भोजपुरी मंच के झारखंड बंद के विरोध में आदिवासी संगठनों ने सड़क पर उतरने का किया एलान

यह धरती हमारी है, यहां हमारा ही विरोध करने की इजाजत नहीं दी जा सकती
Ranchi-भोजपुरी, मगही अंगिका मंच के द्वारा 6 मार्च को झारखंड बंद के विरोध में भारतीय आदिवासी विकास परिषद, झारखंड दलित संघर्ष मोर्च और अन्य आदिवासी-मूलवासी संगठनों ने सड़क पर उतरे का एलान किया है.
Highlights
पूर्व सांसद और आदिवासी विकास परिषद के जुड़े गीता श्री उरांव ने कहा है कि हमारे संगठन के कार्यकर्ता 6 मार्च को हर सड़क और गली पर में मौजूद रहेंगे.
5 मार्च को आदिवासी-मूलवासी संगठन निकालेंगे का मशाल जुलूस
आज शाम को मशाल जुलूस निकाल कर आदिवासी मूलवासी संगठनों के कार्यकर्ता सरकार को चेतावनी देने का काम करेंगे. बाहरी लोग अब यहां हक अधिकार की बात करेंगे और हम आदिवासी मूलवासियों के आशा की जाती है कि हम चुप रहें. उनकी यह हिम्मत कि हमारी जमीन पर ही हमारा विरोध करें.
इस टकराव के लिए सरकार जिम्मेवार
गीता श्री उरांव ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि 6 मार्च को आदिवासी मूलवासी संगठनों के सड़क पर निकलने से कोई टकराव होता है तो इसकी सीधी जिम्मेवारी सरकार की होगी. आदिवासी मूलवासी संगठन सरकार से अपने अधिकार की मांग कर रहे हैं कोई भीख नहीं.
हम पर बिहारी भाषाओं को थोपा नहीं जा सकता
हम आदिवासी मूलवासियों पर कोई भी अपनी भाषा थोप नहीं सकता, बिहार झारखंड के बंटवारे के समय ही बिहार सरकार ने सही आदिवासी भाषाओं को संताल, कुडुख, मंडारी और हो को बिहार के राज्य भाषा के दर्जे हटा दिया था, तब हम किस आधार पर इन बिहारी बोलियों को अपने यहां भाषा का दर्जा देंगे, संविधान की कंडिका 8 में यह सभी भाषायें बोलियां है, लेकिन एक साजिश के तहत इसे झारखंड में भाषा को रुप में थोपने की कोशिश की जा रही है.
जिसे हमने शरण दी, अब वही हमारी हकमारी कर रहा है
आदिवासी मूलवासियों की मांग 1932 के खतियान के अनुरुप स्थानीय नीति लागू करने की है. हमने 100 किलोमीटर का मानव श्रंखला निकाल कर इसका विरोध किया था, आगे भी इसकी लड़ाई जारी रखेंगे,आज भी हमारे युवा 150 किलोमीटर की दूरी तय कर रांची पहुंचें है. हम किसी भी कीमत पर अपने अधिकारों को लेकर रहेंगे. हमारे पूर्वजों को इस राज्य के लिए लंबा संघर्ष किया, हजारों कुर्बानियां दी है. तब यह राज्य हमें मिला है और आज जो यहां रोजी रोटी की तलाश में आयें, जिनको हमने शरण दिया, आज हमें ही हमारे अधिकारों से महरुम करने की साजिश रच रहें है, हमारे ही अधिकारों पर डाका डालने की फिराक में है, हमें इसकी लड़ाई लड़नी है, उसे नाकाम बनाना है, इस लिए चंद बाहरी लोगों के द्वारा बुलाया गए झारखंड बंद के विरोध में हमारे कार्यकर्ता हर सड़क हर गली में उतर कर विरोध करेंगे.
अपनी संस्कृति और रोजगार बाहरियों को नहीं थोप सकते
हम अपना रोजगार बाहरियों के हाथों में सौंप नहीं सकते, जब 2014 में तेलांगना राज्य का गठन हुआ तो वहां के सरकार के अगले 30 वर्षों कर वहां के नौकरियों को वहां के स्थानीय निवासियों के लिए लॉक कर दिया, जिससे की स्थानीय लोगों के हक हकुक की हकमारी नहीं हो सकें, फिर यही बात झारखंड में क्यों नहीं हो सकती. बाहर का कोई भी आदमी अब यहां रोजगार के बारे में सोचे भी नहीं. अब तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी कह दिया है कि हमारे कहां अब जो भी नियोजन होगा वह हमारे स्थानीय नागरिकों को लिए होगा. यह के संसाधनों का उपयोग अपने लोगों के लिए होगा, झारखंड एक खुला अखाड़ा बन गया है, जहां बाहरी लोग आकर हमें ही ललकार रहें है,
14 मार्च को हम विधान सभा को घेरने का काम करेंगे, जिन पर कानून बनाने की जिम्मवारी थी, वह हमारी हिफाजत करने में असमर्थ रहें, अब उन्हे कोई अधिकार नहीं है कि वह विधान सभा में बैठें,
20 बरसों की अंधेरी रात हमने बितायी है, अब हम अपने खून से सवेरा लायेंगे
सरकार बजट में रोजगार देने की बात करती है, लेकिन पहली प्राथमिकता तो झारखंडियों को परिभाषित करने की है, जब तक हम यह ही परिभाषित नहीं करेगे तब तक किसका नियोजन किया जाएगा. बीस बरसों की अंधेरी रात हमने बितायी है, अब हम झारखंडी ही सवेरा लाएगे.
पहली कक्षा से सभी जनजातीय और स्थानीय भाषाओं की पढ़ाई
गीता श्री उरांव ने कहा कि नौ स्थानीय भाषा जिसमें से पांच जनजातीय भाषा संताली, हो, कुडुख, मुंडारी और चार स्थानीय भाषा नागपुरी, कुरमाली, खोरठा और पंचपरगनीया की पढ़ाई पहली कक्षा सो होनी चाहिए.
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