Pakur- नित्य काली मंदिर में सालों से तांत्रिक विधि से पूजा अर्चना होती आई है. यहां मंदिर काफी प्राचीन है,पाकुड़ के नित्य काली और तारापीठ का संबंध ठीक वैसा ही माना जाता है जैसे बाबा बैद्यनाथ और बासुकीनाथ के बीच है. राजा पाड़ा में स्थित प्रसिद्ध नित्य काली मंदिर में सालों से तांत्रिक विधि से पूजा अर्चना होती आई है.
राजा पृथ्वीचंद्र शाही ने करवाया था नित्य काली मंदिर की स्थापना
इस मंदिर का निर्माण राजा पृथ्वीचंद्र शाही ने 1737 में कराया था.
मंदिर के निर्माण के बाद मां काली के परम भक्त साधक बामाखेपा ने तीन दिनों तक यहां साधना की थी.
मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी कुछ सच्चे मन से मांगता है, उसकी मन्नतें पूरी हो जाती है. मंदिर में झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल, बिहार और दूसरे राज्यों से भी लोग पूजा-अर्चना करने आते हैं.
इस प्राचीन मंदिर की कहानी बताते हैं कि सम्राट अकबर के समय में पाकुड़ के राजा पृथ्वी चंद्र शाही को मां काली ने सपने मे बताया की मूर्तिकार खुद आएंगे. जिस रात राजा को सपना आया ठीक उसके सुबह ही एक आदमी राजा के दरबार पहुंचा और खुद को बनारस का मूर्तिकार बताया. उसने राजा को यह बताया कि उसे मूर्ति का रूप देना है. राजा को पूरा विश्वास हो गया कि मां काली ने जो सपना दिया था वह सच है.
एक दिन में ही बनायी गयी मां काली की प्रतिमा
तांत्रिक के मुताबिक जो मूर्तिकार के रूप में आए थे,
वह कोई और नहीं बल्कि बाबा विश्वकर्मा खुद थे .
तभी से इस मंदिर में प्रतिदिन पूजा अर्चना की जाने लगी,
इस मंदिर में खासकर शनिवार और मंगलवार के अलावा
काली पूजा के दिन तांत्रिक विधि विधान से विशेष पूजा-अर्चना होती है l
पाकुड़ के पुरोहित भरत मिश्रा ने बताया कि
मंदिर निर्माण के बाद भाव साधक बामाखेपा स्वयं पाकुड़ आए,
उन्होंने इस मंदिर में 3 दिन तक मां की साधना किया l
इस दौरान मां काली ने साधक बामाखेपा को तारापीठ जाकर साधना करने की बात कही .
पुरोहित के मुताबिक प्रतिमा स्थापित करने के बाद मां का उग्र रूप को देखते हुए
पुत्र के रूप में गणेश भगवान की प्रतिमा स्थापित की गई,
वही मंदिर के चारों ओर शिवलिंग स्थापित कराया गयाl
पुरोहित ने बताया कि जो संबंध बाबा बैद्यनाथ और बासुकीनाथ का है,
ठीक उसी प्रकार पाकुड़ के नित्य काली और तारापीठ का संबंध हैl
रिपोर्ट :- संजय सिंह