Hazaribagh : गरडीह : अगर गर्भवती महिला के साथ बीच रास्ते में कोई हादसा हो जाए तो क्या सरकार खुश रहेगी. महिलाओं और बीमार लोगों को सड़क के अभाव में समय पर अस्पताल पहुंचाना काफी मुश्किल होता है यह कहना है हजारीबाग के इचाक प्रखंड स्थित गरडीह गांव की एक महिला का.
जो श्रमदान कर सड़क बनाने में जुटी रही. उसने सरकार से सीधा सवाल किया है कि क्या सिर्फ इन गांवों तक वो वोट मांगने के लिए ही आ सकते हैं. यहां के बीमार कैसे अस्पताल पहुंचेंगे और कैसे उनके गांवों का विकास होगा इस पर कोई ध्यान नहीं देना है. ऐसे ही सवाल वहां के अन्य ग्रामीण ने भी पूछा है. उन्होंने कहा है कि जनप्रतिनिधि सिर्फ वोट मांगने के लिए ही क्षेत्र में आते हैं. दुर्गम पहाड़ियों के बीच बसे इस गांव में सड़क निर्माण की अत्यंत आवश्यकता है.
सरकार या वन विभाग कोई भी सड़क निर्माण करा दे: ग्रामीण
आजादी के 75 वर्षों बाद भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित इचाक प्रखंड के डाडी घाघर पंचायत का गरडीह गांव. प्रखण्ड मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर बसी गरडीह गाँव में सि़र्फ आदिवासी समुदाय के मुर्मू सोरेन बेसरा और हेम्ब्रम मांझी समाज के लोग ही रहते हैं. जहाँ विकास के नाम पर मूलभूत सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हैं.
सरकार : मुलभूत सुविधाओं से कोसों दूर है गरडीह गांव
सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली के साथ-साथ स्वच्छ पेयजल से भी लोग कोसों दूर हैं. घने जंगलों में पहाड़ों के बीच सैकड़ों लोग रहते हैं. आज भी वहां के लोग नदी तालाब और कुआं के पानी ही पीते हैं. वहां की महिलाएं पगडंडियों से होकर लगभग 500 मीटर दूर स्थित नदी में चुआं बनाकर पीने के लिए पानी घर लाती हैं. पेयजल के साथ-साथ शिक्षा की स्थिति को देखें तो स्कूल के नाम पर नव प्राथमिक विद्यालय है लेकिन 5 साल का बच्चा तीन किलोमीटर दूर बगल के स्थित सरकारी विद्यालय में पढ़ाई करने जाता है.
‘गांव में चिकित्सा की कोई सुविधा नहीं’
गांव के सैकड़ों घरों के परिवारों में लगभग 500 से 1000 सदस्य रहते हैं. जहां स्वास्थ्य उपकेंद्र तो दूर स्वास्थ्य विभाग के कोई कर्मचारी और ना ही नर्स कभी गांव में आती हैं. बीमार लोगों के लिए जड़ी-बूटी ही एक मात्र सहारा होता है। गांव की महिलाओं ने बताया कि जब कभी कोई ज्यादा बीमार पड़ जाता है तो गांववाले उसे खटिया पर लादकर या कुर्सी पर बिठाकर गांव से लगभग 05 किमी का जंगली रास्ता तय कर पक्की सड़क तक पहुंचते हैं. जहां से किसी वाहन के सहारे स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंच पाते हैं. कभी-कभी तो रास्ते में ही बीमार दम तोड़ देते हैं.
बरसात में पूरी तरह टूट जाता है गांव का संपर्क
बारिश के दिनों में गांव का संपर्क पूरी तरह टूट जाता है.
चारों ओर से जंगलों से गांव घिरे होने तथा सुलभ मार्ग के अभाव
में सरकारी एंबुलेंस यहां पर नहीं पहुंचता है. गांव वालों का कहना है कि उनके क्षेत्र के जनप्रतिनिधि कभी-कभी दिख जाते हैं जबकि बहुत सारी योजनाओं की जानकारी भी लोगों को नहीं है.
ग्रामीणों ने श्रमदान कर बनाई सड़क
सड़क की जरुरत को पूरा करने के लिए यहां के ग्रामीणों द्वारा
श्रमदान से सड़क बनाया गया. 45 लोगो की टीम ने सड़क बनाने की ठानी है.
3 दिनों में लगभग 2 किलोमीटर तक सड़क बनाई गईं.
क्षेत्र के मुखिया नंदकिशोर मेहता ने बताया कि यह क्षेत्र आदिवासी बाहुल है
यहां पर आने जाने की काफी समस्या है. रास्ता वन विभाग के अंडर में आता है
इस कारण जिला प्रशासन कुछ कर नहीं पा रही है कई बार हमने
एप्लीकेशन देकर इस रोड को बनाने की मांग की है
लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है वन विभाग
अपने फंड से अगर इस रोड को बना देता तो काफी सहूलियत होती.
रिपोर्ट : शशांक