कॉलेज का गेट बंद होते ही बंद हो जाती है ग्रामीणों की किस्मत
Koderma–कोडरमा के कानूनगोबिग्हा गांव को झारखंड का टापू कहना गलत नहीं होगा. आजादी के करीबन 75 वर्ष गुजरने के बाद भी करीबन सात सौ की आबादी वाला यह गांव आज तक एक अदद रास्ते की तलाश में है.
Highlights
गांव से बाहर निकलने का एक ही रास्ता है, वह है जगन्नाथ जैन कॉलेज का गेट, कॉलेज का गेट बंद होते ही गांववालों की किस्मत भी इसके साथ ही कैद हो जाती है.
गांव के अन्दर की सड़कें पक्की है, लेकिन गांव से बाहर निकलने के सभी रास्ते बंद है
मुख्य सड़क से गांव तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है, यह अलग बात है कि गांव के अन्दर की सड़कें पक्की है, लेकिन यह किस काम की, जब इस रास्ते से आप देश-दुनिया से जुड़ नहीं सकते, अपने आप को गांव की चारदीवारी से बाहर निकाल नहीं सकते.
गांव वाले कहते हैं कि हमारी किस्मत तब और भी खराब हो जाती है जब कॉलेज का गेट बंद होने के बाद गांव में किसी की बीमारी की खबर आती है.
किसी के बीमार पड़ते ही मच जाती है अफरा तफरी
वैसे कॉलेज का गेट बंद नहीं भी हो तो तब भी मरीज को खाट तक लाद कर कॉलेज के गेट तक ले जाना होता है, उसके बाद ही मरीज को एम्बुलेंस मिल पाता है.
फिलहाल जगरनाथ जैन कॉलेज में मैट्रिक और इंटर की परीक्षा चल रही है. परीक्षा के दरम्यान आम लोगों का कॉलेज परिसर में प्रवेश बंद कर दिया गया है. आजाद देश में गुलामी के लिए बाध्य ये ग्रामीण सरकार से महज एक अदद रास्ते की मांग कर रहे है.
हर बार लोकतंत्र के महापर्व में शामिल होने का किया जाता है आग्रह
ग्रामीण कहते हैं कि हर बार हमें लोकतंत्र के मंदिर की दुहाई देकर चुनावी समर में अपनी हिस्सेदारी का निर्वाह करने का आग्रह किया जाता है, चुनाव के बाद विकास की आंधी चलाने का वादा किया जाता है. लेकिन चुनाव गुजरते ही सारे वादे धरे रह जाते है और हम एक बार फिर से ठगा महसूस करने लगते हैं.
प्रशासन और जनप्रतिनिधि ईमानदार हो तो निकल सकता है समाधान
ग्रामीण कहते हैं कि प्रशासन और जनप्रतिनिधि यदि ईमानदारी से प्रयास करें तो इसका समाधान निकाला जा सकता है. एक रास्ता को पुतो गांव से होकर निकाला जा सकता है, दूसरा रास्ता कॉलेज का बांउड्रीवाल तक जाकर रुक जाता है, उसे खोला जा सकता है.
मामला संज्ञान में आने के बाद उपायुक्त आदित्य रंजन ने राइट टू वे एक्ट के तहत रास्ता निर्माण करवाने की बात कही है. लेकिन ग्रामीण कहते हैं कि इस प्रकार के वादे हम सुनने के आदी है, वादा तो हर बार किया जाता है, लेकिन यह कभी जमीन पर नहीं उतरता. विचित्र बात यह है कि हम जिस गांव को देश का हृदय स्थली मानते रहे हैं, 75 वर्षों से गांव के हालात बदलने की कसमें खाते रहें है, वहां ग्रामीण आज भी अदद रास्ते की मांग करने पर विवश हो इससे ज्यादा हास्यास्पद क्या हो सकता है.
रिपोर्ट- अमित