रांचीः नगर निगम सहित प्रदेश के नगर निकायों में महापौर और नगर आयुक्त तथा अध्यक्ष और कार्यपालक पदाधिकारियों के बीच लगातार उठ रहे विवादों को देखते हुए नगर विकास एवं आवास विभाग ने जन प्रतिनिधियों और अधिकारियों के कार्य क्षेत्र और अधिकार पर महाधिवक्ता से मंतव्य मांगा था।
अब महाधिवक्ता ने अपना मंतव्य सरकार से सामने रख दिया है। महाधिवक्ता द्वारा नगर विकास एवं आवास विभाग को दिया गया मंतव्य का महत्वूर्ण अंश इस प्रकार है।
महाधिवक्ता की राय
1.नगरपालिका अधिनियम के मुताबिक नगर निकायों में आयोजित होनेवाली पार्षदों की बैठक बुलाने का अधिकार केवल और केवल नगर आयुक्त/कार्यपालक पदाधिकारी/विशेष पदाधिकारी को है।
2. नगरपालिका अधिनियम के अनुसार पार्षदों के साथ बुलायी गयी किसी भी बैठक के लिए एजेंडा तैयार करने का अधिकार भी नगर आयुक्त/कार्यपालक पदाधिकारी को ही है।
3. बैठक के एजेंडा और कार्यवाही में महापौर और अध्यक्ष की कोई भूमिका नही है।
4. किसी भी आपातकालिन कार्य को छोड़ किसी भी परीस्थिति में महापौर और अध्यक्ष को अधिकार नहीं है कि वो एजेंडा में कोई बदलाव लाएं।
5. बैठक के बाद अध्यक्ष और महापौर को स्वतंत्र निर्णय का कोई अधिकार नहीं है। बैठक की कार्यवाही बहुमत के आधार पर तय होगी।
6. महापौर और अध्यक्ष को ये अधिकार नहीं है कि वो किसी भी अधिकारी एवं कर्मचारी को कारण बताओ नोटिस जारी करें।
7. महापौर और अध्यक्ष को यह अधिकार नही है कि वो किसी भी विभाग या कोषांग के द्वारा किए जा रहे कार्यों की समीक्षा करें।
8. किसी भी बैठक में अगर महापौर उपस्थित नही हैं तो उप महापौर कार्यवाही पर हस्ताक्षर करेंगे। अगर दोनों अनुपस्थित हैं तो पार्षदों द्वारा चयनित प्रोजाइडिंग ऑफिसर हस्ताक्षर करेंगे।
9. अगर बैठक में महापौर मौजूद है और पार्षदों की सहमति से जो निर्णय हुआ है उसपर आधारित कार्यवाही पर महापौर हस्ताक्षर नहीं करते तो नगर आयुक्त और कार्यपालक पदधिकारी को अधिकार है कि वो राज्य सरकार को अनुशासनात्मक कार्रवायी के लिए लिखें। अगर ऐसा होता है तो राज्य सरकार को अधिकार है कि वो महापौर को पदमुक्त कर दे>
रिपोर्टः शहनवाज
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