रांची: झारखंड में इस वर्ष मॉनसून का असर असामान्य रूप से देखने को मिल रहा है। खरीफ मौसम में राज्य के कई जिलों में सामान्य से बहुत अधिक बारिश हो गई है, जबकि कुछ जिलों में सामान्य से कम वर्षा दर्ज की गई है। इस असंतुलन ने किसानों के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिकों और कृषि विभाग की चिंता बढ़ा दी है।
मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य के 14 जिलों में सामान्य से 50% या उससे अधिक बारिश हो चुकी है, जिसमें से 7 जिलों में सामान्य से दोगुनी बारिश रिकॉर्ड की गई है। इन्हें “बहुत अधिक बारिश” की श्रेणी में रखा गया है। वहीं, 5 जिलों में सामान्य से 11% से 50% तक अधिक वर्षा हुई है, जिसे “अधिक बारिश” की श्रेणी में रखा गया है। केवल गिरिडीह जिले में सामान्य वर्षा हुई है। इसके विपरीत, संताल परगना के चार जिलों और गढ़वा में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई है।
बारिश के असंतुलन से धान की खेती संकट में
बारिश की अत्यधिक मात्रा वाले जिलों में धान का बिचड़ा (रोपाई हेतु पौधा) तैयार नहीं हो पा रहा है, जिससे रोपनी का काम बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। दूसरी ओर, जहां बारिश कम हुई है, वहां किसान बारिश के इंतजार में खेत नहीं जोत पा रहे हैं। अब तक केवल तीन प्रतिशत खेतों में ही रोपाई संभव हो सकी है।
झारखंड में आमतौर पर 15 जुलाई तक रोपनी का अनुकूल समय माना जाता है। लेकिन अब तक मात्र 58 हजार हेक्टेयर में ही धान की बुआई हो पाई है, जबकि राज्य सरकार ने 18 लाख हेक्टेयर में धान रोपाई का लक्ष्य रखा था।
गुमला और पश्चिम सिंहभूम में छींटा विधि से बुआई
राज्य के कुछ जिलों में सीधी बुआई की जाती है, जहां पानी की आवश्यकता अपेक्षाकृत कम होती है। गुमला, पश्चिमी सिंहभूम और आसपास के इलाकों में छींटा विधि से धान की बुआई की गई है। हालांकि कई प्रमंडलों में अभी तक रोपाई की शुरुआत भी नहीं हो पाई है।
कृषि विभाग ने सीआरआईडीए से मांगी मदद
इस मौसमीय असंतुलन को देखते हुए कृषि विभाग ने हैदराबाद स्थित सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राईलैंड एग्रीकल्चर (CRIDA) से संपर्क किया है। विभाग ने वैकल्पिक फसल योजना तैयार करने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। जिलों से स्थिति की रिपोर्ट मंगाई जा रही है ताकि क्षेत्रवार समाधान निकालकर किसानों को राहत दी जा सके।
पिछले दशक में भी सूखे की मार
गौरतलब है कि झारखंड में पिछले 10 वर्षों में 7 से 8 वर्षों तक सूखा पड़ा है, जिससे खेती-किसानी पर भारी असर पड़ा था। इस बार बारिश समय पर तो आई, लेकिन असमान वितरण ने फिर से राज्य की धान आधारित कृषि प्रणाली को संकट में डाल दिया है।
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