रांची: झारखंड में जमीन और फ्लैट के म्यूटेशन (दाखिल-खारिज) की समस्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। रजिस्ट्री के बाद म्यूटेशन के लिए लोग अंचल कार्यालयों के चक्कर काटने को मजबूर हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2023 में लंबित म्यूटेशन के मामलों की संख्या 74,090 थी, जो 17 दिसंबर 2023 तक बढ़कर 78,599 हो गई। मात्र 10 महीनों में 4,509 नए मामले जुड़ गए हैं।
वर्षों पुरानी समस्या, सरकार के प्रयास नाकाफी
म्यूटेशन में देरी की समस्या नई नहीं है। इसे हल करने के उद्देश्य से सरकार ने 1 दिसंबर 2022 को सुओ मोटो म्यूटेशन व्यवस्था लागू की थी। इस व्यवस्था के तहत रजिस्ट्री के तुरंत बाद ऑनलाइन म्यूटेशन आवेदन संबंधित अंचल कार्यालय भेजा जाता है। सीओ को निर्देश दिया गया कि वे 30 दिनों के भीतर म्यूटेशन प्रक्रिया पूरी करें। किसी आपत्ति की स्थिति में सीओ को संबंधित रैयत को नोटिस जारी करना होता है। हालांकि, यह प्रणाली भी प्रभावी साबित नहीं हुई और लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
म्यूटेशन में देरी की तीन बड़ी वजहें
- रिकॉर्ड का डिजिटल न होना:
खतियान और पंजी-II के दस्तावेज पूरी तरह से वेबसाइट पर अपलोड नहीं किए गए हैं। पुराने रिकॉर्ड कई जगहों पर फटे या मिसप्रिंट हैं, जिससे प्रक्रिया बाधित होती है। - ऑनलाइन सिस्टम की विफलता और भ्रष्टाचार:
ऑनलाइन प्रक्रिया में बार-बार रुकावट आती है। इसके अलावा, घूसखोरी की समस्या भी गहरी है। घूस देने वाले का म्यूटेशन समय पर हो जाता है, जबकि बाकी लोग परेशान होते रहते हैं। - सीएनटी एक्ट की अड़चन:
आदिवासी जमीनों पर सीएनटी एक्ट लागू होने के कारण समस्याएं बढ़ रही हैं। कई आदिवासी जमीनें गैर-आदिवासियों को बेची गईं, फिर उन्हें कई बार आगे बेचा गया। सरकारी रिकॉर्ड में ऐसी जमीनें अभी भी आदिवासी प्रकृति की ही दिखती हैं, जिससे म्यूटेशन प्रक्रिया अटक जाती है।
समाधान की तलाश में सरकार
अब इस गंभीर समस्या को हल करने के लिए भू-राजस्व मंत्री दीपक बिरुआ शनिवार को विभाग की समीक्षा करेंगे। उम्मीद है कि बैठक में म्यूटेशन की समस्या को सुलझाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे।
लोगों को सरकार से उम्मीद है कि जल्द ही इस समस्या का समाधान किया जाएगा, ताकि जमीन और फ्लैट के मालिकों को उनके हक के लिए दर-दर भटकना न पड़े।