पाकुड़: झारखंड के संताल परगना प्रमंडल के पाकुड़ जिले का लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र पिछले 44 वर्षों से झामुमो (JMM) का गढ़ बना हुआ है। इस क्षेत्र में एक ही परिवार का राज है, जिसने अपने राजनीतिक प्रभाव के चलते स्थानीय लोगों के मुद्दों को हमेशा नजरअंदाज किया है। हालांकि, इस बार चुनावी माहौल में कुछ अलग दिखाई दे रहा है। बीजेपी ने यहां की राजनीतिक स्थिति को भेदने के लिए एक रणनीति तैयार की है।
लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र में झामुमो के खिलाफ राजनीतिक चुनौती देना कोई आसान कार्य नहीं रहा। 1977 में साइमन मरांडी ने बतौर निर्दलीय जीत हासिल की और फिर झामुमो का हिस्सा बन गए। उनके बाद उनके परिवार के सदस्य, विशेषकर उनके बेटे दिनेश विलियम मरांडी, ने लगातार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। उनके प्रभाव और क्षेत्र में आदिवासी समुदाय का मजबूत समर्थन, जो लगभग 73% है, ने इस सीट को झामुमो का अभेद दुर्ग बना दिया है।
हालांकि, इस बार बीजेपी इस चक्रव्यूह को भेदने के लिए नए तरीकों को अपना रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित महाबरों का सहारा लेते हुए, बीजेपी ने स्थानीय मुद्दों को उठाने की योजना बनाई है। जल, स्वास्थ्य, और शिक्षा जैसे मूलभूत विषयों पर ध्यान केंद्रित कर, बीजेपी ने विकास की एक नई दिशा का संकेत दिया है। इसके अलावा, पार्टी ने उन मुद्दों को भी उठाया है जो पिछले वर्षों में उपेक्षित रहे हैं।
स्थानीय राजनीति में परिवर्तन लाने के लिए बीजेपी ने रणनीतिक ढंग से आदिवासी और मुस्लिम समुदायों के बीच संवाद स्थापित करने की कोशिश की है। चुनावी रैलियों में, बीजेपी ने संताल परगना के विकास के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है। स्थानीय विकास योजनाओं के साथ-साथ रोजगार सृजन के वादे ने भी इस चुनाव में एक नया उत्साह भरा है।
लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र में झामुमो की निरंतरता को चुनौती देना बीजेपी के लिए एक कठिन कार्य है, लेकिन उनके द्वारा उठाए गए कदम इस बात का संकेत हैं कि वे इस गढ़ में अपने दावों को मज़बूत करने का प्रयास कर रहे हैं। अब देखना यह है कि क्या ग्रामीण समुदाय उनकी योजनाओं को अपनाएगा, या फिर पारंपरिक झामुमो के प्रति अपनी निष्ठा को बनाए रखेगा। चुनाव परिणाम इस क्षेत्र की राजनीति के भविष्य को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।