डिजिटल डेस्क : डॉ राममनोहर लोहिया को 115वीं जयंती पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और यूपी के CM Yogi ने किया नमन। डॉ. राम मनोहर लोहिया की 115वीं जयंती पर आज रविवार 23 मार्च को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और यूपी के CM Yogi आदित्यनाथ समेत कई अहम शख्सियतों ने याद किया है।
Highlights
भारतीय राजनीति में समाजवादी विचारों को प्रणेता, पोषक और वाहक रहे डॉ. राम मनोहर लोहिया राजनीतिक पार्टियों में पार्टी लाइन से इतर हमेशा ही याद किए जाते रहे हैं। आज रविवार को उसी क्रम में तमाम शख्सियतों ने उन्हें याद किया है।
भारतीय राजनीति में डॉ. राम मनोहर लोहिया अपनी अलग चाल-चरित्र वाली साख रखने वालों में रहे हैं। विरोधी भी उनके कायल ही रहा करते थे। इसके पीछे एक बड़ी वजह भी रही कि डॉ. राम मनोहर लोहिया अपना जन्मदिन एक खास वजह से नहीं मनाते थे।
डॉ. राम मनोहर लोहिया का इसके पीछे तर्क था कि उसी दिन महान युवा स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर चढ़ा दिया गया था।
डॉ. लोहिया का केंद्रीय मंत्री ने किया अभिवादन
डॉ. राम मनोहर लोहिया को उनकी 115वीं जयंती पर रविवार को याद करते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर पोस्ट साझा किया।
अपने इस पोस्ट में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने लिखा कि – ‘महान स्वतंत्रता सेनानी डॉ. राम मनोहर लोहिया जी की जयंती पर उन्हें विनम्र अभिवादन।’
बता दें कि डॉ. राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च, 1910 को उत्तर प्रदेश के अकबरपुर जनपद में हुआ था। वह भारतीय समाजवादी आंदोलन के प्रमुख विचारकों में से एक थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वह कुल 8 बार ब्रिटिश सरकार की जेलों में गए और यातनाएं भोगीं। फिर 17 बार स्वतंत्र भारत की जेलों में अपने जनांदोलनों के क्रम में जाना पड़ा।
डॉ. लोहिया ने राजनीति, खासकर जाति-आधारित राजनीति पर गहरा विश्लेषण किया। डॉ राममनोहर लोहिया की पूरी जीवन गाथा 57 वर्षों के छोटी अवधि की रही। इतनी अल्प अवधि के जीवनकाल में अनवरत और सतत संघर्ष को डॉ राममनोहर लोहिया ने जीया।

डॉ. लोहिया को CM Yogi ने दी श्रद्धांजलि…
डॉ राममनोहर लोहिया की जयंती पर रविवार की सुबह यूपी के CM Yogi आदित्यनाथ ने यूपी के इस सपूत को याद किया। CM Yogi आदित्यनाथ ने डॉ़. राम मनोहर लोहिया को भावपूर्ण श्रद्धासुमन भी अर्पित किए। अपने सोशल मीडिया हैंडल पर डॉ़. राम मनोहर लोहिया को याद करते हुए CM Yogi आदित्यनाथ ने पोस्ट भी साझा किया है।
CM Yogi आदित्यनाथ ने लिखा है – ‘सामाजिक न्याय हेतु आजीवन समर्पित रहे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, ‘सप्त क्रांति’ के प्रणेता डॉ. राम मनोहर लोहिया की जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि! वंचितों एवं शोषितों के उत्थान की दिशा में उनके द्वारा किए गए कार्य हमारे लिए सदैव वंदनीय रहेंगे।’
इसी क्रम में यूपी में रविवार को डॉ राममनोहर लोहिया का एक नारा भी चर्चा में है। डॉ राममनोहर लोहिया का ‘पिछड़ा पावे सौ में साठ’ का नारा सामाजिक गतिशीलता और सामाजिक न्याय की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए माना जाता है ताकि हाशिये पर खड़े समाज के सबसे बड़े वर्ग को सत्ता व संसाधनों में भागीदारी प्राप्त हो सके।

