नालंदा : नव नालंदा महाविहार में गुरु पद्मसंभव के जीवन व विरासत पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर द्वारा किया गया। इंटरनेशनल बुद्धिस्ट कान्फेडरेशन नई दिल्ली व नव नालंदा महाविहार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में दुनियाभर से प्रख्यात विद्वान, भिक्षु और गणमान्य शामिल हुए हैं। सम्मेलन का उद्देश्य प्राचीन नालंदा महाविहार (विश्वविद्यालय) के आचार्य गुरु पद्मसंभव के गहन प्रभाव पर चर्चा करना है, जो 8वीं शताब्दी के बौद्ध गुरु थे, जिन्हें तिब्बत और पूरे हिमालयी क्षेत्रों में बौद्ध धर्म के प्रसार में उनकी भूमिका के लिए ‘दूसरे बुद्ध’ के रूप में व्यापक रूप से सम्मानित किया जाता है। इस अवसर पर राज्यपाल ने एक पाली हिंदी शब्दकोश का भी लोकार्पण किया।
राज्यपाल का स्वागत आईबीसी के महासचिव, शरत्से खैसुर जंगचुप चोएडेन रिनपोछे द्वारा किया गया। राज्यपाल के कहा कि मां भारती ने समय समय पर विश्व को अपना एक पुत्र दिया है। बुद्ध के बाद गुरु पद्मसंभव ने उनके परंपरा को आगे बढाने का काम किया है। उन्होंने वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए कहा कि बौद्ध विरासत व विचारों की प्रासंगिकता आज पहले से और ज्यादा बढ़ गई है। जहां विश्व युद्ध की स्थितियों में जा रहा, वहां हम शांति के उपाशक के रूप में विश्व का पथ प्रदर्शित कर सकते है।
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गुरु पद्मसंभव के विचारों पर विशेष प्रकाश डालते हुए उन्होने कहा कि उनके विचारों को हमें मिथक कहने से बचना चाहिए। वह मिथक नहीं वास्तविकता है जिसे महसूस करने की जरूरत है, जिसे महसूस कर आगे बढ़ाने की जरूरत है। बस जरूरत है हमें दृढ़संकल्प व निष्ठा के साथ उनके विचारों को आगे बढ़ाने की। सत्र का समापन नव नालंदा महाविहार के कुलपति प्रोफेसर डॉ. राजेश रंजन द्वारा दिए गए धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ। कार्यक्रम में संपूर्ण भारत के अतिरिक्त रूस, श्रीलंका, भूटान, नेपाल और म्यांमार इत्यादि देशों के दर्जनों बौद्ध भिक्षु, शिक्षाविद व प्रतिनिधि शामिल है।
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राजा कुमार की रिपोर्ट