पटना: आरक्षण के मुद्दे को लेकर राजद और बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव केंद्र और राज्य की सरकार पर पहले से हमलावर हैं। अब यूपीएससी के माध्यम से सचिव और संयुक्त सचिव स्तर के पद पर Lateral Entry की घोषणा के बाद तेजस्वी केंद्र सरकार पर और भी आक्रामक हो गए हैं। तेजस्वी ने मोदी सरकार को आरक्षण विरोधी बताते हुए सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट कर जम कर निशाना साधा। उन्होंने चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार, जीतनराम मांझी, चिराग पासवान, अनुप्रिया पटेल, एकनाथ शिंदे, जयंत चौधरी समेत एनडीए के अन्य घटक दलों पर भी निशाना साधा।
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तेजस्वी ने अपने पोस्ट में लिखा कि पीएम मोदी संविधान और आरक्षण को खत्म कर असंवैधानिक तरीके से लैटरल एंट्री के जरिए उच्च सेवाओं में आईएएस आईपीएस की जगह बिना परीक्षा दिए आरएसएस के लोगों को भर रहे हैं। संविधान सम्मत उच्च सेवाओं में भर्ती संघ लोक सेवा आयोग द्वारा सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से होती है जिसमें मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार होता है। इसमें एससी एसटी, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षण लागू होता है। लेकिन लैटरल एंट्री में भर्ती सिर्फ साक्षात्कार के माध्यम से की जा रही है बिना परीक्षा के। इसमें सभी लोग भाग भी नहीं ले सकते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी आरक्षण विरोधी हैं, इसलिए इन उच्च पदों में आरक्षण को खत्म करने के लिए इसे एकल पद दिखाया गया यह जबकि कुल पद 45 है। इसमें आरक्षण लागू होगा तो इनमें से 50% पद दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को मिलते। बिना परीक्षा की ऐसी सीधी नियुक्ति में एससी एसटी और ओबीसी का सीधा 100% नुकसान हो गया।
एनडीए समर्थित मोदी सरकार का यह फैसला गैरकानूनी है क्योंकि यह सरकार के खुद के DOPT डरा 2022 में जारी सर्कुलर का उल्लंघन है, क्योंकि इसके अनुसार कोई भी टेम्पररी भर्ती भी अगर 45 दिन से ज्यादा है तो इसमें आरक्षण लागू करना अनिवार्य है। यह सरकार की नकारात्मक मानसिकता को दर्शाता है क्योंकि अधिकांश आईएएस आईपीएस अधिकारी देश के बड़े संस्थानों से आते हैं। फिर भी सरकार बाहर के निजी क्षेत्र के लोगों को क्यों बुलाना चाहती है। यह संदेहास्पद है तथा सरकार की दलितों, पिछड़ों के प्रति नफरत को दर्शाता है। यह भाई भतीजावाद एवं विशेष विचारधारा के लोगों की बैक डोर एंट्री है।
जरूरत है सही लोगों की सही जगह पर पोस्टिंग की लेकिन मोदी सरकार अधिकारियों की जाति के आधार पर प्राथमिकता देती है और यही वजह है कि केंद्रीय सरकार में सचिव स्तर पर एससी एसटी और ओबीसी अधिकारी न के बराबर है। यह निर्णय समानता के खिलाफ है। तेजस्वी ने अपने पोस्ट में लिखा कि एक आईएएस अधिकारी को जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर पहुंचने में 16 वर्ष लगता है लेकिन यहां निजी क्षेत्र में 15 वर्षों से काम कर रहे लोगों को सीधे जॉइंट सेक्रेटरी बनाया जा रहा है।
जॉइंट सेक्रेटरी के स्तर पर सरकार की नीतियां बनती है और काफी संवेदनशील मुद्दे डील किये जाते हैं। यहां निजी क्षेत्र के लोगों की सीधी भर्ती देश की आर्थिक, सामरिक और डिजिटल सुरक्षा एवं गोपनीयता से समझौता जैसा है। लैटरल एंट्री से आये लोग सरकारी नीतियां बना कर निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने की कोशिश करेंगे, यह गैर जिम्मेदाराना व्यवस्था है इसमें निजी क्षेत्र के व्यक्ति पर सरकार का कोई कण्ट्रोल नहीं होगा। ऐसी स्थिति में नीतियां कॉर्पोरेट को देख कर बनेगी न कि गांव, गरीब, ग्रामीण, किसान और आम जनमानस व देशहित को ध्यान में रख कर।
पिछड़े दलित और आदिवासियों को मोदी जी डिसीजन मेकिंग और पालिसी मेकिंग में शामिल क्यों नहीं करना चाहते हैं। क्या मोदी जी और एनडीए नेताओं को देश की आबादी के 90 फीसदी एससी एसटी और ओबीसी में विशेषज्ञ नहीं मिलते? अगर मिलते हैं तो फिर उन्हें आजादी के 77 वर्षों बाद भी अवसर क्यों नहीं मिलते। तेजस्वी ने अपने पोस्ट के माध्यम से एनडीए के सहयोगी नेताओं नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू, जीतनराम मांझी, चिराग पासवान समेत अन्य पर भी निशाना साधा और कहा कि एनडीए के सहयोगी दल भी आरक्षण समाप्त करने तथा संविधान प्रदत्त अधिकारी छिनवाने के बराबर भागीदार और दोषी हैं।
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पटना से अविनाश सिंह की रिपोर्ट
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