डॉ. लोहिया को समाजवादी चिंतकों ने भी शिद्दत से किया याद
छात्र राजनीतिक के पुरोधा, पत्रकार और चित्रकार रहे यूपी के जौनपुर निवासी चंचल ने पूरे जीवन डॉ. राम मनोहर लोहिया के राजनीतिक आदर्शों को जीया है। कांग्रेस और कांग्रेस विरोधियों में समान पैठ रखने के लिए अपनी अलग पहचान रखने वाले पुरोधा चंचल ने तमाम सियासी संगियों के बीच अपने ठेठ समाजवादी अंदाज को जीया।
आज 115वीं जयंती पर डॉ. राम मनोहर लोहिया को उन्हीं चंचल ने भी याद किया। पुरोधा छात्र नेता चंचल के मुताबिक – ‘…इस देश में डॉ लोहिया को सही मायनों में कभी समझा ही नहीं गया। डॉ. लोहिया के विचार और संघर्ष उस समय की पारंपरिक राजनीति और समाज की सीमाओं से परे थे।
…उनका दृष्टिकोण न केवल भारतीय राजनीति, बल्कि भारतीय समाज की संरचनात्मक असमानताओं को चुनौती देने वाला था। जब देश ने उन्हें समझा, तब लोहिया अचानक हमसे विदा हो गये।
…हां, जाते-जाते डॉ. लोहिया ने अपनी असाधारण राजनीतिक दृष्टि और सामाजिक न्याय की गहरी समझ लोगों के दिलों में छोड़ दी। आज देश के हर राजनीतिक दल, जाने-अनजाने, लोहिया के विचारों से लैस दिखाई पड़ते हैं, क्योंकि लोहिया ने भारत के जिस बड़े तबके को राजनीति का केंद्र बनाया था।
…आज वह वैसे ही बड़े प्रश्न के रूप में दिखाई दे रहे हैं। डॉ. लोहिया के विचार समकालीन भारत की जाति-राजनीति में भी गहराई से जुड़े हुए हैं। सो उनके जन्मदिवस पर उनके विचारों पर चर्चा जरूरी हो जाती है।’

वाराणसी के बीएचयू से जुड़े रहे दूसरे पुरोधा छात्र नेता रत्नाकर त्रिपाठी ने भी डॉ. लोहिया को भावपूर्ण अंदाज में याद किया है। बकौल रत्नाकर त्रिपाठी – ‘…अतिपिछड़ा वर्ग के लिए विशेष सशक्तिकरण और उनके अधिकारों की रक्षा की दिशा में लोहिया का दृष्टिकोण आज भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह वर्ग सामाजिक न्याय के सबसे निचले स्तर पर खड़ा है।
…इनका कोई प्रभावशाली नेतृत्व विकसित नहीं हो सका और राजनीतिक दलों ने इन्हें केवल ‘वोट बैंक’ के रूप में इस्तेमाल किया, जिससे इनकी आत्मनिर्भरता बाधित हुई। इनमें राजनीतिक संगठन का अभाव इसका संकेत है कि यह समूह अब भी अपनी पहचान को संगठित रूप में स्थापित नहीं कर सका है।
…लोहिया के विचारों ने भारतीय जाति-राजनीति को नया रूप दिया था, पर अतिपिछड़ों का प्रश्न अधूरा रह गया था। …अब यह वर्ग अपने राजनीतिक प्रश्नों को तेजी से उठा रहा है।
…जब तक इन्हें स्वतंत्र राजनीतिक नेतृत्व, पहचान और नीति-निर्माण में भागीदारी नहीं मिलेगी, तब तक ‘सामाजिक न्याय’ का लोहियावादी सपना अधूरा ही रहेगा’।
इसी क्रम में कांग्रेस में समाजवादी चिंतन-विचार के लिए अलग पहचान रखने वाले कमलाकर त्रिपाठी ने भी 115वीं जयंती पर डॉ. राम मनोहर लोहिया को याद किया। कमलाकर त्रिपाठी ने कहा कि – ‘आज जब हम समावेशी राजनीति की बात करते हैं, तब लोहिया का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।
…डॉ. राम मनोहर लोहिया ने जो प्रश्न उठाये, वे आज भी सामाजिक और राजनीतिक विमर्श का हिस्सा हैं, खासकर जब हम महिलाओं, दलितों, पिछड़ों और अन्य हाशिये के समूहों के लिए समान अवसरों की बात करते हैं। उनकी सोच ने भारतीय राजनीति और समाज को समझाया कि सामाजिक न्याय और समावेशन केवल राजनीति में प्रतिनिधित्व से नहीं, समाज के हर स्तर पर उन वर्गों को अवसर देने से आता है, जो उपेक्षित और शोषित रहे हैं।
…इतने वर्षों बाद जब देश की राजनीति में कई बदलाव आ चुके हैं, आज भी नये सिरे से लोहिया की आवश्यकता महसूस की जा रही है, विशेष रूप से सामाजिक और आर्थिक न्याय की राजनीति के संदर्भ में। अतिपिछड़ा वर्ग को विशेष पहचान और आरक्षण के अधिकार देने के लिए लोहिया के ‘विशेष अवसर के सिद्धांत’ पर आधारित विचार आज भी समकालीन राजनीति में प्रासंगिक हैं।
…लोहिया की समाजवादी धारा से जुड़े कर्पूरी ठाकुर, मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार आदि नेताओं ने इन प्रश्नों को हल करने की कोशिश की, पर वे पूर्णतः हल नहीं हो पाये, जिससे आरक्षण के वर्गीकरण और जाति-आधारित जनगणना की मांग तेज हो रही है।
…बिहार में नीतीश कुमार सरकार द्वारा कराये गये जाति आधारित सर्वेक्षण ने इस बहस को और अधिक प्रासंगिक बना दिया है।
…बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में ओबीसी की कई जातियां सत्ता में हिस्सेदारी प्राप्त कर चुकी हैं, जिससे उन्हें संगठित होने में मदद मिली है। वहीं अतिपिछड़ी जातियां सामाजिक-राजनीतिक रूप से संगठित नहीं हो पायी हैं।’