रांची:झारखंड की राजधानी रांची में उस समय माहौल गरमा गया जब आदिवासी नेता गीताश्री उरांव और अन्य कार्यकर्ताओं को धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की शहादत दिवस पर श्रद्धांजलि देने से पहले ही पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया गया।
प्रमुख बिंदु:
गीताश्री उरांव को शहादत दिवस पर श्रद्धांजलि देने से रोका गया
सिरम टोली फ्लाईओवर विरोध और सरना स्थल को लेकर प्रशासन पर गंभीर आरोप
पुलिस द्वारा अभद्रता व जबरन हिरासत की शिकायत
धर्म, संस्कृति, और अधिकार की रक्षा की बात
5 जून को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा
गीताश्री उरांव, जो इस आंदोलन का नेतृत्व कर रही थीं, ने पुलिस की कार्रवाई को न सिर्फ तानाशाहीपूर्ण बताया, बल्कि इसे पूरे आदिवासी समाज का अपमान करार दिया। उन्होंने कहा,“हम तो सिर्फ अपने धरती आबा को श्रद्धांजलि देने गए थे। हर वर्ष की तरह इस बार भी परंपरागत विधि से श्रद्धांजलि देने का कार्यक्रम तय था। मगर पुलिस ने हमसे कहा कि मुख्यमंत्री और राज्यपाल आने वाले हैं, इसलिए हमें हटना होगा। हमने विरोध नहीं किया, सिर्फ अनुरोध किया कि हम चुपचाप एक कोने में पूजा कर लें, लेकिन हमें जबरन हटा दिया गया।”
गीताश्री उरांव ने एडीएम लॉ एंड ऑर्डर पर अभद्रता का आरोप लगाते हुए कहा कि जब उन्होंने सवाल उठाए तो उन्हें धमकाया गया और बाद में सभी को बस में भरकर नामकुम थाना लाया गया।
उन्होंने स्पष्ट कहा, “यह सिर्फ हमारा अपमान नहीं है। यह सभी आदिवासियों की अस्मिता पर हमला है। हमारी श्रद्धा, परंपरा और अधिकार को बार-बार कुचला जा रहा है। क्या हम अपने भगवान को भी नहीं पूज सकते?”
गीताश्री ने लापुंग गोलीकांड, सरना स्थल विवाद और सिरम टोली फ्लाईओवर के मुद्दे को भी उठाया। उन्होंने आरोप लगाया कि“हमारे आंदोलन को ‘विरोध’ कहकर बदनाम किया जा रहा है, जबकि यह तो हमारी संस्कृति और अधिकारों की रक्षा का प्रयास है। सिरम टोली में बाबा कार्तिक उरांव की स्मृति में जो स्थल है, उस पर अब फ्लाईओवर बना कर उसे मिटाने की साजिश की जा रही है। और जब हमने सवाल उठाया, तो हिरासत में ले लिया गया।”
सरना धर्म को लेकर जारी विवाद पर भी गीताश्री उरांव ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि “हम न हिंदू हैं, न ईसाई। हम आदिवासी हैं, सरना धर्म के मानने वाले हैं। हमें जबरन किसी और पहचान में ढालने की कोशिश हो रही है। प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक ने हमारी आवाज को अनसुना किया है।”
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि “जो व्यक्ति खुद को आदिवासी बताकर सत्ता में आया, वही आज हमारी संस्कृति पर सबसे बड़ा हमला कर रहा है। उन्होंने हमारे विश्वास, हमारी परंपरा और हमारे आंदोलन को कुचलने का काम किया है।”
गीताश्री उरांव ने यह भी ऐलान किया कि 5 जून को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा, और यह संघर्ष सिर्फ प्रशासन या सरकार से नहीं, बल्कि अपनी पहचान को बचाने की लड़ाई है।
यह पूरी घटना आदिवासी समुदाय में गहरा आक्रोश पैदा कर गई है, और गीताश्री उरांव के नेतृत्व में यह मामला आने वाले दिनों में राजनीतिक रूप से और बड़ा मुद्दा बन सकता है।