Monday, September 29, 2025

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PDS डीलरों का 100 करोड़ बकाया, पारा शिक्षक-ATMA कर्मियों का वेतन अटका

झारखंड में PDS डीलरों का 100 करोड़ बकाया, पारा शिक्षक-ATMA कर्मियों का वेतन अटका। दुर्गापूजा के बाद आंदोलन की रणनीति तय होगी।


रांची: झारखंड में सरकारी योजनाओं से जुड़े कई वर्ग इस समय बकाया भुगतान न मिलने से नाराज हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित PDS के डीलर, पारा शिक्षक और ATMA (एग्रीकल्चर टेक्निकल मैनेजर) कर्मी हैं।

फेयर प्राइस शॉप डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ज्ञानदेव झा ने कहा कि राज्य के 25 हजार से अधिक PDS डीलरों का करीब 100 करोड़ रुपये से ज्यादा कमीशन बकाया है। उनका आरोप है कि 44 माह से कमीशन राशि का भुगतान नहीं हुआ है। हाल ही में विभागीय सचिव से मुलाकात कर भुगतान की मांग की गई थी, लेकिन अब तक केवल कुछ जिलों में दो माह (अप्रैल और मई 2025) की राशि दी गई है। एसोसिएशन का कहना है कि यह PDS कंट्रोल सिस्टम का उल्लंघन है।


Key Highlights

  • झारखंड में 25 हजार से अधिक PDS डीलरों को 100 करोड़ रुपये से ज्यादा कमीशन बकाया

  • दुर्गापूजा के बाद राज्यस्तरीय बैठक कर डीलर तय करेंगे आंदोलन की रणनीति

  • 60 हजार पारा शिक्षक और 3000 BRP-CRP को नहीं मिला मानदेय, संघों में आक्रोश

  • ATMA के 1100 से अधिक BTM और ATM कर्मियों को 6 माह से वेतन नहीं मिला

  • विभागीय प्रक्रिया की देरी से शिक्षक और कर्मी आर्थिक संकट में

  • आंदोलन, हड़ताल और कोर्ट जाने के विकल्पों पर विचार


डीलरों का आरोप है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 से लेकर 2022-23 तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत राशन वितरण कराने वाले कई डीलरों की 13 माह की कमीशन राशि अब भी बकाया है। वहीं, NFSA योजना के तहत जनवरी 2024 से सितंबर 2025 तक 21 माह की राशि भी नहीं दी गई है। ऐसे में दुर्गा पूजा के बाद डीलर राज्यस्तरीय बैठक कर आंदोलन की रणनीति बनाएंगे।

इधर, शिक्षा विभाग में भी नाराजगी बढ़ रही है। राज्य के 60 हजार पारा शिक्षक और 3000 BRP-CRP को इस माह का मानदेय नहीं मिला है। झारखंड सहायक अध्यापक संघर्ष मोर्चा और BRP-CRP महासंघ ने कहा कि जिलों से समय पर उपस्थिति रिपोर्ट नहीं भेजने के कारण मानदेय भुगतान रुका हुआ है। इसका खामियाजा शिक्षकों और कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है।

कृषि विभाग की एजेंसी ATMA के करीब 1100 BTM और ATM कर्मी भी बीते पांच से छह माह से बिना वेतन काम कर रहे हैं। इनका कहना है कि वे फसल बीमा, बीज वितरण, मृदा नमूना संग्रह और मिलेट मिशन जैसे महत्वपूर्ण कार्य निष्ठा से कर रहे हैं, लेकिन नियमित वेतन न मिलने से बच्चों की फीस और घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है।

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