पटना का गांधी मैदान सोमवार को राजनीतिक अखाड़ा बनेगा। राजा जी का दरबार, तेजस्वी की गद्दी की चाह और रींग मास्टर की सीटी जनता का ध्यान खींचेंगे।
रांची: पटना का गांधी मैदान सोमवार को सिर्फ मैदान नहीं रहेगा, वह अखाड़ा भी बनेगा और सर्कस भी। अखाड़ा इसलिए क्योंकि विपक्षी पहलवान अपनी-अपनी ताकत आज़माने उतरेंगे, और सर्कस इसलिए क्योंकि तमाशा भी वैसा ही होगा—हर किसी का अलग करतब, हर किसी का अलग अंदाज़।
सबसे पहले बात राजा जी की। पड़ोसी सूबे से खास अंदाज़ में कदम रखते हैं। जहां जाते हैं, वहां दरबार सजाते हैं। भाषण ऐसा देते हैं कि लगे मानो जनता उनके राज्य की प्रजा हो और मंच उनका राजमहल। इस बार पटना में भी दरबार लगने वाला है। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां राजा जी की प्रजा वोटर है, और उनके दरबारियों में विपक्षी दलों के बड़े-बड़े पहलवान शामिल हैं।
इधर तेजस्वी बाबू हैं। राजनीति में खुद को भावी शहजादा मानते हैं। लेकिन उनकी कहानी बड़ी दिलचस्प है। गद्दी पर बैठने का सपना तो देखते हैं, मगर सामने हमेशा चाचा नीतीश आ खड़े होते हैं। अब भला भतीजा गद्दी की ओर देखे और चाचा बीच में न आएं, ऐसा हो ही नहीं सकता। तेजस्वी की राजनीति में सबसे वफादार साथी है—गुस्सा। यह गुस्सा चाचा पर इतना स्थायी भाव बन चुका है कि छुट्टी पर जाने का नाम ही नहीं लेता।
Key Highlights
- पटना का गांधी मैदान सोमवार को विपक्षी दलों की शक्ति प्रदर्शन का अखाड़ा बनेगा।
- राहुल गांधी “रींग मास्टर” की भूमिका में सभी नेताओं को एक मंच पर लाने की कोशिश करेंगे।
- तेजस्वी यादव की राजनीति में “गुस्सा” अहम साथी बना हुआ है, चाचा नीतीश पर सीधा निशाना साधने का अंदाज़ कायम।
- झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत कई बड़े नेता इस रैली में शामिल होंगे।
- बीजेपी ने इस रैली को “निरर्थक नाटक” बताया और दावा किया कि असली जीत एनडीए की होगी।
- जनता के मन में सवाल—क्या विपक्ष लोकतंत्र बचा रहा है या सिर्फ गद्दी की लड़ाई लड़ रहा है?
- मीडिया इस पूरे आयोजन को सबसे बड़ा मंचीय तमाशा बनाकर दिखाने की तैयारी में है।
और फिर हैं रींग मास्टर राहुल जी। उनकी भूमिका सबसे पेचीदा है। काम यह है कि सब पहलवानों को एक ही रस्सी में बांधकर रखना। मगर राजनीति का यह अखाड़ा इतना बड़ा है कि यहां हर पहलवान की अपनी रणनीति और अपनी मंशा है। कोई गद्दी चाहता है, कोई ताकत दिखाना चाहता है, तो कोई बस अपने अस्तित्व की पुष्टि करना चाहता है। रींग मास्टर चाहे जितनी सीटी बजा लें, हर कोई अपने-अपने करतब दिखाने से बाज़ नहीं आने वाला।
बीजेपी बाहर खड़ी तमाशबीन बनी हुई है। वह विपक्ष की इस कवायद को “निरर्थक नाटक” बता रही है। उनका कहना है कि ये सब अखाड़े में कुश्ती ही तो कर रहे हैं, लेकिन असली ट्रॉफी एनडीए की झोली में ही गिरेगी। विपक्ष पलटवार कर कह रहा है कि ये लोकतंत्र बचाने की लड़ाई है। जनता बीच में खड़ी सोच रही है—“भाई, ये लोकतंत्र बचा रहे हैं या अपनी-अपनी गद्दी की बोली लगा रहे हैं?”
कल गांधी मैदान में असली नज़ारा देखने लायक होगा। जनता दर्शक दीर्घा में बैठेगी, नेता पहलवानों की तरह अपने-अपने दांव पेंच दिखाएंगे। मीडिया इस पूरे खेल का सबसे बड़ा ढोलकिया बनेगा, जो हर दांव को ताली और शोर के साथ बढ़ा-चढ़ाकर सुनाएगा।
अब देखना है कि राजा जी का दरबार, तेजस्वी बाबू की गद्दी की भूख और रींग मास्टर की सीटी मिलकर जनता को कितना लुभा पाते हैं। कहीं ऐसा न हो कि पहलवान आपस में कुश्ती लड़ें और दर्शक बोर होकर घर लौट जाएं।
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