Wednesday, July 30, 2025

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Railway Minister On The Spot : कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसास्थल पहुंचे रेल मंत्री, हो रही जांच कि लोको पायलट की गलती या फिर सिग्नल ने ली जान

डिजीटल डेस्क : Railway Minister On The Spot : कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसास्थल पहुंचे रेल मंत्री, हो रही जांच कि लोको पायलट की गलती या फिर सिग्नल ने ली जान। सोमवार सुबह करीब पौने नौ बजे पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी के पास हुए ट्रेन हादसे की जगह पर तीसरे पहर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव पहुंचे। सड़क से घटनास्थल तक पहुंचने के लिए रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बाइक का सहारा लिया और मौके पर पहुंचे। वहां ट्रैक की हुई सफाई का जायजा लेने के साथ ही ट्रेनों के इस रूट पर सामान्य संचालन शुरू कराने की स्थिति की जानकारी ली। अस्पताल में उपचाराधीन घायलों की ताजा स्थिति जानी और हादसे के कारणों की जांच में जुटे रेलवे अधिकारियों से भी जरूरी फीड बैक लिया। बताया जा रहा है कि घटना पर रेलवे बोर्ड द्वारा मालागाड़ी के लोको पायलट को जिम्मेदार ठहराने पर भारतीय रेलवे लोको रनिंगमैन संगठन ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि जब खराबी सिंग्नल में थी तो लोको पायलट इसके लिए कैसे जिम्मेदार है?

सही से काम नहीं कर रहा था स्वचालित सिग्नलिंग सिस्टम

रेलवे बोर्ड की चेयरपर्सन जया वर्मा ने बताया कि सुबह 8.55 बजे के करीब यह हादसा हुआ। हादसे की प्रारंभिक वजह मालगाड़ी के ड्राइवर की ओर से सिग्नल तोड़ा जाना बताया जा रहा है, जिसकी वजह से ट्रैक पर खड़ी कंचनजंघा एक्सप्रेस को पीछे मालगाड़ी से धक्का लगा। उन्होंने कहा कि इस हादसे में मालगाड़ी के लोको पायलट और असिस्टेंट लोको पायलट की मौत हुई, जबकि कंजनजंघा एक्सप्रेस के गार्ड की भी मौत हो गई है। बताया गया कि पश्चिम बंगाल में रानीपानी रेलवे स्टेशन और छत्तर हाट जंक्शन के बीच स्वचालित सिग्नलिंग प्रणाली सही तरह से काम नहीं कर रही थी। सोमवार सुबह 5.50 बजे से ऑटोमेटिक सिंग्निलिंस सिस्टम में खराबी थी। ट्रेन नंबर 13174 (सियालदह कंचनजंघा एक्सप्रेस) सुबह 8:27 बजे रंगपानी स्टेशन से रवाना हुई और स्वचालित सिग्नलिंग विफलता के कारण रानीपत्रा रेलवे स्टेशन और छत्तर हाट के बीच रुक गई। तभी 8.55 मिनट पर यह हादसा हुआ और 9.01 मिनट पर सुबह रेलवे को इसकी जानकारी मिली।

खराब सिग्नल के नियम का उल्लंघन होने या न होने की भी जांच शुरू

रेलवे अधिकारियों ने बताया कि जब स्वचालित सिग्नलिंग प्रणाली विफल हो जाती है तो स्टेशन मास्टर टीए 912 नामक एक लिखित आधिकार-पत्र जारी करता है, जो चालक को खराबी के कारण उस सेक्शन के सभी रेड सिग्नलों को पार करने का अधिकार देता है। बताया जा रहा है कि रानीपतरा के स्टेशन मास्टर ने ट्रेन संख्या-13174 (सियालदह कंचनजंघा एक्सप्रेस) को टीए 912 जारी किया था। दूसरी ओर, जीएफसीजे नामक एक मालगाड़ी लगभग उसी समय सुबह 8:42 बजे रंगापानी से रवाना हुई और 13174 नंबर ट्रेन के पिछले हिस्से से टकरा गई, जिसके परिणामस्वरूप गार्ड का डिब्बा, दो पार्सल डिब्बे और एक सामान्य डिब्बा पटरी से पटरी से उतर गए। हालांकि अब ये तो जांच से ही पता चल सकेगा कि क्या मालगाड़ी को खराब सिग्नल को तेज गति से पार करने के लिए टीए 912 दिया गया था या फिर लोको पायलट ने खराब सिग्नल के नियम का उल्लंघन किया था। रेलवे अधिकारी ने बताया कि जब ऑटोमेटिक सिग्नलिंग सिस्टम फेल हो जाता है, तो स्टेशन मास्टर टीए 912 नामक एक लिखित प्राधिकरण जारी करता है, जो चालक को खराबी के कारण सेक्शन में सभी लाल सिग्नलों को पार करने का अधिकार देता है।

