झारखंड पात्रता परीक्षा में भाषाई विवाद तेज़, पलामू-गढ़वा और खूंटी में विरोध प्रदर्शन शुरू

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रांची: झारखंड पात्रता परीक्षा (JTET 2025) को लेकर प्रदेश में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। राज्य सरकार द्वारा हाल ही में आठ वर्षों के लंबे अंतराल के बाद घोषित इस परीक्षा का विज्ञापन अब भाषाई असंतुलन के कारण विवादों में घिर गया है। खासकर पलामू, गढ़वा और खूंटी जिलों में इस परीक्षा को लेकर स्थानीय छात्र संगठनों और जनप्रतिनिधियों ने मोर्चा खोल दिया है।

भाषा बनी विवाद की जड़

दरअसल, JTET 2025 के लिए जारी निर्देशिका के अनुसार, विभिन्न जिलों में स्थानीय भाषाओं के आधार पर प्रश्नपत्र निर्धारित किए गए हैं। लेकिन पलामू और गढ़वा जिलों के उम्मीदवारों को नागपुरी और कुड़ुख भाषा में परीक्षा देनी होगी, जबकि इन क्षेत्रों में भोजपुरी और मगही भाषाएं प्रमुखता से बोली जाती हैं। इसका तीखा विरोध शुरू हो गया है।

स्थानीय सांसद बी डी राम ने इस मामले में हेमंत सरकार पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि सरकार को राज्य की भाषाई विविधता की समझ नहीं है और यह “भाषाई थोप” की नीति पलामू और गढ़वा जैसे जिलों के साथ सौतेला व्यवहार है। उन्होंने आरोप लगाया कि यहां के युवाओं के लिए कुड़ुख और नागपुरी में परीक्षा देना लगभग असंभव है, क्योंकि इन भाषाओं का स्थानीय शैक्षणिक स्तर पर कोई आधार नहीं है।

खूंटी में मुंडारी को लेकर विरोध

पलामू और गढ़वा के बाद अब खूंटी जिले में भी विरोध की लहर उठ गई है। यहां की प्रमुख स्थानीय भाषा मुंडारी को JTET के पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया है और उसकी जगह नागपुरी को शामिल किया गया है। इस पर आदिवासी संगठन “मुंडारी भाषा-संस्कृति बचाओ संघर्ष समिति” ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

समिति ने डीसी को ज्ञापन सौंपते हुए मुख्यमंत्री से मांग की है कि मुंडारी भाषा को पुनः परीक्षा में शामिल किया जाए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार जानबूझकर मुंडा समाज के ऐतिहासिक और भाषाई अस्तित्व को समाप्त करने की कोशिश कर रही है। संगठन ने कहा कि मुंडारी वह भाषा है जिसने भगवान बिरसा मुंडा, जयपाल सिंह मुंडा और डॉ. रामदयाल मुंडा जैसे महापुरुषों को जन्म दिया है, और इस तरह की उपेक्षा अस्वीकार्य है।

क्या बदलेगा सरकार का रुख?

फिलहाल, JTET 2025 की भाषा नीति को लेकर विरोध लगातार तेज़ हो रहा है। एक ओर छात्र सड़क पर उतरकर आंदोलन कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक प्रतिनिधि और सामाजिक संगठन इसे एक बड़ी साजिश करार दे रहे हैं। अब निगाहें राज्य सरकार की ओर टिकी हैं कि क्या वह इस विरोध को गंभीरता से लेकर पुनर्विचार करेगी या फिर निर्णय पर अडिग रहेगी।

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