Ranchi–अलग झारखंड राज्य की लड़ाई को शिबू सोरेन के संघर्ष की गाथा कहा जा सकता है. शिबू सोरेन की जिन्दगी की शुरुआत महाजनी प्रथा के खिलाफ संघर्ष से हुई, जो बाद में अलग झारखंड राज्य के संघर्ष में तब्दील हो गई. इस संघर्ष में उनके साथी रहे बिनोद बिहारी महतो और डा. एके राय. इसके साथ ही हजारों जवानों ने अपनी कुर्बानियां दी.
सखुआ, नीम और जामुन की डाली से फैलाया जाता था संदेश
इस आन्दोलन और उसकी दुश्वारियां को सामने लाया है झारखंड आंदोलन के समय दिशोम गुरु के साथी रहे लखन उरांव ने. लखन उरांव बताते हैं कि सखुआ, नीम और जामुन की डाली से झारखंड आंदोलन की बैठकों की जानकारी एक स्थान से दूसरे स्थान पर दी जाती थी. इसके लिए ईट-बालू ले जाने वाले ट्रकों का इस्तेमाल किया जाता था. जब शिबू सोरेन के नाम पर बॉडी वारंट जारी कर दिया गया तो लखन और उनके आन्दोलनकारियों ने दिशोम गुरु जंगल में सुरक्षित ठिकाने पर ले गएं. इस दौरान पुलिस उनकी जान के पीछे पड़ी थी. पुलिस ने अपनी हर कोशिश कर ली पर लखन उरांव और दूसरे आन्दोलनकारियों ने अपने अंतिम दम तक दिशम गुरु को सुरक्षित रखा.
लखन उरांव नहीं लेते झारखंड आन्दोलन का पेन्शन
लखन उरांव को आज पीड़ा इस बात की है कि झारखंड गठन के बाद झारखंड आन्दोलनकारियों के लिए घोषित किया गया पेन्शन आन्दोलनकारियों को नहीं मिल सका. जिन लोगों ने कभी संघर्ष नहीं किया, आन्दोलन में कोई कुर्बानी नहीं दी , उन्हे तो पेन्शन दे दिया गया लेकिन जिन्होने अपनी शहादत दी, संघर्ष किया, बेवसी और पीड़ा को झेला आज उन्हे भूला दिया गया.
लखन उरांव कहते हैं कि जब तक सभी वास्तविक आन्दोलनकारियों को पेन्शन नहीं दिया जाता तब तक वे अपना पेन्शन नहीं लेंगे.