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Cover Up : रूपया बोले, तो सच भी डोले

रांची: Cover Up – घटना घटी। दो ज़िंदगियाँ चली गईं। कुछ और लोग अस्पताल की शैय्या पर पड़े दर्द से कराह रहे हैं। पर हाय रे सिस्टम! इसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। सरकारी फाइलों में यह महज़ एक और ‘दुर्घटना’ बनकर रह जाएगी।

हाइमास्ट लाइट गिरा, लोग दबे, टोल कर्मी भागे, प्रशासन सोता रहा और मंत्रीजी ‘कड़े निर्देश’ देकर फुर्सत पा गए। जब तक जनता सड़क पर उतरकर हंगामा न करे, तब तक सरकारी तंत्र कान में तेल डालकर सोया रहता है। पर यह भी उतना ही सच है कि “रूपया बड़ा, रिश्ते छोटे।” आम आदमी की ज़िंदगी की क़ीमत क्या है? जितना मुआवजा सरकार तय कर दे!

Cover Up :

अब जरा देखिए, “जिसकी थैली भारी, उसकी दुनिया सारी।” यह टोल प्लाजा हर दिन लाखों की वसूली करता है। कारें गुजरती हैं, पैसा उगाही होती है, पर रखरखाव? मेंटेनेंस? वो कौन कराये? जब तक हादसा न हो, तब तक मेंटेनेंस की जरूरत किसे? और जब हादसा हो जाए, तब? तब चार सदस्यीय कमेटी बनती है, जो जांच करेगी, रिपोर्ट सौंपेगी, और… और फिर? फिर सब ठंडे बस्ते में चला जाएगा।

Cover Up : क्योंकि “रूपया बोले, तो सच भी डोले।”

टोल प्लाजा से करोड़ों की उगाही करने वाली कंपनियों को कोई रोकने-टोकने वाला नहीं। एनएचएआई के बड़े अधिकारी वातानुकूलित कमरों में बैठकर कागज़ों पर दस्तखत करते हैं। कोई यह नहीं पूछता कि जो लाइट पोल गिरा, उसकी गुणवत्ता क्या थी? इसे लगाने में किसका कितना ‘इंटरस्ट’ था? पर हां, हादसे के बाद बड़े-बड़े अफसर ‘गंभीरता’ दिखाने के लिए कैमरे के सामने खड़े हो जाते हैं। मंत्रीजी भी आते हैं, नाराजगी जताते हैं, और फिर लौट जाते हैं। क्योंकि “रूपया नचाए, दुनिया झूमे।”

Cover Up :

कहते हैं, “रूपया सबका बाप।” सरकार के भी, ठेकेदार के भी, प्रशासन के भी। इसलिए हादसों की जांच भी ऐसी होती है, जैसे किसी रसूखदार की शादी में हलवाई मिठाई गिन रहा हो—गिनकर प्लेट में रखा, और फिर निगल लिया! रिपोर्ट आएगी, फिर एक और रिपोर्ट बनेगी, फिर कुछ समय बाद यह हादसा भी पुरानी घटनाओं के कब्रिस्तान में दफना दिया जाएगा।

सवाल उठता है कि जब रोज़-रोज़ जनता से टोल वसूला जाता है, तो क्या उसकी सुरक्षा की भी कोई क़ीमत नहीं? या फिर “जिसके पास पैसा, उसकी होती जय-जयकार” का सिद्धांत यहां भी लागू होता है? अगर इस हादसे में किसी मंत्री, अफसर, या किसी धनकुबेर का कोई परिजन घायल हुआ होता, तो शायद कार्रवाई भी उतनी ही तेज़ी से होती। पर यहाँ तो मरे हुए लोग ‘आम जनता’ थे, जिनकी ज़िंदगी का मोल कुछ हजार या लाख रुपये मुआवजे से ज्यादा नहीं।

Cover Up :

इसीलिए, हे आम जनता! मत पूछो कि टोल प्लाजा का पोल क्यों गिरा, मत पूछो कि मेंटेनेंस क्यों नहीं हुआ, मत पूछो कि दोषियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती। क्योंकि यहाँ सब कुछ एक ही धुरी पर घूमता है—रूपया! और जब तक रूपया बोलेगा, सच भी डोलता रहेगा।

 

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