1932 खतियान: संथाल में हेमंत को मिल सकता है फायदा

दुमका : झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कैबिनेट ने 1932 खतियान को स्थानीयता का आधार माना है.

आने वाले समय में JMM को इसका कितना लाभ मिलेगा ये आने वाले समय में ही पता चलेगा.

संथाल की बात करें तो हेमंत कैबिनेट के इस निर्णय से उन्हें जबरदस्त फायदा होता नजर आ रहा है.

इसकी बड़ी वजह यह है कि लगभग पूरे प्रमंडल की कुल आबादी का लगभग 75% जनसंख्या

1932 के दायरे में आ जाएगी. शायद यही वजह है संथाल के किसी भी जिले में

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के इस निर्णय के बाद विरोध में कहीं कोई प्रदर्शन नहीं हुआ.

दुमका सांसद सुनील सोरेन कहते हैं मैं भी इसके विरोध में नहीं हूं पर

यह लोगों को दिग्भ्रमित करने के लिए लाया गया है.

संथाल में 18 विधानसभा और 3 लोकसभा सीट

संथाल क्षेत्र के 18 विधानसभा सीट में 7 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व है.

बता दें कि इन सभी 7 सीटों पर वर्तमान समय में झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा है.

वहीं 3 लोकसभा सीट में से 2 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व है.

हालांकि इसमें दो पर भाजपा और एक पर झामुमो का कब्जा है.

विधानसभा सीट में 35 % और लोकसभा में 66% सीट आदिवासियों के लिए सुरक्षित है.

पूरे संथाल क्षेत्र में जो भी आदिवासी समाज के लोग हैं लगभग सभी 1932 के खतियान धारी हैं.

इसमें संथाल और पहाड़िया समुदाय के आदिवासी हैं.

एक बड़ी आबादी 1932 खतियान धारी

संथाल क्षेत्र में 1932 के खतियान के संबंध में दुमका के प्रसिद्ध इतिहासकार और

संथाल परगना महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य सुरेंद्र झा कहते हैं की एक बड़ी आबादी 1932 खतियान धारी है.

यहां पहाड़िया समुदाय तो सदियों से बसे हुए हैं लेकिन जहां तक संथाल समाज की बात है

तो वह भी 1793 के से 1820 के बीच यहां आए संथाल हूल के बाद अंग्रेजों ने

इस क्षेत्र में अपने प्रशासन को मजबूत करने के लिए 1855 में संथाल परगना को जिला बनाया.

1872 में संथाल परगना रेगुलेशन एक्ट पारित हुआ.

इसी में यह निर्णय लिया गया की भूमि का सर्वे सेटलमेंट होगा.

1872 से ओल्ड सर्वे सेटलमेंट शुरू हुआ जो 1884 तक चला.

उसके बाद 1908 में मेगपर्सन सर्वे सेटेलमेंट हुआ. संथाल क्षेत्र में 1932 जो सर्वे सेटेलमेंट हुआ उसे डेंजर सर्वे सेटेलमेंट कहा जाता है. वर्तमान में 1932 के इसी सेटलमेंट को स्थानीयता का आधार माना गया है.

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक

1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता लागू करने की घोषणा का संथाल परगना प्रमंडल में क्या प्रभाव पड़ेगा इस पर 22 Scope न्यूज़ की टीम ने संयुक्त बिहार सरकार के पूर्व मंत्री कमलाकांत सिन्हा से बात की. उन्होंने बताया इस क्षेत्र में आदिवासी और मूलवासी 1932 के खतियान धारी हैं जिसकी आबादी लगभग 75% है ऐसे में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 1932 का जो निर्णय लिया है उसका व्यापक प्रभाव संथाल क्षेत्र में पड़ेगा राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं इसका लाभ झारखंड मुक्ति मोर्चा को होता आया है और आगे भी होता रहेगा.

1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता नीति अगर यहां के आदिवासियों और मूलवासियों को समझ में आ जाता है तो निश्चित रूप से झामुमो और उनके सहयोगी दलों को काफी लाभ मिलेगा. वही बिहार सरकार के पूर्व मंत्री कमलाकांत सिन्हा जो पोड़ैयाहाट विधानसभा विधायक रहे हैं. वह कहते हैं 1932 का खतियान तो यहां के अधिकांश लोगों के पास है पर यह लागू हो पाएगा या नहीं इस पर संशय की स्थिति है.

क्या कहते हैं सांसद सुनील सोरेन

1932 के आधार पर स्थानीयता को लेकर दुमका लोकसभा सीट से भाजपा सांसद सुनील सोरेन कहते हैं कि मैं भी इसका विरोधी नहीं हूं, लेकिन मुख्यमंत्री ने लोगों को दिग्भ्रमित करने के लिए यह घोषणा की है. ऐसा प्रयास काफी पहले भी बाबूलाल मरांडी के द्वारा हुआ था, जो धरातल पर नहीं उतरा. वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी जानते हैं इसका अंजाम क्या होगा.

1932 खतियान: बड़ी आबादी होगी लाभान्वित

इस तरह देख रहे हैं की पूरे संथाल परगना प्रमंडल की बड़ी आबादी 1932 खतियान धारी है. अगर इसके आधार पर स्थानीयता धरातल पर उतर जाती है तो इस क्षेत्र के लोग काफी लाभाविन्त होंगे. हेमंत कैबिनेट के डिसीजन के बाद पूरे झारखंड प्रदेश में लोगों को नाचते गाते तो देखा जा सकता है पर एक भी विरोध प्रदर्शन या रैली नहीं देखा गया.

रिपोर्ट : आशीष बर्नवाल

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