अधिकारियों के बयान पर लोको पायलट संगठन ने उठाए सवाल

अगर मालगाड़ी को टीए 912 नहीं दिया गया था तो चालक को प्रत्येक खराब सिग्नल पर ट्रेन को एक मिनट के लिए रोकना था और 10 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से आगे बढ़ना था। वहीं लोको पायलट संगठन ने रेलवे के इस बयान पर सवाल उठाया है कि चालक ने रेल सिग्नल का उल्लंघन किया। भारतीय रेलवे लोको रनिंगमैन संगठन (आईआरएलआरओ) के कार्यकारी अध्यक्ष संजय पांधी ने कहा कि लोको पायलट की मृत्यु हो जाने और सीआरएस जांच लंबित होने के बाद लोको पायलट को ही जिम्मेदार घोषित करना अत्यंत आपत्तिजनक है। जिस समय ट्रेन हादसा हुआ उस समय उस इलाके में काफी तेज बारिश हो रही थी। ऐसे में संभव है सिग्नल के लाल बत्ती को ड्राइवर बारिश की वजह से देख नहीं पाया हो और वह आगे बढ़ गया। ऐसी भी आशंका है कि चूंकि ऑटोमैटिक सिग्नल सिस्टम सही तरीके से काम नहीं कर रहा था और ऐसे में मैनुअल सिग्नल सिस्टम को मालगाड़ी का ड्राइवर फॉलो नहीं कर पाया। हांलांकि इसी ट्रैक पर आगे कंचनजंगा एक्सप्रेस खड़ी थी, जिसके ड्राइवर ने सभी नियमों का सही तरीके से पालन किया या नहीं उसकी भी जांच की जा रही है।

सड़क से घटनास्थल तक पहुंचने के लिए रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बाइक का सहारा लिया और मौके पर पहुंचे।
कंचनजंगा एक्सप्रेस और मालगाड़ी के टकराने के बाद का मंजर

एक ही रेल ट्रैक पर एक समय पर इसलिए आ जाती हैं दो ट्रेनें, जानिए रेलवे का ब्योरा…

सोमवार को हुए कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसे के बाद रेलवे पर कई सवाल उठ रहे हैं कि आखिर किसकी गलती की वजह से ऐसा हादसा हुआ। बताया जा रहा है कि रेलवे का इस संबंधी सिस्टम खास तरीके से काम करता है और एक ट्रैक पर दो ट्रेनों को आने से रोका जाता है लेकिन उसमें गलती होते ही की वजह से कंचनजंगा एक्सप्रेस सरीखे हादसों का सामना करना पड़ता है। रेलवे में हर ट्रेन और उसके रूट के हिसाब इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम सेट होता है, जिसकी वजह से हर ट्रेन अलग ट्रैक पर होती है और दुर्घटना की कोई संभावना नहीं होती है। लेकिन एक ट्रैक पर दो ट्रेनों की आपस में भिड़ने की वजह सिग्नल फाल्ट या इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग चेंज में कोई गलती होना होती है। रेलवे ट्रैक में इलेक्ट्रिकल सर्किट इंस्टॉल लगाए जाते हैं। जैसे ही ट्रेन ट्रैक सेक्शन पर आती है, तो इस सर्किट के जरिए ट्रेन के आने का पता चलता है। ट्रेन के आने का पता चलने के साथ ही ट्रैक सर्किट इसकी जानकारी आगे फॉरवर्ड करता है और इसके आधार पर ईआईसी कंट्रोल सिग्नल आदि को कंट्रोल करता है। इस जानकारी के आधार पर ये सूचना दी जाती है कि अब ट्रेन को किस तरफ जाना है। कंट्रोल रुम के जरिए ही ट्रेन के रूट को तय कर दिया जाता है। दो पटरियों के बीच एक स्विच होता है, जिसकी मदद से दोनों पटरियां एक दूसरे जुड़ी हुई होती हैं। ऐसे में जब ट्रेन के ट्रैक को बदलना होता है, तो कंट्रोल रूम में बैठे कर्मचारी कमांड मिलने के बाद पटरियों पर लगे दोनों स्विच ट्रेन की मूवमेंट को राइट और लेफ्ट की तरफ मोड़ते हैं और पटरियां चेंज हो जाती हैं। लेकिन, अभी भी कई बार टेक्निकल कारणों से या फिर मानवीय गलती की वजह से ट्रैक चेंज नहीं हो पाता है और ट्रेन तय रूट से अलग ट्रैक पर चली जाती है। इसका नतीजा ये होता है कि वो ट्रेन उस ट्रैक पर आ रही ट्रेन से टकरा जाती है।

हादसास्थल पर इस्टॉल नहीं है ऐसे मामलों से बचाने वाला कवच सिस्टम

देश में बड़े पैमाने पर कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसे सरीखी दुर्घटनाओं से बचने या उन्हें रोकने को कवच सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है। रेलवे बोर्ड के मुताबिक, कई रूटों पर इसका इंस्टॉलेशन किया जा रहा है। जहां तक इस रूट की बात करें तो यहां फिलहाल यह सिस्टम नहीं इंस्टॉल हुआ है। कवच दिल्ली-गुवाहाटी रूट पर प्लान है और देश में फिलहाल 1,500 किलोमीटर के ट्रैक पर कवच काम कर रहा है। दावा किया जा रहा है कि इस साल 3,000 किलोमीटर में कवच लग जाएगा और अगले साल 3,000 किलोमीटर की और प्लानिंग है। इसके लिए जो कवच सिस्टम बनाकर आपूर्ति करते हैं, उन्हें उत्पादन बढ़ाने को कहा गया है। इस साल जो 3,000 किलोमीटर में कवच लगने हैं, उसमें बंगाल (दिल्ली हावड़ा रूट) भी है।

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