अपने ज़माने के महबूब गज़ल गायक भूपिन्दर सिंह ने सोमवार शाम दुनिया को अलविदा कह दिया.
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83 साल के इस गायक ने मुंबई के एक अस्पताल में आखिरी सांसें लीं.
दूसरी बीमारियों के साथ कोरोना संक्रमण से उनकी हालत लगातार बिगड़ती गई,
लिहाजा डॉक्टरों की कोशिशें आखिरकार नाकाफी साबित हुई.
रात करीब दो बजे उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया.
पंजाब के पटियाला रियासत में 8 अप्रैल 1939 को जन्मे भूपिन्दर सिंह के पिता प्रोफेसर नत्था सिंह
अच्छे संगीतकार थे जो अपने बेटे को भी संगीत सिखाना चाहते थे.
दिक्कत ये थी कि पिता इतने सख्त शिक्षक थे कि भूपिन्दर को बचपन में संगीत से नफरत हो गई.
हालांकि मौसिकी ही गायक भूपिन्दर सिंह की नियति थी. भाग्य से भला कौन भाग पाया.
आकाशवाणी में छिटपुट संगीत कार्यक्रमों के बाद 1968 में संगीतकार मदन मोहन ने भूपिन्दर को बड़ा मौका दिया
फिल्म हकीकत’ के लिए जिसमें उनकी गायी गज़ल काफी पसंद की गई- होके मजबूर मुझे उसने बुलाया होगा.
गज़ल गायिकी को लेकर भूपिन्दर प्रयोगधर्मी थे.
उन्होंने स्पेनिश गिटार और ड्रम पर गज़लें पेश की. गज़ल की एलपी लाकर उसे घर-घर पहुंचाया.
साल 1980 गायक भूपिन्दर सिंह के जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ है
जब उन्होंने गायिका मिताली सिंह के साथ शादी कर ली.
पार्श्व गायिकी से नाता तोड़कर इस भूपिंदर-मिताली ने स्वतंत्र रूप से कार्यक्रम पेश किए.
इस दम्पति को संतान नहीं थी लेकिन ज़िदगी से शिकवा नहीं था.
उन्होंने गाया था-कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता.’
उन्होंने फिल्म एतबार’ के लिए गाया- किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है.
फिल्मबाजार’ के लिए- करोगे याद तो हर बात याद आएगी. फिल्म `मासूम’ में
उनका गाया- दिल ढूंढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात दिन.
कहना न होगा कि ऐसे कई गाने भूपिंदर सिंह की पहचान को प्रशंसकों के बीच हमेशा ज़िंदा रखेंगे.
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