Dumka- संथालपरगना के गाँव -निझोर गाँव के ठीक बीचो बीच एक जोड़ा इमली का पेड़ है. जहाँ गाँव के लिए चबूतरा निर्मित है,
Highlights
यहाँ पर गाँव की महिलायें और कुछ युवा यूँ ही बैठे गप्पे मार रहे थे.
वहीं गाँव के बच्चे अपने पारम्परिक खेलों में मशगुल थे.
बच्चों का कोई एक समूह पत्थर की गोटियां लेकर खेल रहा था तो कोई जमीन में लकीरें बनाकर कित-कित खेल रहा था.
इसी बीच एक कमजोर कदकाठी का पहाड़िया युवक पसीने से लथपथ साइकिल से पहुँचता है.
उसकी स्थिति देख यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह पहाड़ी ऊबड़ -खाबड़ रास्तों से साइकिल चलाकर कर पहुंचा था.
उसके साइकिल के पीछे राष्ट्रीय तिरंगा का करीबन 50 झंडों का एक बण्डल बंधा हुआ था.
वह उस क्षेत्र का वार्ड सदस्य सुनिराम हेमरोम था.
उसने बताया कि पंचायत के मुखिया जी ने ये झंडे दिए हैं,
जिसे 13वें अगस्त से अपने अपने घरों में फहराना है.
इससे ज्यादा उसे राष्ट्रीय तिरंगे के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
बुनियादी सुविधायों की खोज में संथालपरगना के गाँव
वहीं गाँव के लोगों से जीवन जीने की बुनियादी जरूरतों के बाबत बात की गई तो
इस गाँव में पेयजल, सड़क, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे सुविधाओं का घोर अभाव है.
आजादी के 75वें वर्ष में भी आदिम जनजाति बहुल इस गाँव के लोगों को बुनियादी सुविधा मयस्सर नहीं है.
विधायक नलिन सोरेन के घर से महज 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह गांव
कुल 54 घरों वाले इस गाँव में 48 घर पहाड़िया परिवार और शेष 6 घर संताल आदिवासियों का है.
यह गाँव दुमका जिले के काठीकुंड प्रखण्ड मुख्यालय और 7 बार से लगातार विधान सभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे
नलिन सोरेन के घर से महज 7 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है.
यह बिछिया पहाड़ी पंचायत, काठीकुंड प्रखण्ड के अंतर्गत आता है.
गाँव में विगत तीन वर्षों पूर्व एक भव्य दिवाकालीन पहाड़िया प्राथमिक विद्यालय भवन बनकर तैयार है.
डबल स्टोरी बिल्डिंग की शक्लो- सूरत ये बयाँ कर रही थी कि यह करोड़ों की लागत से बनी पड़ी है.
जिसमें वर्ग कक्ष, शिक्षक आवास एवं 300 छात्रों की क्षमता वाला छात्रावास है.
छात्रावास निर्माण का कार्य अभी भी आधा-अधूरा पड़ा है. विद्यालय में सोलर वाटर टावर निर्मित है,
लेकिन मोटर एक साल से ख़राब पड़ा है.
स्कूल कैम्पस में और कोई दूसरा पेयजल का विकल्प नहीं है .
शिक्षक आवास पूर्ण है, लेकिन यहाँ रहने वाले शिक्षक नदारद है.
ग्रामीण मोहन सिंह ने बताया कि यहाँ एक शिक्षक सुभाष सिंह नियुक्त हैं,
जो कभी-कभार विद्यालय आते हैं.
वह दुमका जिला मुख्यालय रहते हैं.
गाँव में शिक्षा का आलम ये है कि आज एक भी युवा अथवा युवती नहीं हैं जो मैट्रिक की पढाई पूरी कर पाए हों.
सरस्वती देवी जो इस गाँव में बहु बनकर आई हैं वो नौवीं कक्षा पास हैं.
इसी तरह चंदना देवी और विद्यानंद देहरी नौवीं कक्षा पास हैं.
एक युवा रामधन देहरी आठवीं तक की पढाई कर चुके हैं.
अपने पिता की आकस्मिक मृत्यु के कारण वो आगे की पढाई नहीं कर पाए.
गाँव के सभी परिवार मेहनत, मजदूरी से गुजारा करते हैं.
मनरेगा का हाल, आजीविका का संघर्ष
लेकिन रोजगार उपलब्ध कराने के मामले में प्रशासन ने पूरी तरह आँखें मूँद ली है.
गाँव के 61 परिवार मनरेगा में पंजीकृत हैं.
लेकिन वर्त्तमान वित्तीय वर्ष में किसी एक को भी रोजगार नहीं मिला.
इसके पहले वित्तीय वर्ष 2021-22 में सिर्फ 3 लोगों को 16 दिन का रोजगार मिला था.
गाँव के अधिकांश मजदूरों के कार्ड काठीकुंड निवासी व मनरेगा ठेकेदार राजू नाग के पास वर्षों से पड़े हैं.
परिवार चलाने के लिए युवक आज भी स्थानीय होटलों और हाट-बाजारों में साइकिल से लकड़ियाँ बेचने को विवश हैं.
जिसके बदले उनको 220 से 240 रूपये पैसे मिलते हैं. जबकि मनरेगा में काम मिले तो अधिकांश लोग काम करने को तैयार हैं.
62 वर्षीय गाँव के ग्राम प्रधान गोपाल कुंवर विगत डेढ़ वर्षों से लकवा बीमारी से ग्रसित हैं.
लेकिन वह कहीं ईलाज नहीं करा पा रहे हैं. क्योंकि उनके पास ईलाज के लिए पैसे नहीं हैं.
ऐसे बुनियादी साधनों के अभाव का दंश कोई अकेले निझोर गाँव झेल रहा है.
यह बात सिर्फ इस गांव की नहीं है,
बल्कि संथालपरगना के हजारों गाँव हैं जिन तक आज भी मूलभूत सुविधाएँ नहीं पहुँची हैं.
ऐसे में सवाल उत्पन्न होता है, क्या हम ह्रदय से आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं या सिर्फ फील गुड करने का ढोंग कर रहे हैं?