भ्रामक सूचनाओं से भरा सोशल मीडिया के दौर में बरकरार है भिखारी ठाकुर की प्रासंगिकता

Chhapra: भोजपुरी साहित्य के अमर रचनाकार, गीतकार, लोक नाटककार और भोजपुरी के शेक्सपियर माने जाने वाले भिखारी ठाकुर की 134वीं जयंती पर बिहार सहित देश और दुनियां में रहने वाले भोजपुरिया समाज उन्हें याद कर रहा है. उत्तर भारत ही नहीं बल्कि कई देशों के भोजपुरी भाषा-भाषी क्षेत्रों में अपनी कालजयी रचनाओं के माध्यम से समाज परिवर्तन का अद्भुत राग छेड़ने वाले महान लोक कलाकार, लोक गायक भिखारी ठाकुर की प्रासंगिकता आज भी बरकरार है.

नारी मन की पीड़ा, दलितों का आज भी मुख्यधारा से जुड़ने के लिए संघर्ष , ग्रामीण समाज की बेरोजगारी, विस्थापन और उसकी जातिगत विद्रुपताएं, दिन पर दिन बढ़ती आर्थिक असमानता की खाई, अन्ध विश्वासों और भ्रामक सूचनाओं से भरा सोशल मीडिया आज भी भिखारी ठाकुर को प्रासंगिक बनाये हुए है. बल्कि कहा तो यह जा सकता है दिन पर दिन भिखारी ठाकुर की प्रासंगिकता और भी सघन होती जा रही है.

सारण जिले के सदर प्रखंड क्षेत्र में कुतुबपुर दियारा में 18 दिसम्बर 1887 को एक गरीब नाई परिवार में जन्मे भिखारी ठाकुर का पैतृक गांव आज गंगा नदी के कटाव के कारण गंगा में विलीन होने की कगार पर है. इसी गांव से निकल भिखारी ठाकुर ने समाज में फैली कुरीतियों के विरुद्ध सामाजिक लड़ाई लड़ी थी.

भिखारी ठाकुर की बटोहिया, बिदेशिया, बेटी बेचवा सहित कई अन्य नाटकों की चर्चा राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी होती रही है. लोक चेतना के रचनाकार भिखारी ठाकुर के नाटकों को राष्ट्रीय सम्मान तो प्राप्त है. लेकिन सरकार और समाज की उपेक्षा के कारण उनके परिजन आज भी फांकाकशी को मजबूर हैं. गंगा और सरयू के किनारे मिटटी के मकान में भिखारी ठाकुर का जन्म हुआ था. आज भी उनकी स्मृतियों को सजा कर रखा गया है. बुनियादी शिक्षा से वंचित रहने के बावजूद जिस तरह भिखारी ठाकुर ने अपनी रचनाओं में समाज में फैली कुरीतियों, अन्धविश्वासों और विभेदों को उजागर किया वह आज भी नए लेखकों के लिए एक चुनौती बन खड़ा है.

यह एक तथ्य है दलित समुदाय से नहीं आने के बावजूद भिखारी ठाकुर ने दलितों की पीड़ा और संत्रासना को बगैर किसी दलितवाद या दलित अधिकार का जामा पहनाए बड़ी ही चतुराई और प्रखरता से रेखांकित कर दिया और उनकी पीड़ा से व्यापक जन समुदाय को एकाकार करने में सफलता प्राप्त की. महिलाओं की बेबसी और वंचना को भी अपने नाटकों के माध्यम से स्वर दिया. लेकिन रोजगार की अनुलब्धता और बाढ़ की विभीषिका झेलते भिखारी ठाकुर के गांव के अधिकांश लोग आज पलायन को मजबूर है और इससे भिखारी ठाकुर का परिवार भी अछूता नहीं है. भिखारी ठाकुर के प्रपौत्र भी आज उसी बेरोजगार का सामना कर रहे हैं जिसका चित्रण कभी भिखारी ठाकुर ने अपनी रचनाओं में किया था. उन्हे आज भी एक छोटी सी नौकरी की तलाश है.

रिपोर्ट- रणजीत कुमार

 

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