यूक्रेन की बर्बादी से 14 हजार भारतीय मेडिकल छात्रों का भविष्य दांव पर

एनएमसी जल्द लेगा फैसला

नई दिल्ली : इस साल फरवरी में जैसे ही रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, भारत तक इसकी दहशत पहुंच गई.

यूक्रेन में मेडिकल सहित अन्य कोर्सेज कर रहे भारतीय छात्रों के अभिभावक

अपने नौनिहालों का हाल जानने को व्याकुल हो उठे.

सकुशल देश वापसी के बाद से इन छात्रों के समक्ष भविष्य की चिंता है.

खासतौर पर मेडिकल के छात्र देश वापसी के साथ यह मांग दोहराते रहे हैं कि

सरकार इन छात्रों को भारतीय मेडिकल कॉलेजों में समायोजित करने की अनुमति दे.

इसे लेकर मार्च में ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई और

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) से पूछा था.

अब एनएमसी इस संबंध में कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करेगा, जिसपर सभी की निगाहें लगी हुई हैं.

निजी या डिम्ड विश्वविद्यालयों में मिल सकता है दाखिला

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एनएमसी यूक्रेन के उन मेडिकल छात्रों को राहत दे सकता है जिन छात्रों की पढ़ाई पूरी होने के करीब है. हालांकि इन छात्रों को सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सरकारी के बजाय निजी या डिम्ड विश्वविद्यालयों में दाखिला मिल सकता है.

5 माह बाद भी नहीं रूका युद्ध

रूस के हमले के बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन गंगा के तहत यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों की सकुशल देश वापसी कराई थी. भारतीय छात्रों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार ने अपने अलग-अलग मंत्रियों को वहां भेजा था. जिसके बाद अन्य छात्रों के साथ यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे 14 हजार छात्र भी देश वापस लौट सके. शुरू में ये छात्र उम्मीद कर रहे थे कि यूक्रेन में जल्द ही हालात सामान्य होने के साथ वे अपने-अपने शिक्षण संस्थानों में लौट सकेंगे लेकिन पांच माह बाद भी युद्ध रुकने के आसार नहीं लग रहे हैं और इस दौरान यूक्रेन तबाही के कगार पर पहुंच गया है.

ऐसे में यूक्रेन से लौटे भारतीय छात्रों के समक्ष भविष्य की चिंता है. क्योंकि सरकार ने यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद उसके आसपास के देशों में मेडिकल छात्रों को समायोजित किये जाने के प्रयास शुरू किये थे जो परवान नहीं चढ़े.

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