बिहार शिक्षा का बना रोल मॉडल! हुई लाखों शिक्षकों की नियुक्ति, स्कूलों में रहा ऐतिहासिक नामांकन। स्कूलों में बच्चियों की संख्या 51 फीसद के पार! बिहार में 1.77 करोड़ से ज्यादा बच्चों का एडमिशन। 5,80000 शिक्षकों, 36,947 प्रधान शिक्षक और 5,971 प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति से बढ़ा शिक्षा का ग्राफ। 2005 में 12.5 फीसद बच्चे थे स्कूल से बाहर थे, अब 1 फीसद से भी कम… जानिए कैसे हुआ संभव। इस साल शिक्षा पर सबसे अधिक फोकस! जानिए सरकार कितना खर्च करने वाली है सरकार
पटना: बिहार शिक्षा के क्षेत्र में लगातार नवह मुकाम हासिल कर लिया है, जिसकी मिसाल आज देशभर में दी जा रही है। एक दौर था जब राज्य में स्कूलों में शिक्षक, कक्षाएं और छात्राओं की भागीदारी बेहद सीमित थी। लेकिन 2005 से अब तक दो दशकों की दूरदर्शी नीतियों और अथक प्रयासों का ही नतीजा है कि आज बिहार शिक्षा के क्षेत्र में आत्मविश्वास से भरा हुआ है।
5 लाख 80 हजार से अधिक शिक्षकों की नियुक्ति
बीपीएससी के माध्यम से राज्य में तीन चरणों में कुल 2,38,744 शिक्षकों की नियुक्ति की गई है। इसके अलावा, 2005 से अब तक कुछ 5,80000 शिक्षकों की अलग अलग तरीके से बहाल हो चुके हैं। बिहार सरकार के आंकड़ों के अनुसार राज्य में कुल 36,947 प्रधान शिक्षक और 5,971 प्रधानाध्यापक बहाल किए गए हैं। स्थानीय निकायों से नियुक्त 2,53,961 शिक्षकों को विशिष्ट शिक्षक का दर्जा देकर स्थायित्व और सम्मान दिया गया है। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए 7,279 विशेष शिक्षक और 6,421 विद्यालय सहायक की नियुक्ति भी की जा रही है।
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स्कूलों में बच्चियों की संख्या 51 फीसद के पार!
बिहार सरकार शिक्षा को लेकर सबसे ज्यादा गंभीर है। इस बात का प्रमाण ये है कि वित्तीय वर्ष 2025-26 के शिक्षा के लिए 60, 964 करोड़ का बजट निर्धारित किया गया है। जो राज्य के कुल राजस्व व्यय का सबसे बड़ा हिस्सा है। सरकार के लगातार प्रयासों का नतीजा ये है कि स्कूलों में बच्चों का नामांकन 2005 के 1.45 करोड़ से बढ़कर 2025 में 1.77 करोड़ तक पहुंच गया है।
सिर्फ नामांकन ही नहीं, सरकारी लड़कियों की हिस्सेदारी भी 44.1 फीसद से बढ़कर 51.4 फीसद हो गई है। माना जा रहा है यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक ऐतिहासिक छलांग है। जहां 2005 में 12.5 फीसद बच्चे स्कूल से बाहर थे, वहीं अब यह आंकड़ा 1 फीसद से भी नीचे आ चुका है।
स्कूलों की कक्षाएं और आधारभूत संरचना तीन गुना बढ़ी
राज्य में 2005 में जहां 1,43,543 कक्षाएं हुआ करती थीं। वहीं, अब इनकी संख्या बढ़कर 3,80,498 हो गई हैं। इससे स्कूलों में बच्चों के बैठने, पढ़ने और शिक्षकों से संवाद की गुणवत्ता में सुधार आया है। छात्र-शिक्षक अनुपात 65:1 से सुधरकर 32:1 और छात्र-कक्षा अनुपात 92:1 से घटकर 35:1 हो गया है। जो शिक्षण गुणवत्ता की सुखद तस्वीर पेश करती है।
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