राजमिस्त्री बना मिसाल, दूर कर रहे अज्ञान का अंधेरा

27 साल से राजमिस्त्री परशुराम बच्चों को दे रहे निःशुल्क शिक्षा

बोकारो : राजमिस्त्री बना मिसाल- आज के दौर में शिक्षा का अधिकार सभी को है.

चाहे वह गरीब हो चाहे अमीर हो. शिक्षा हर किसी के लिए जरूरत है.

शिक्षा के बिना जीवन में सफलता पाना नामुमकिन है.

आज के दौर में शिक्षा का महत्व और इसकी जरूरत हर कोई जानता है,

लेकिन एक दौर वह भी था जब अज्ञानता वश गरीबों में शिक्षा का स्तर काफी नीचे था.

उस वक्त लगभग 27 साल पहले राजमिस्त्री का काम करने वाला

सातवीं पास परशुराम राम ने मन में ठान लिया कि हर गरीब तबके और

असहाय बच्चों को शिक्षित करेंगे, वह भी निःशुल्क.

आज हम बताने जा रहे हैं 68 वर्षीय सातवीं कक्षा पास राजमिस्त्री परशुराम के बारे में,

जो बस्ती में रहने वाले गली, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहे हैं.

और समाज में ज्ञान का प्रकाश फैलाने का काम कर रहे हैं.

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27 साल पहले बिरसा मुंडा निःशुल्क विद्यालय की स्थापना

आज से लगभग 27 साल पहले बोकारो के सेक्टर 12 में झोपड़ी नुमा स्कूल बिरसा मुंडा निःशुल्क विद्यालय की स्थापना की. जिसमें गरीबों के बच्चे निःशुल्क पढ़ते हैं. परशुराम के द्वारा इस कार्य को करने के पीछे वह बताते हैं कि उनके माता-पिता अत्यंत ही गरीब थे और मजदूरी करते थे. वह इतना कमा नहीं पाते थे कि अपने बच्चों को पढ़ा सके.

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परशुराम ने बताई पूरी कहानी

किसी तरह परशुराम ने अपनी पढ़ाई सातवीं तक पूरी की. जिसके बाद राजमिस्त्री का काम करने लगा. एक दिन काम के दौरान एक महिला लेबर काम को बीच में रोककर रोते बिलखते अपने बच्चे को स्तनपान कराने लगी. तभी ठेकेदार वहां आया और उस महिला लेबर को फटकार लगाई और स्तनपान कर रहे बच्चे को मां से अलग कर दिया. और कहा काम नहीं रूकना चाहिए. तभी परशुराम ने यह देखा और मन में ठान ली कि हर गरीब के बच्चे को अच्छी शिक्षा दूंगा, ताकि पढ़-लिख कर वह अच्छा काम करें. तभी से उसने राजमिस्त्री का काम छोड़कर अपनी सारी जमा पूंजी विद्यालय खोलने में लगा दी.

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अब तक लगभग 4500 बच्चे ले चुके हैं निःशुल्क शिक्षा

शुरुआत में ही उन्होंने 17 बच्चों को शिक्षा दिलाने का काम शुरू किया. और अब तक लगभग 4500 बच्चे यहां से निःशुल्क शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं. इतना ही नहीं यहां बच्चों को पढ़ाने के लिए जो शिक्षक-शिक्षिका हैं, वह भी अपनी सेवा भाव से निःशुल्क योगदान दे रहे हैं. बिना वेतन लिए ही बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना पूरा समय समर्पित कर अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह कर रही है.

सामाजिक संगठनों से मिलता है सहयोग

परशुराम अपना पूरा जीवन बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने में लगा दी है उन्हें 2006 में जनकल्याण सामाजिक संस्था के नाम से मान्यता भी मिल गई. परशुराम बताते हैं बच्चों को पढ़ने के लिए कॉपी, किताब, कपड़े व स्कूल में बैठने के लिए टेबल आदि लोगों के सहयोग से तथा कुछ सामाजिक संगठनों के द्वारा समय-समय पर मदद मिलता रहता है. लेकिन बच्चे आज भी झोपड़ी नुमा विद्यालय में पढ़ रहे हैं. अगर सरकार कुछ मदद करती है तो शिक्षा के स्तर को और बेहतर बनाया जा सकता.

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आज भी बच्चों को स्कूल भेजने के लिए करते हैं प्रेरित

आपको बता दें कि परशुराम हमेशा बच्चों की पढ़ाई को लेकर अपने विद्यालय की निगरानी में रहते हैं. खाली समय मिलने पर वह फावड़ा लेकर खेतों में भी चल पड़ते हैं. साथ ही साथ आसपास के जितने भी झुग्गी, झोपड़ी बस्तियां हैं, जहां ठेला चालक, रिक्शा चालक, दैनिक मजदूरी करने वाले लोग रहते हैं उन्हें शिक्षा को लेकर जागरूक भी करते हैं. बच्चों को स्कूल में भेजने के लिए प्रेरित भी करते हैं. वहां आसपास के लोग भी परशुराम के काम से काफी प्रभावित हैं. सभी लोग अपने बच्चों को उनके विद्यालय भेजकर शिक्षा दिला रहे हैं.

रिपोर्ट: चुमन कुमार

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