चुनावी रैली के दौरान दर्द से कराह उठे तेजस्वी, कार्यकर्ताओं ने गाड़ी में बैठाया

चुनावी रैली के दौरान दर्द से कराह उठे तेजस्वी, कार्यकर्ताओं ने गाड़ी में बैठाया

पटना : लोकसभा चुनाव चरम पर है। नेताओं का प्रचार-प्रसार का सिलसिला निरंतर जारी है। बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव हर रोज कम से कम तीन से चार चुनावी रैली को संबोधित कर रहे हैं। कल यानी शुक्रवार को तेजस्वी यादव अररिया में चुनावी जनसभा को संबोधित कर रहे थे उसी दौरान उनको पीठ में अचानक दर्द हो गया। किसी तरह वहां मौजूद राजद के नेता, कार्यकर्ता और मौके पर मौजूद पुलिसकर्मी ने उन्हें पकड़कर गाड़ी तक पहुंचाया। उसी को लेकर तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट जारी किया है।

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तेजस्वी यादव ने अपने पोस्ट में लिखा है कि महीनों से अलट-पलट वाली अथक सामाजिक राजनीतिक यात्रा रही है। आराम के अभाव एवं निरंतर यात्रा के कारण दो हफ्ते से कमर में हल्का दर्द था, दो दिन से अचानक बढ़ गया। लेकिन मेरा ये दर्द बिहार के उन करोड़ों बेरोजगार युवाओं की तकलीफ के आगे कुछ भी नहीं है जो नौकरी-रोजगार की आस में बैठे हैं जिनके सपनों को विगत 10 वर्षों में धर्म की आड़ में कुचला गया है। मैं अपने दर्द को भूल जाता हूं जब देखता हूं कैसे गरीब माताओं-बहनों को महंगाई के कारण रसोई चलाने में भारी पीड़ा का अनुभव होता है। किसान भाइयों को सिंचाई के साधन व फसल का उचित दाम नहीं मिलने तथा संसाधनों के अभाव एवं रोजी-रोटी के लिए लाखों साथियों के पलायन का कष्ट देखता हूँ तो मुझे मेरा दर्द महसूस भी नहीं होता।

तेजस्वी ने आगे लिखा कि छात्र को पीड़ा हैं क्योंकि उन्हें अच्छी पढ़ाई नहीं मिल पा रही। बिहार के मेरे बुजुर्गों की पीड़ा है कि उन्हें अच्छी दवाई नहीं मिल पा रही, थाना और ब्लॉक के भ्रष्टाचार से आमजन परेशान है। हर वर्ग को पीड़ा है क्योंकि उनके अधिकार, उनका न्याय उन्हें नहीं मिल पा रहा है। मैं इन सबों की तकलीफ में अपने आप को सांझीदार मानता हूं।बिहार में एनडीए सरकार से जनता त्रस्त है। ऐसे में यदि मैंने अपनीं पीड़ा की चिंता की और ये कदम रुक गए तो फिर लोगों की उम्मीदें भी बुझ जाएगीं तथा महंगाई, तानाशाही, अत्याचार और अन्याय की आग में बिहार झुलसता रहेगा। इसलिए मैंने तय किया है कि भले ही बाधा कितनी हो, भले ही दर्द कितना हो, रुकना नहीं है, झुकना नहीं है और थकना नहीं है। लक्ष्य की प्राप्ति तक चलते जाना है, बढ़ते जाना है, जीतते जाना है जीताते जाना है। लक्ष्य प्राप्त किए बिना रुकना मेरे खून में नहीं है।

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अविनाश सिंह की रिपोर्ट

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