Sunday, October 26, 2025
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बच्चों को HIV संक्रमित खून चढ़ाना है ‘राज्य-प्रायोजित हत्या’ : बाबूलाल मरांडी

Ranchi: भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने चाईबासा सदर अस्पताल में थैलेसीमिया से ग्रस्त 5 मासूम बच्चों को एचआईवी (HIV) संक्रमित खून चढ़ाए जाने की घटना को “लापरवाही नहीं बल्कि राज्य-प्रायोजित हत्या का प्रयास” करार दिया है। सिर्फ़ लापरवाही नहीं, बल्कि राज्य-प्रायोजित हत्याः मरांडी ने कहा कि यह मामला केवल डॉक्टर या टेकनीशियन की कमी का विषय नहीं है, बल्कि यह पूरे स्वास्थ्य तंत्र की विफलता और राज्य सरकार की संवेदनहीनता को उजागर करता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर इन बच्चों की भविष्य में मृत्यु हो जाती है, तो यह सिर्फ़ लापरवाही नहीं, बल्कि राज्य-प्रायोजित हत्या कहलाएगी। संवेदनशील...

चुनाव के बीच खरना का प्रसाद खाने चिराग के घर पहुंचे CM नीतीश, पैर छूकर लिया आशीर्वाद

पटना : बिहार में विधानसभा चुनाव के बीच छठ पूजा का महापर्व चल रहा है। कल यानी 25 अक्टूबर से चार दिन का चलने वाला महापर्व छठ की शुरुआत हुई थी। कल नहाय खाय से छठ पूजा की शुरुआत हुई। आज यानी 26 अक्टूबर को खरना है, वहीं 27 अक्टूबर को डूबते हुए सूर्य का अर्घ्य और 28 अक्टूबर को उगते हुए सूर्य के अर्घ्य के साथ छठ पूजा का समापन हो जाएगा।चिराग ने पैर छूकर नीतीश का लिया आशीर्वाद, फिर ले गए घर आपको बता दें कि इसी बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनाव के बीच समय...

थैलेसीमिया ग्रस्त बच्चों को HIV संक्रमित खून चढ़ाने मामले पर केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी का आक्रोश: कहा — “यह गलती नहीं, पूरे स्वास्थ्य तंत्र...

Ranchi: केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने झारखंड के चाईबासा जिले में थैलेसीमिया से ग्रस्त बच्चों को रक्त HIV संक्रमित खून चढ़ाए जाने की घटना पर गहरा आक्रोश व्यक्त किया है। उन्होंने इस मामले को “अत्यंत भयावह और अमानवीय लापरवाही” बताया। मंत्री ने कहा कि यह घटना केवल एक चिकित्सीय गलती नहीं, बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य तंत्र की विफलता का प्रतीक है। जिन बच्चों की जिंदगी उपचार से बचाई जानी थी, उन्हें लापरवाही और गैर-जिम्मेदारी ने आजीवन पीड़ा दे दी है। मामले की उच्चस्तरीय जांच होः  मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने कहा कि केवल मुआवजे की घोषणा पर्याप्त नहीं है,...

‘सरकार तब खुश होगी, जब किसी गर्भवती को कुछ हो जाएगा’

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Hazaribagh : गरडीह : अगर गर्भवती महिला के साथ बीच रास्ते में कोई हादसा हो जाए तो क्या सरकार खुश रहेगी. महिलाओं और बीमार लोगों को सड़क के अभाव में समय पर अस्पताल पहुंचाना काफी मुश्किल होता है यह कहना है हजारीबाग के इचाक प्रखंड स्थित गरडीह गांव की एक महिला का.

जो श्रमदान कर सड़क बनाने में जुटी रही. उसने सरकार से सीधा सवाल किया है कि क्या सिर्फ इन गांवों तक वो वोट मांगने के लिए ही आ सकते हैं. यहां के बीमार कैसे अस्पताल पहुंचेंगे और कैसे उनके गांवों का विकास होगा इस पर कोई ध्यान नहीं देना है. ऐसे ही सवाल वहां के अन्य ग्रामीण ने भी पूछा है. उन्होंने कहा है कि जनप्रतिनिधि सिर्फ वोट मांगने के लिए ही क्षेत्र में आते हैं. दुर्गम पहाड़ियों के बीच बसे इस गांव में सड़क निर्माण की अत्यंत आवश्यकता है.

