से बचाता है. वहीं मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री का तप किया तब जाकर उन्हें सिद्धियां प्राप्त हुई. देवी के आशीर्वाद के कारण ही भगवान शिव अर्द्धनारीश्वर के रूप में जाने गए.