Koderma: नेत्रहीनता को चुनौती नहीं, बल्कि अपनी ताकत बनाकर कोडरमा जिले के डोमचांच बाजार निवासी रौशन कुमार ने JPSC परीक्षा 2025 में 340वां रैंक हासिल कर सबको चौंका दिया है। मात्र 22 वर्ष की उम्र में यह उनकी तीसरी सरकारी नौकरी है। इससे पहले रौशन पोस्ट ऑफिस में और फिर SSC CGL परीक्षा पास कर सांख्यिकी पदाधिकारी के रूप में कार्यरत रहे हैं।
Koderma: बचपन से संघर्ष, लेकिन कभी नहीं मानी हार
रौशन की सफलता इस बात का प्रमाण है कि शारीरिक चुनौतियां किसी भी व्यक्ति को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकतीं, यदि उसके पास दृढ़ इच्छाशक्ति और परिवार का समर्थन हो। उन्होंने दृष्टिबाधित वर्ग में सफलता हासिल कर नेत्रहीन युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनने का कार्य किया है।
रौशन को बचपन से ही आँखों में निस्टिगमस नामक बीमारी थी, जिसके कारण उनकी दृष्टि बहुत कमजोर थी। हालांकि, परिवार को उनकी इस परेशानी का एहसास धीरे-धीरे हुआ। तमाम इलाज के बावजूद आंखों की रोशनी पूरी तरह ठीक नहीं हो सकी, लेकिन रौशन ने कभी इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया।
Koderma: भाई बना शिक्षक और बहन बनी साथी
पिता विनोद कुमार चंद्रवंशी, जो एक पारा शिक्षक रहे हैं, 2018 में सेवानिवृत्त हुए और उसी समय उनकी दृष्टि भी पूरी तरह चली गई। इस मुश्किल घड़ी में रौशन के बड़े भाई संजीव कुमार ने पूरे परिवार की जिम्मेदारी संभाली। संजीव ने होम ट्यूशन से न केवल परिवार का खर्च उठाया, बल्कि रौशन को पढ़ाया भी। यहां तक कि जब रौशन को पोस्ट ऑफिस की नौकरी मिली, तो संजीव गांव-गांव जाकर उनके साथ चिट्ठियां बांटने में मदद करते थे।
JPSC परीक्षा के दौरान, रौशन की छोटी बहन स्नेहा कुमारी ने श्रुति लेखक की भूमिका निभाई और विशेष रूप से खोरठा विषय के उत्तर लिखने में उनका साथ दिया। JPSC परीक्षा में जहां संजीव स्वयं सफल नहीं हो सके, वहीं रौशन की सफलता को वे अपनी जीत मानते हैं। रौशन की इस उपलब्धि से पूरा परिवार गर्वित और भावुक है।
शशांक शेखर की रिपोर्ट
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