हूल दिवस पर बोले हेमंत सोरेन, ‘शोषकों के खिलाफ न झुके थे, न कभी झुकेंगे, हूल विद्रोह जारी रहेगा…’

रांची. हूल दिवस पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भोगनाडीह की वीर भूमि को नमन किया। इस दौरान उन्होंने अमर वीर शहीद सिदो-कान्हू, फूलो-झानो, चांद-भैरव को श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हम झारखण्डवासियों की नसों में वीर पुरुखों का वही क्रांतिकारी खून बह रहा है। शोषकों के खिलाफ न हम कभी झुके थे, न कभी झुकेंगे। हूल विद्रोह जारी रहेगा…।

हूल दिवस पर बोले हेमंत सोरेन

दरअसल, झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन ने अपने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, ‘भोगनाडीह की वीर भूमि को शत-शत नमन। संथाल हूल विद्रोह की क्रांतिकारी भूमि को शत-शत नमन। सौगंध है वीर पुरुखों के खून से सिंचित इस मिट्टी की, झारखण्ड के साथ षड्यंत्र करने वाली तानाशाही ताकतों को चैन से नहीं रहने दूंगा।
उन्होंने अगले पोस्ट में लिखा, ‘शोषकों और अत्याचारियों को लगा था आदिवासी हैं, यह कैसे लड़ पाएंगे, यह षडयंत्र का सामना कैसे कर पाएंगे! इन्हें दबा देंगे तो इनका जल-जंगल-जमीन हथिया लेंगे।

उन्होंने आगे लिखा, ‘इसका जवाब भीषण संथाल हूल विद्रोह था। एक ही परिवार से अमर वीर शहीद सिदो-कान्हू, फूलो-झानो, चांद-भैरव ने असंख्य वीरों और वीरांगनाओं के साथ मिलकर शोषकों की ईंट से ईंट बजा दी थी। उन्होंने अपनी माटी के लिए संघर्ष करना-लड़ना स्वीकार किया, मगर कभी झुकना नहीं।’

हेमंत सोरेन बोले- ‘हूल विद्रोह जारी रहेगा…’

उन्होंने आगे लिखा, ‘हम झारखण्डवासियों की नसों में वीर पुरुखों का वही क्रांतिकारी खून बह रहा है। शोषकों के खिलाफ न हम कभी झुके थे, न कभी झुकेंगे। हूल विद्रोह जारी रहेगा… हूल विद्रोह के अमर वीर शहीदों की शहादत को शत-शत नमन। अमर वीर शहीद सिदो-कान्हो अमर रहें! झारखण्ड के वीर शहीद अमर रहें! जय झारखण्ड! जय जय झारखण्ड!’

इसलिए मनाया जाता है हूल दिवस

दरअसल, 1857 में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम से दो साल पहले 1855 में संथाल विद्रोह हुआ था। उस दौरान झारखंड के संथाल परगना में जनजातीय वीर-वीरांगनाओं ने विदेशी शासकों के खिलाफ हथियार उठाए थे। वीर सिद्धु-कान्हू ने हजारों संथाली वीरों को एकजुट किया और पूरी ताकत से अंग्रेजों से मुकाबला किया। इस विद्रोह में जनजातीय वीर-वीरांगनाओं के बलिदान को विस्मरणीय बनाने के लिए हूल दिवस मनाया जाता है।