Ranchi- आदिवासी अवेयरनेस सोसायटी (आस) की ओर से वाईएमसीए परिसर,
नई दिल्ली में आदिवासी जागरूकता चेतना, एकता और कार्य एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया.
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता और प्रख्यात समाजशास्त्री,
लेखक, पूर्व निदेशक टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआईएसएस, गुवाहाटी) डॉ वर्जिनियस खाखा ने कहा कि आदिवासियों को अपनी जाति नहीं बल्कि अपनी भाषा से जुड़ने की जरुरत है.
यदि हम अपनी भाषा और संस्कृति से जुड़ेगे तब ही हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचा सकेंगे
और हमारी पहचान बनी रहेगी.
आदिवासी अवेयरनेस सोसायटी की पहल
जैसे विभिन्न प्रदेशों के लोग भाषा के आधार पर ही जुड़े हुए है.
बंगाली, उड़िया, पंजाबी, तमिल, तेलगु सभी अपनी भाषा से जुड़े हैं.
ठीक उसी प्रकार हमें भी अपनी जनजातीय आदिवासी भाषा से जुड़ना होगा.
हमें आदिवासी होने पर गर्व होना चाहिये ना शर्म.
आदिवासी समुदाय की सभी जातियां मुंडा, संथाल, मीणा या क्रिचिश्यन सब के सब आदिवासी है.
आदिवासी समुदाय को आरक्षण, शिक्षा, पॉलिसी निर्माण में हस्तक्षेप की जरुरत है.
देश के सभी आदिवासी गांवों में पहुंच बनाना की आवश्यक्ता है.
जुबान, जंगल और जमीन ही आदिवासी की पहचान है
इस अवसर पर पूर्व मंत्री और विधायक बंधु तिर्की ने कहा कि
आदिवासी समाज देश का सबसे अहम हिस्सा है.
भाषा के बिना आदिवासी समुदाय का कोई अस्तित्व नहीं है.
हमें अपनी भाषा से जुड़े होगा, जुबान, जंगल व जमीन ही आदिवासी की पहचान है.
झारखंड राज्य में 32 तरह के आदिवासी होने के बावजूद हम सभी आदिवासी समुदाय से जुड़े लोग हैं.
हमारी पहचान कोई जाति या धर्म नहीं आदिवासियत है.
हमें एक ऐसे सांसद की जरुरत है जो संसद ही आदिवासियों की आवाज उठा सके.
झारखंड राज्य की स्थापना हम आदिवासी लोगों के लिये ही हुई और आज हमें झारखंड को बचाने की जरूरत है.
झारखंड में भी हमें धर्म और जातियों में बांटने की साजिश रची जा रही है.
लेकिन हमें अपनी पहचान सिर्फ आदिवासियत ही रखनी है.
इनकी रही उपस्थिति
इस अवसर पर सुरेंद्र कुमार सुमन (सचिव झारखंड भवन, नई दिल्ली), प्रवीण होरो सिंह (अतिरिक्त महानिदेशक, योजना और सांख्यिकी मंत्रालय), डॉ (श्रीमती) गोमती बोदरा (जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली), आलोक मिच्यारी (जनजातीय नेता व सदस्य – निदेशक मंडल – नई दिल्ली वाईएमसीए), सुश्री सोमोदिनी टुडू लकड़ा, नागवंशी (झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता), बेलस तिर्की (झारखंड के युवा नेता), मशाल सोशल वेलफेयर सोसाइटी के मोहन बड़ाइक और गंगाराम गगराई (दिल्ली के आदिवासी नेता) भी उपस्थित रहें.