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Friday, March 29, 2024

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राजधानी रांची में असुरक्षित और असहज महसूस कर रहें है आदिवासी!

राजधानी रांची में असुरक्षित महसूस कर रहें है आदिवासी- तथ्य और भ्रम

Ranchi– क्या राजधानी रांची में आदिवासी अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं. क्या उनके अन्दर असुरक्षा की भावना पनप रही है,  क्या राजधानी रांची की पुलिस व्यवस्था पर उनका भरोशा डिग रहा है, क्या पुलिस आदिवासी समुदाय को न्याय देने में कोताही बरत रही है.

अटल स्मृति मार्केट में पार्किंग को लेकर हुआ था विवाद 

यह सारे सवाल इसलिए सामने आ रहे हैं,  क्योंकि राजधानी रांची के चडरी पूजा समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा का राजधानी रांची की पुलिस पर यही आरोप है.

बबलू मुंडा ने कहा है कि रांची में आदिवासी मूलवासी समुदाय अपने आप को असुरक्षित और असहज महसूस कर रहा हैं,

उसके साथ न्याय नहीं हो रहा है, आदिवासी समुदाय द्वारा दर्ज करवाये जा रहे मामलों पर पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही है.

दरअसल पूरे  मामले की शुरुआत होती है राजधानी रांची के वेंडर मार्केट से,

पिछले दिनों वेंडर मार्केट में पार्किंग को लेकर हुए  एक विवाद हुआ था.

पार्किंग संचालकों के द्वारा एक आदिवासी युवक के साथ मारपीट की गयी थी.

जिसके बाद पीड़ित युवक ने एसटी थाने में इसके विरोध में  प्राथमिकी दर्ज करवायी थी,

लेकिन आरोप यह है कि अब तक इस मामले में किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई.

अटल स्मृति मार्केट पर बाहरी लोगों के कब्जे का आरोप 

इसी घटना को लेकर चडरी पूजा समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा ने यह आरोप लगाया है.

बबलू मुंडा का मानना है कि अटल वेंडर स्मृति मार्केट में सारी दुकाने बाहरी लोगों की दी गयी है,

स्थानीय आदिवासी-मूलवासियों को दुकान का आवंटन नहीं किया गया.

आदिवासियों  युवाओं के इंटरप्रेनरशिप  को प्रोत्साहित नहीं किया जाता 

एक आदिवासी- मूलवासी बहुल राज्य में आदिवासियों की उपेक्षा का इसे ज्वलंत उदाहरण बताया जा रहा है. आदिवासी युवकों का कहना है कि यदि सरकार हमें दुकान ही आवंटित नहीं करेगी तब इस हममें इंटरप्रेनरशिप  का विकास कैसे होगा.

इस समुदाय की सामाजिक हैसियत ऐसी नहीं है कि खुद के बल के पर रांची जैसे शहर में दुकान ले सकें. सरकार को इस मामले में पहल करते हुए दुकानों के आवंटन में आदिवासियों-मूलवासियों को प्राथमिकता देनी चाहिए थी, लेकिन सरकार हमारी उपेक्षाा कर बाहरी लोगों को दुकानों का आवंटन कर रही है. इन्ही बाहरी लोगों के द्वारा यहां के स्थानीय लोगों के साथ बराबर इस प्रकार की घटना को अंजाम दिया जा रहा है.

आदिवासी-मूलवासियों के साथ मारपीट की जाती है,  इसके कारण आदिवासी अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगें हैं.

राजधानी रांची में है यह हाल तो सुदुरवर्ती इलाकों की कहानी क्या होगी

बड़ा सवाल यह है कि जब राजधानी रांची में ही आदिवासी अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं,

उनमें असुरक्षा की भावना पनप रही है, कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा हो रहा है तब राजधानी से दूर

जहां आम तौर पर प्रशासनिक महकमा उतना सक्रिय नहीं होता उनमें कितनी असुरक्षा की भावना होगी.

आदिवासी छात्रावास में तोड़फोड़ से आक्रोश

यहां यह भी बता दें कि कुछ दिन पहले ही रांची का हरमू रोड में एक आदिवासी होस्टल में तोड़फोड़ किए जाने की खबर आयी थी.

उस मामले में भी अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है,

तब भी आदिवासी समुदाय से आने वाले कई  विधाायकों ने इस घटना पर अपनी चिंता जाहिर की थी,

आरोपियों की  गिरफ्तारी की मांग की गयी थी,

आक्रोशित विधायकों ने थाना प्रभारी को भी बंधक बनाने की धमकी दी थी.

लेकिन अब तक उस घटना का भी उद्भेदन नहीं किया गया है.

रिपोर्ट-शाहनवाज 

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