रांची: झारखंड हाईकोर्ट में बुधवार को 11वीं जेपीएससी सिविल सेवा मुख्य परीक्षा की मेरिट लिस्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई। यह सुनवाई न्यायमूर्ति दीपक रोशन की अदालत में हुई, जिसमें याचिकाकर्ता राजेश प्रसाद समेत अन्य ने परीक्षा में उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन को लेकर गंभीर अनियमितताओं का आरोप लगाया है।
याचिका में कहा गया है कि झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) ने मुख्य परीक्षा की कॉपियों का मूल्यांकन डिजिटल माध्यम से करवा दिया, जबकि इसके लिए आयोग द्वारा जारी नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। आरोप है कि कॉपियों की जांच थर्ड पार्टी एजेंसी से करवाई गई, जिसकी न तो जानकारी सार्वजनिक की गई, न ही उसका टेंडर प्रकिया सामने लाई गई।
प्रार्थियों की ओर से कोर्ट को बताया गया कि आयोग ने मूल्यांकन के लिए जिन शिक्षकों की योग्यता तय की थी – जैसे विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेज में 10 वर्षों से अधिक अनुभव रखने वाले शिक्षक अथवा 5 वर्षों से अधिक अनुभव वाले पोस्ट ग्रेजुएट – उनके बजाय केवल 2 साल के अनुभव वाले गेस्ट फैकल्टी से कॉपियों की जांच करवाई गई। याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि वर्तमान मेरिट लिस्ट को खारिज कर उत्तर पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन नियमानुसार योग्य शिक्षकों से कराया जाए।
इस मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने जेपीएससी को नोटिस जारी कर कई बिंदुओं पर शपथ पत्र के माध्यम से जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई 23 जुलाई को निर्धारित की गई है।
जेपीएससी नियुक्ति घोटालाः 18 आरोपियों को अग्रिम जमानत
वहीं दूसरी ओर, जेपीएससी के द्वितीय सिविल सेवा नियुक्ति घोटाले में नामजद 18 आरोपियों को सीबीआई की विशेष अदालत से अग्रिम जमानत मिल गई है। विशेष न्यायाधीश एसएन तिवारी की अदालत में बुधवार को हुई सुनवाई में जिन आरोपियों को राहत मिली है, उनमें कई डॉक्टर और पूर्व पदाधिकारी शामिल हैं।
अग्रिम जमानत पाने वालों में शामिल हैं:
शिवेंद्र, अमित कुमार, रामकृष्ण कुमार, इंद्रजीत सिंह, डॉ. योगेंद्र सिंह, डॉ. ओंकार नाथ सिंह, डॉ. सुधीर शुक्ला, अमर नाथ सिंह, डॉ. प्रदीप पांडेय, डॉ. दिवाकर लाल श्रीवास्तव, डॉ. मिथिलेश सिंह, डॉ. सभाजीत यादव, डॉ. बंशी यादव, डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह, डॉ. अशोक सिंह, डॉ. शशि देवी, महेंद्र मोहन वर्मा और ओम प्रकाश सिंह।
जेपीएससी से जुड़ा यह मामला राज्य में प्रशासनिक नियुक्तियों की निष्पक्षता पर बड़ा सवाल खड़ा करता है, जिसे लेकर लगातार न्यायिक व जनजागृति की मांग उठ रही है।