डिजिटल डेस्क : यूपी के आगरा से हैं नए CEC ज्ञानेश कुमार राम मंदिर से लेकर अनुच्छेद 370 में निभा चुके हैं अहम भूमिका। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित नए कानून के तहत देश में नियुक्त होने वाले पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार संबंधी अधिसूचना जारी होते ही उनके बारे में तरह-तरह की रोचक जानकारियां सामने लगी हैं।
Highlights
PM नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की पसंद बताए जा रहे ज्ञानेश कुमार को लेकर कई अहम बातें सामने आई हैं। इनमें सबसे अहम है कि PM नरेंद्र मोदी के पहले ही कार्यकाल से भाजपा की अगुवाई वाले NDA सरकार के सभी अहम जटिल मसलों के निदान में ज्ञानेश कुमार अहम भूमिका में रहे।
हालांकि उन्होंने अपनी सारी भूमिका बतौर प्रशासनिक अधिकारी अपनी सीमाएं और मर्यादा में रहते हुए कीं लेकिन उसका जनसमान्य एवं सियासत पर पड़े प्रभाव के चलते कांग्रेस, सपा समेत तमाम विपक्षी दल उनकी मौजूदा नियुक्ति को लेकर भाजपा पर हमलावर हैं।
अनुच्छेद 370 और राम मंदिर निर्माण में रही अहम भूमिका
बताया जा रहा है कि गृह मंत्रालय में सचिव रहते हुए जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला हो या फिर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण कमेटी के सदस्य के तौर पर काम। नए मुख्य चुनाव आयुक्त वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ज्ञानेश कुमार ने अपनी काबिलियत से केंद्र सरकार के फैसलों को लागू करने में बड़ी भूमिका निभाई है।
उन्हें केंद्र सरकार ने श्रीराम मंदिर तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट में प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया था। वे बाल स्वरूप के भगवान श्रीराम की मूर्ति चयन के निर्णायक मंडल में भी रहे। अब CEC के तौर पर ज्ञानेश कुमार का कार्यकाल 26 जनवरी 2029 तक होगा।
राजीव कुमार आज 18 फरवरी को रिटायर हो रहे हैं और कल 19 फरवरी को ज्ञानेश कुमार सीईसी का पद संभालेंगे। 1988 बैच के केरल कैडर के आईएएस अधिकारी ज्ञानेश कुमार मार्च, 2024 से ही चुनाव आयुक्त के रूप में काम कर रहे हैं। उन्हें पदोन्नत किया गया है।
ज्ञानेश कुमार पर इस साल बिहार का विधानसभा चुनाव और अगले साल पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु का चुनाव संपन्न कराने की जिम्मेदारी होगी।
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नए CEC ज्ञानेश कुमार के पास है लंबा प्रशासनिक कामकाज का अनुभव…
वर्तमान कानून के अनुसार, मुख्य निर्वाचन आयुक्त या निर्वाचन आयुक्त 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं। या बतौर आयुक्त छह वर्ष के लिए आयोग में सेवाएं दे सकते हैं। CEC नियुक्त किए गए ज्ञानेश कुमार के पास 37 साल से अधिक का प्रशासनिक अनुभव है।
वे केरल सरकार में एर्णाकुलम के सहायक जिलाधिकारी, अडूर के उपजिलाधिकारी, एससी/एसटी के लिए केरल राज्य विकास निगम के प्रबंध निदेशक, कोचीन निगम के नगर आयुक्त के अलावा अन्य पदों पर भी सेवाएं दे चुके हैं। केरल सरकार के सचिव के रूप में उन्होंने वित्त संसाधन, फास्ट-ट्रैक परियोजनाओं और लोक निर्माण विभाग जैसे विविध विभागों को संभाला।
बता दें कि अब तक सबसे वरिष्ठ चुनाव आयुक्त को ही मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में पदोन्नत किया जाता था। हालांकि, पिछले साल मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्तियों पर एक नया कानून लागू हुआ।
इसके तहत एक खोज समिति ने इन पदों पर नियुक्ति के लिए पांच सचिव स्तर के अधिकारियों के नामों को शॉर्ट लिस्ट किया था, ताकि प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली समिति उन पर विचार कर सके। पीएम, लोकसभा में नेता विपक्ष और पीएम की तरफ से नामित एक कैबिनेट मंत्री एक नाम को मंजूरी देते हैं। इसके बाद राष्ट्रपति की ओर से नए मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की जाती है।
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CEC के लिए ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति का कांग्रेस ने खुलकर किया विरोध…
इस बीच ज्ञानेश कुमार को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त (CEC ) किए जाने की अधिसूचना के बीच लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने असहमति नोट भेजा है। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि बीते कल मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर बैठक हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 19 फरवरी को इस विषय में सुनवाई होगी और फैसला सुनाया जाएगा कि कमेटी का संविधान किस तरीके का होना चाहिए। ऐसे में बीते कल की बैठक को स्थगित करना चाहिए था। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि चयन समिति से भारत के मुख्य न्यायाधीश को हटाकर सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह चुनाव आयोग पर नियंत्रण चाहती है, न कि उसकी विश्वसनीयता को बनाए रखना चाहती है।
कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अजय माकन, वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी और गुरदीप सप्पल ने साझी प्रेसवार्ता में कहा कि – ‘मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम, 2023 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। 19 फरवरी को सुनवाई है। ऐसे में सरकार को बैठक को स्थगित करनी चाहिए और सुप्रीम कोर्ट में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सुनवाई प्रभावी रूप से हो।
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इस नए कानून के अनुसार प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और लोकसभा में नेता विपक्ष की समिति मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन करती है, लेकिन इसमें कई संवैधानिक और कानूनी समस्याएं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च 2023 को एक फैसले में कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों के चयन के लिए प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और मुख्य न्यायाधीश की समिति होनी चाहिए।
…वर्तमान समिति इस आदेश का स्पष्ट उल्लंघन है। अगर केवल कार्यपालिका द्वारा नियुक्ति की प्रक्रिया होगी, तो यह आयोग को पक्षपाती और कार्यपालिका की शाखा बना देगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से मुक्त रखा जाना चाहिए।
…वर्तमान समिति को जानबूझकर असंतुलित किया गया है, जिसमें केंद्र को दो तिहाई वोट दिए गए हैं। सरकार का उद्देश्य है कि ऐसा चुनाव आयुक्त नियुक्त किया जाए जो कभी भी सरकार के खिलाफ न खड़ा हो सके।
…मुख्य न्यायाधीश को इस समिति से बाहर रखने का कारण क्या है? इस सवाल का न तो संसद में और न ही बाहर कोई उत्तर दिया गया है। अगर यह चयन प्रक्रिया इसी तरह जारी रहती है तो इसके दीर्घकालिक प्रभाव भारतीय चुनाव प्रणाली की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर पड़ेगा’।