हजारीबाग/रांची : झारखंड में मानसून की पहली बारिश के साथ ही जंगलों की खास सौगातें बाजारों में दस्तक दे चुकी हैं। हजारीबाग की सब्जी मंडी से लेकर रांची और जमशेदपुर तक फुटका, रुगड़ा और टेकनस जैसे दुर्लभ जंगली मशरूमों की जबरदस्त मांग देखी जा रही है। स्थानीय भाषा में इन्हें ‘फुटका’, ‘चंदन फुटका’, ‘रुगड़ा’ और ‘टेकनस’ कहा जाता है। सावन के इस मौसम में इन व्यंजनों की खास मांग रहती है, खासकर उन लोगों के बीच जो इस पवित्र महीने में मांसाहार से परहेज करते हैं।
इनकी कीमतें इस बार आसमान छू रही हैं। हजारीबाग में फुटका ₹800 से ₹1200 प्रति किलो तक बिक रहा है, वहीं रांची और जमशेदपुर जैसे शहरी क्षेत्रों में इसका दाम ₹2000 से ₹3000 प्रति किलो तक पहुंच गया है। स्थानीय विक्रेताओं का कहना है कि यह मशरूम जंगल में अपने आप उगता है और इसे चुनना अत्यंत जोखिम और मेहनत भरा काम है। मशरूम चुनने वाले अक्सर रात में टॉर्च की रोशनी में जंगलों की झाड़ियों के बीच से इसे इकट्ठा करते हैं। एक व्यक्ति अधिकतम एक से डेढ़ किलो ही इकट्ठा कर पाता है।
क्या है फुटका और क्यों है खास?
फुटका, जिसे ‘रुगड़ा’ भी कहा जाता है, एक प्रकार का प्राकृतिक मशरूम है जो केवल बरसात के मौसम में उगता है। यह मुख्य रूप से चंदन फुटका (काला और सफेद प्रकार) तथा सब्जा फुटका जैसे भिन्न रूपों में मिलता है। इसका स्वाद इतना लाजवाब होता है कि लोग इसे “वेजिटेरियन मटन” भी कहते हैं। फुटका में प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है और यह धुसका, छिलका, पपड़ी, चावल और रोटी के साथ खाया जाता है। इसकी खास बात यह है कि इसका खोखला हिस्सा और गूदा दोनों खाने योग्य होते हैं।
टेकनस: झारखंड का और एक स्वादिष्ट खजाना
टेकनस नामक एक और दुर्लभ व्यंजन भी इन दिनों बाजार में धूम मचा रहा है। इसे भी जंगलों से ही लाया जाता है और इसका बाजार मूल्य ₹1600 किलो से ऊपर है। यह विशेषकर रांची और जमशेदपुर के बाजारों में उच्च दर पर बिक रहा है।
सावधानी भी जरूरी
हाई प्रोटीन और औषधीय गुणों के बावजूद जंगली मशरूम खाने से पहले सावधानी बरतनी जरूरी है। गिरिडीह जिले में हाल ही में छह लोग विषैले मशरूम खाने से बीमार पड़ गए। विशेषज्ञों की सलाह है कि बिना अनुभव या पहचान के जंगल से मशरूम चुनना खतरनाक हो सकता है। इसीलिए लोग प्रमाणित स्रोतों से ही मशरूम खरीदें।
स्थानीय विक्रेताओं की बात
हजारीबाग मंडी में फुटका बेचने वाले एक विक्रेता ने बताया, “किसान इसे रात में टॉर्च लेकर जंगल से चुनते हैं। इसमें सांप और कांटे जैसी कठिनाइयां होती हैं, एक दिन में मुश्किल से एक किलो इकट्ठा होता है। यही कारण है कि इसका दाम अधिक होता है।”
सावन के स्वाद में झारखंड की पहचान
सावन के महीने में जब कई लोग नॉनवेज से परहेज करते हैं, तब फुटका और रुगड़ा जैसे व्यंजन झारखंडियों की थाली का स्वाद और पोषण दोनों बढ़ा देते हैं। ये व्यंजन ना सिर्फ स्वास्थ्यवर्धक हैं बल्कि झारखंड की आदिवासी और ग्रामीण परंपरा से भी गहराई से जुड़े हुए हैं।