सरायकेला: झारखंड की राजनीति में सरायकेला विधानसभा सीट पर हलचल मची हुई है। चंपाई सेरेन, जो एक समय झारखंड के मुख्यमंत्री रहे, भाजपा में शामिल होकर एक बार फिर चुनावी मैदान में कूदने को तैयार हैं। ऐसा लगता है जैसे पुरानी कहावत, “वापसी की कहानियां हमेशा दिलचस्प होती हैं,” यहां एक बार फिर सच साबित हो रही है।
गणेश महली, जो झामुमो के उम्मीदवार हैं, पिछले चुनाव में चंपाई को कड़ी टक्कर दे चुके हैं। “दूध का दूध, पानी का पानी” वाली स्थिति में, अब जनता को यह तय करना है कि कौन बेहतर है। क्या चंपाई अपनी पुरानी जादूई छवि को फिर से चमकाने में सफल होंगे, या गणेश महली अपनी नई धार से उन्हें चुनौती देंगे?
इस बार चुनावी समीकरण कुछ अलग नजर आ रहा है। चंपाई की भाजपा में एंट्री ने उन्हें एक नया चेहरा प्रदान किया है, और उनकी मजबूत स्थिति निश्चित रूप से कुछ फायदेमंद साबित हो सकती है। लेकिन, “भूतकाल की गलती को भविष्य में न दोहराना” का ध्यान रखना होगा। 34 साल से एक ही चेहरे की मौजूदगी पर एंटी-इंकंबेंसी का मुद्दा उठ सकता है।
शहरी वोटों का 45% हिस्सा भाजपा के लिए अच्छा संकेत है। “शहरों में दिमाग चलता है,” यह कहावत यहां लागू होती है। यदि भाजपा इस शहरी ताने-बाने को अपने पक्ष में करने में सफल रही, तो चंपाई के लिए रास्ता आसान हो सकता है। लेकिन आदिवासी वोटों का बंटवारा भी एक महत्वपूर्ण तत्व हो सकता है। “दो चूहे एक साथ नहीं चल सकते,” इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, यदि वोटों में विभाजन होता है, तो इसका सीधा लाभ भाजपा को मिल सकता है।
चंपाई सुरेन अपने अपमान को चुनावी मुद्दा बनाकर जनता से सहानुभूति पाने की कोशिश कर सकते हैं। “सहानुभूति की लहर पर चलना” हमेशा सियासत में कामयाब हो सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह लहर उन्हें सुरक्षित किनारे तक पहुंचाएगी?
आखिरकार, यह चुनाव केवल सरायकेला की किस्मत नहीं, बल्कि झारखंड की राजनीति में एक नया अध्याय भी लिख सकती है। “चालाक बाघ से सतर्क रहो,” यह मुहावरा हमें यह याद दिलाता है कि सावधानी बरतना हमेशा जरूरी होता है। अब बस चुनावी नतीजों का इंतजार है, जो बताएंगे कि कौन सा चेहरा अगले पांच साल के लिए सरायकेला का विधायक बनेगा।