Tuesday, October 14, 2025
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Big Breaking : सीएम नीतीश को बड़ा झटका, भागलपुर से जेडीयू सांसद अजय मंडल ने पार्टी को कहा अलविदा

Big Breaking : सीएम नीतीश को बड़ा झटका, भागलपुर से जेडीयू सांसद अजय मंडल ने पार्टी को कहा अलविदा बिहार के सत्ता के गलियारे से एक बड़ी खबर आ रही है । भागलपुर से जेडीयू सांसद अजय मंडल ने पार्टी को कहा अलविदा कहा है और पार्टी नेतृत्व को अपना इस्तीफा भेंज दिया है । इस्तीपे की वजह जेडीयू विधायक गोपाल मंडल से उनकी लड़ाई भी मानी जा रही है।पटना : बिहार चुनाव में सीट शेयरिंग को लेकर मचे घमासान के बीचे चौकाने वाली खबर है । भागलपूर से जेडीयू के सांसद मंडल ने इस्तीफा दे दिया है और पार्टी...

NDA में सीट शेयरिंग पर जारी गतिरोध समाप्त ! चिराग पासवान और उपेन्द्र कुशवाहा ने ट्वीट कर दी जानकारी

NDA में सीट शेयरिंग पर जारी गतिरोध समाप्त ! चिराग पासवान और उपेन्द्र कुशवाहा ने ट्वीट कर दी जानकारी पटना : बिहार NDA में सीट शेयरिंग को लेकर जारी गतिरोध समाप्त हो गया है लोजपा (आर) नेता चिराग पासवान और रालोमो नेता उपेन्द्र कुशवाहा ने ट्वीट कर जानकारी दी है ।लोजपा (आर ) नेता और केन्द्रीय मंत्री चिराग पासवान ने ट्वीट कर लिखा है --एनडीए के अंदर सीट का संख्या सौहार्दपूर्ण बातचीत में पूरा हो चुका है । कौन दल किस सीट से लड़ेगा यह चर्चा भी सकारात्मक बातचीत के साथ अंतिम दौर में है । मोदी जी और नीतीश जी...

NH-2 Accident News: गोरहर थाना के पास पलटा Palm Oil Tanker, रिफाइन समझ लूट ले गए ग्रामीण

NH-2 गोरहर थाना के पास देर रात Palm Oil लदा टैंकर पलटा। ग्रामीणों ने रिफाइन समझकर तेल लूटा, सड़क जाम और पुलिस ने संभाली स्थिति।NH-2 Accident News बरकट्ठा: राष्ट्रीय राजमार्ग NH-2 पर सोमवार की रात बड़ा हादसा हो गया। गोरहर थाना के समीप Palm Oil लदा एक टैंकर अनियंत्रित होकर सड़क किनारे पलट गया। टैंकर में कच्चा Palm Oil भरा हुआ था, लेकिन ग्रामीणों ने इसे खाने वाला रिफाइंड ऑयल समझ लिया और जो जिस बर्तन में सका, तेल भरकर ले जाने लगे।NH-2 Accident News रात करीब 2 बजे हुए इस हादसे के बाद देखते ही देखते दर्जनों लोग मौके...

दलमा की टूटी सड़कें और टूटी उम्मीदें: पर्यटन राजस्व के बावजूद जर्जर रास्तों से जूझते श्रद्धालु और ग्रामीण

सरायकेला: दलमा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी की ओर जाने वाली सड़कें आज ‘देख तमाशा देख’ वाली कहावत को चरितार्थ कर रही हैं। दलमा चौक से माकुलकोचा (2 किमी), पिंडराबेड़ा (13 किमी) और दलमा टॉप (17 किमी) तक जाने वाले रास्तों की हालत इतनी बदतर हो चुकी है कि कीचड़ और गड्ढों से होकर गुजरना हर किसी के लिए जोखिम भरा हो गया है। खासकर सावन महीने में जब दलमा बूढ़ा बाबा के मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, तब यह समस्या और गंभीर हो जाती है।

सड़क की दुर्दशा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जगह-जगह गड्ढों में भरा पानी बाइक सवारों के लिए मौत का जाल बन गया है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि प्रतिदिन किसी न किसी के गिरने की घटना होती है। नीमडीह थाना क्षेत्र के चालियामा, फाड़ेगा, बांधडीह और बोड़ाम प्रखंड के लोग इसी रास्ते से आते-जाते हैं और हमेशा खतरे में रहते हैं।

दलमा वाइल्डलाइफ सेंचुरी हर महीने करीब 2 लाख रुपये से अधिक का राजस्व देती है। पर्यटन शुल्क में वन विभाग द्वारा पर्यटकों से सफारी के लिए 2800 रुपये, म्यूजियम प्रवेश के लिए 100 रुपये, निजी वाहन के लिए 600 रुपये और प्रति व्यक्ति 10 रुपये लिए जाते हैं। इसके बावजूद आधारभूत सुविधाओं का घोर अभाव है।

माकुलकोचा चेक नाका पर बना 70 लाख रुपये की लागत वाला सूचना कियोस्क सह स्मारिका दुकान अब जर्जर हालत में है। लकड़ी से बना यह भवन अब गिरने की कगार पर है और हाल ही में एक पर्यटक का पैर लकड़ी के फर्श में फंस गया। अब जाकर वहां जाली लगाई गई है, लेकिन लकड़ी के पटरे जगह-जगह से टूट चुके हैं।

स्थानीय आवाजें

बाबू राम सोरेन (सामाजिक कार्यकर्ता, चांडिल) ने बताया कि प्रतिदिन लोगों को दलमा जाना पड़ता है लेकिन फिसलन और कीचड़ के कारण चलना बेहद मुश्किल होता है।
वशिष्ठ सिंह और बाबूराम किस्कू ने वन एवं पर्यावरण विभाग पर आरोप लगाते हुए कहा कि दलमा को इको-सेंसेटिव जोन घोषित किए जाने के बावजूद क्षेत्र में कोई विकास नहीं हुआ। आदिवासी समुदाय के लोगों को डराया-धमकाया जा रहा है, लेकिन सड़क और बुनियादी सुविधाएं जस की तस हैं।

सावन में श्रद्धालुओं की उमड़ती भीड़

सावन महीना आने वाला है और इस दौरान पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड के कोने-कोने से हज़ारों श्रद्धालु दलमा बूढ़ा बाबा के गुफा मंदिर में दर्शन और जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। ऐसे में जर्जर सड़कों की स्थिति श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता पैदा कर रही है।

गज परियोजना और टूरिज्म का पतन

स्थानीय लोगों ने बताया कि कुछ साल पहले तक दलमा के जलाशयों और जंगलों में हाथियों के झुंड देखे जाते थे, जो अब पलायन कर चुके हैं। केंद्र और राज्य सरकार द्वारा गज परियोजना के तहत हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन न हाथी बचे हैं, न जंगल की रौनक।

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