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'सरकार तब खुश होगी, जब किसी गर्भवती को कुछ हो जाएगा' 5 22Scope News

सरकार या वन विभाग कोई भी सड़क निर्माण करा दे: ग्रामीण


आजादी के 75 वर्षों बाद भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित इचाक प्रखंड के डाडी घाघर पंचायत का गरडीह गांव. प्रखण्ड मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर बसी गरडीह गाँव में सि़र्फ आदिवासी समुदाय के मुर्मू सोरेन बेसरा और हेम्ब्रम मांझी समाज के लोग ही रहते हैं. जहाँ विकास के नाम पर मूलभूत सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हैं.

सरकार : मुलभूत सुविधाओं से कोसों दूर है गरडीह गांव

सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली के साथ-साथ स्वच्छ पेयजल से भी लोग कोसों दूर हैं. घने जंगलों में पहाड़ों के बीच सैकड़ों लोग रहते हैं. आज भी वहां के लोग नदी तालाब और कुआं के पानी ही पीते हैं. वहां की महिलाएं पगडंडियों से होकर लगभग 500 मीटर दूर स्थित नदी में चुआं बनाकर पीने के लिए पानी घर लाती हैं. पेयजल के साथ-साथ शिक्षा की स्थिति को देखें तो स्कूल के नाम पर नव प्राथमिक विद्यालय है लेकिन 5 साल का बच्चा तीन किलोमीटर दूर बगल के स्थित सरकारी विद्यालय में पढ़ाई करने जाता है.

‘गांव में चिकित्सा की कोई सुविधा नहीं’

गांव के सैकड़ों घरों के परिवारों में लगभग 500 से 1000 सदस्य रहते हैं. जहां स्वास्थ्य उपकेंद्र तो दूर स्वास्थ्य विभाग के कोई कर्मचारी और ना ही नर्स कभी गांव में आती हैं. बीमार लोगों के लिए जड़ी-बूटी ही एक मात्र सहारा होता है। गांव की महिलाओं ने बताया कि जब कभी कोई ज्यादा बीमार पड़ जाता है तो गांववाले उसे खटिया पर लादकर या कुर्सी पर बिठाकर गांव से लगभग 05 किमी का जंगली रास्ता तय कर पक्की सड़क तक पहुंचते हैं. जहां से किसी वाहन के सहारे स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंच पाते हैं. कभी-कभी तो रास्ते में ही बीमार दम तोड़ देते हैं.


बरसात में पूरी तरह टूट जाता है गांव का संपर्क


बारिश के दिनों में गांव का संपर्क पूरी तरह टूट जाता है.

चारों ओर से जंगलों से गांव घिरे होने तथा सुलभ मार्ग के अभाव

में सरकारी एंबुलेंस यहां पर नहीं पहुंचता है. गांव वालों का कहना है कि उनके क्षेत्र के जनप्रतिनिधि कभी-कभी दिख जाते हैं जबकि बहुत सारी योजनाओं की जानकारी भी लोगों को नहीं है.


ग्रामीणों ने श्रमदान कर बनाई सड़क

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'सरकार तब खुश होगी, जब किसी गर्भवती को कुछ हो जाएगा' 6 22Scope News

सड़क की जरुरत को पूरा करने के लिए यहां के ग्रामीणों द्वारा

श्रमदान से सड़क बनाया गया. 45 लोगो की टीम ने सड़क बनाने की ठानी है.

3 दिनों में लगभग 2 किलोमीटर तक सड़क बनाई गईं.

क्षेत्र के मुखिया नंदकिशोर मेहता ने बताया कि यह क्षेत्र आदिवासी बाहुल है

यहां पर आने जाने की काफी समस्या है. रास्ता वन विभाग के अंडर में आता है

इस कारण जिला प्रशासन कुछ कर नहीं पा रही है कई बार हमने

एप्लीकेशन देकर इस रोड को बनाने की मांग की है

लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है वन विभाग

अपने फंड से अगर इस रोड को बना देता तो काफी सहूलियत होती.

रिपोर्ट : शशांक

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