पेंशन से कटाई थी अंबेसडर कार की कीमत
सीएम हेमंत ने निधन पर जताया शोक
रांची : पूर्व मंत्री यदुनाथ बास्के का निधन- पूर्व मंत्री और झामुमो के वरिष्ठ नेता
Highlights
95 वर्षीय यदुनाथ बास्के का बुधवार को निधन हो गया.
उन्होंने घाटशिला के निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली.
वे काफी दिनों से बीमार चल रहे थे और 30 अप्रैल से उनका इलाज चल रहा था.
बुधवार दोपहर 2ः20 बजे निधन हुआ. उनका अंतिम संस्कार गुरुवार को किया जाएगा.
उनके निधन पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने शोक जताया.
हम सब के मार्गदर्शक थे यदुनाथ बास्के- सीएम हेमंत
सीएम हेमंत ने अविभाजित बिहार में पूर्व वन एवं कल्याण मंत्री यदुनाथ बास्के के निधन पर
गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा कि हमने एक वरिष्ठ नेता और अभिभावक को खो दिया है. वे हमारे आधार स्तंभ थे, हम सब के मार्गदर्शक थे. आज भले ही बास्के जी हमारे बीच नहीं है, मगर उनका संघर्ष और त्याग हमें हमेशा प्रेरणा देता रहेगा. मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा को शांति एवं शोकाकुल परिजनों को दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करने की कामना ईश्वर से की. बता दें कि उनसे मिलने के लिए पिछले दिनों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन घाटशिला आए थे और उनसे मुलाकात कर हालचाल जाना.
बेहर सरल और साधारण नेताओं में गिने जाते थे यदुनाथ
झारखंड पार्टी के टिकट पर 1969 में पहली और आखिरी बार विधायक और मंत्री बने यदुनाथ बास्के बेहद सरल, साधारण और मृदुभाषी नेताओं में गिने जाते थे. सफेद धोती-कुर्ता पहनना उन्हें पसंद था. उनके साथ रहने वाले विधायक और मंत्री बनने के बाद की दो घटनाएं बड़े चाव से सुनाते थे.
दशकों तक रही अंबेसडर कार
मंत्री बनने के बाद उन्हें एक अंबेसडर कार मिली थी. चुनाव हारने के बाद भी वह उन्हीं के पास रही. काफी समय बाद उन्हें नोटिस आया कि कार का बकाया उन्हें चुकाना है. लोगों का कहना है कि वे तो समझ रहे थे कि कार उन्हें सरकार से गिफ्ट में मिली है. परंतु जब नोटिस आया तो उन्हें समझ में आया कि वह कर्ज था. फिर उन्होंने विधानसभा सचिवालय से कहा कि उनकी पेंशन से किस्त में राशि काट ली जाए. इस तरह वह मामला सुलझा. वह अंबेसडर कार उनके पास दशकों तक रही.
बाद में कंडम होने के बाद भी उसे घर के पास ही लकड़ी के ऊपर रखा गया था. एक बार मंत्री रहते वे पटना से जमशेदपुर आ रहे थे. पुरुलिया के पास ट्रेन को रोक दिया गया. बहुत देर रुकने के बाद साथ के लोगों ने उनसे कहा कि वे मंत्री हैं, आखिर कितनी देर यहां फंसे रहेंगे. वे अपनी ओर से कुछ करें. उन्हें डीआरएम से बात करनी चाहिए.
रिपोर्ट: मदन सिंह