रांचीः झारखंड मुक्ति मोर्चा ने एक बार फिर से सरना धर्म कोड का मुद्दा उठाया है। JMM के केंद्रीय महासचिव सह प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि इस बार का सरहुल एक विशिष्ट रूप लेकर सामने आया लाखों आदिवासी राँची के सड़कों पर प्रकृति के साथ हो रहे पूंजीपतियों के द्वारा छेड़छाड़, प्रकृति को नष्ट करने की जो नीति केंद्र सरकार की बनी उसपर अपना आक्रोश और अपना व्यथा दोनों व्यक्त किया।
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आदिवासी आखिर जाएंगे तो जाएंगे कहां
आदिवासियों को उजाड़ने और प्रकृति को समाप्त कर देने के लिए फॉरेस्ट राइट एक्ट में बदलाव किए गए, माइनिंग के लिए प्रकृति को खत्म करने के लिए जो कानून पारित किए गए। कोल बेअरिंग एक्ट के तहत, उसके खिलाफ एक रोष था। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार के नीति के बारे में भ्रम फैलाया गया, उसपर अपनी राय दी। लेकिन उससे पहले खेला हो गया।
आदिवासी है तो प्रकृति है
हंसदेवा में अम्बानी घुस गया और पेड़ों को काटा जा रहा है और यही लड़ाई आदिवासी समुदाय कर रहे हैं। आदिवासी है तो प्रकृति है, आदिवासी है तो जल, जंगल, जमीन और जानवर है। श्रिष्टि के मूल तत्व को समाप्त करने के लिए भाजपा की साजिश कल दिखा। लोगो में जो चेतना है वो दिखा।
उन्होंने कहा कि इस देश में हिन्दू, मुश्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध समेत अन्य धर्म है तो फिर आदिवासी धर्म कहां गया? सरना धर्म कोड को हमलोगों ने विधानसभा से ध्वनि मत से पारित करवा कर राजभवन भेजा। केंद्र सरकार की आदिवासियों के खिलाफ ऐसी कौन सी चाहत और सोच है जो विधेयक को लौटा दिया जाता है।
करोड़ों आदिवासियों का आक्रोश सामने आया
उन्होंने हेमन्त सोरेन के ऊपर निकाली गई एक सरहुल झांकी पर चुनाव आयोग के कार्रवाई पर भी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि जो झांकी निकाली गई थी वो आदिवासियों का आक्रोश है वो राजनीति दल के द्वारा दी गयी वक्तव्य नहीं है, वो स्वाभाविक तौर पर यहां के करोड़ों आदिवासियों का आक्रोश सामने आया।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति क्या अपना आक्रोश भी व्यक्त नहीं कर सकता? इसका मतलब ये होगा कि जब राजनीतिक कार्यक्रम होगा तो हम भाषण भी नहीं देंगे।
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भाजपा को बताना चाहिए कि आदिवासियों का धर्म कोड कब मिलेगा। जंगल मिटाया जा रहा है आदिवासी आखिर जाएंगे तो जाएंगे कहां। मामले पर सुप्रीम कॉर्ट का रोक था लेकिन निर्मला सीतारमन ने आदेश दिया जिससे 356 करोड़ भाजपा के एकाउंट में चला गया।