बिहार-झारखंड की सीमा पर स्थित पांच विधानसभा सीटों — चकाई, कहलगांव, बेलहर, कटोरिया और मनिहारी — पर झारखंड की राजनीति और झामुमो का प्रभाव लगातार गहराता जा रहा है।
Bihar-Jharkhand Political Connection: पूर्वी बिहार और झारखंड की साझा सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत
राजमहल की पहाड़ियां केवल भौगोलिक सीमारेखा नहीं बनातीं, बल्कि बिहार और झारखंड के बीच एक सांस्कृतिक पुल का काम भी करती हैं। इन पहाड़ियों के दोनों ओर बसे जिले — कटिहार, भागलपुर, बांका और जमुई — खान-पान, बोली-भाषा, रहन-सहन और सामाजिक परंपराओं के मामले में एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं।
यहां की स्थानीय बोलियों में झारखंडी टोन साफ झलकता है, वहीं यहां के त्योहार, लोकगीत और पारंपरिक अनुष्ठान भी झारखंड की संस्कृति से मेल खाते हैं। यही कारण है कि यहां की राजनीति पर भी झारखंड का असर स्वाभाविक रूप से देखने को मिलता है।
Bihar-Jharkhand Political Connection: झारखंड की राजनीति का असर बिहार की पांच सीटों तक
पूर्वी बिहार की पांच विधानसभा सीटें — चकाई (जमुई), कहलगांव (भागलपुर), बेलहर और कटोरिया (बांका), तथा मनिहारी (कटिहार) — ऐसी हैं, जहां झारखंड की राजनीति सीधे तौर पर चुनावी समीकरणों को प्रभावित करती है।
इन क्षेत्रों में आदिवासी मतदाता न केवल संख्या में प्रभावशाली हैं, बल्कि वे मतदान के दौरान अपने सामाजिक नेतृत्व और झारखंडी संगठनों के रुख को भी गंभीरता से मानते हैं।
इनमें से कई इलाकों में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का कार्यकर्ता नेटवर्क और जनाधार वर्षों से मौजूद है, जिसने स्थानीय राजनीति में अपना असर कायम रखा है।
Key Highlights:
राजमहल की पहाड़ियां बनाती हैं बिहार-झारखंड की भौगोलिक और सांस्कृतिक सीमा।
झारखंड के दलों का प्रभाव पूर्वी बिहार की राजनीति में गहराता जा रहा है।
पांच विधानसभा क्षेत्रों में आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं।
झामुमो का इन सीटों पर पुराना चुनावी इतिहास और स्थायी उपस्थिति।
महागठबंधन झारखंडी दलों के साथ मिलकर सीमावर्ती क्षेत्रों में समीकरण साधने में जुटा।
Bihar-Jharkhand Political Connection: चकाई: झारखंडी राजनीति की मजबूत झलक
चकाई विधानसभा क्षेत्र झारखंड के देवघर और गिरिडीह जिलों से सटा है। यहां लगभग 8.4% मतदाता आदिवासी समुदाय से हैं — जो यादव (20.8%) और मुस्लिम (11.5%) के बाद तीसरा सबसे बड़ा वोट बैंक है।
चकाई में झारखंड मुक्ति मोर्चा की पैठ 2010 में साफ दिखाई दी थी, जब सुमित सिंह ने झामुमो के टिकट पर चुनाव जीतकर इतिहास रचा। उस समय उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी को मात्र 188 वोटों से हराया था।
बाद में, 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू से टिकट न मिलने पर सुमित सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और राजद उम्मीदवार सावित्री देवी को 581 वोटों से शिकस्त दी। यह परिणाम दिखाता है कि चकाई में झारखंडी राजनीति का प्रभाव अब भी बरकरार है।
Bihar-Jharkhand Political Connection: कहलगांव: झारखंड-बिहार की सीमाई राजनीति का नया केंद्र
भागलपुर जिले की कहलगांव विधानसभा सीट झारखंड के गोड्डा जिले से सटी हुई है। यहां पारिवारिक और राजनीतिक रिश्ते दोनों राज्यों की सीमाओं से परे जाते हैं।
गोड्डा के विधायक और झारखंड सरकार में राजद कोटे से मंत्री संजय प्रसाद यादव अपने बेटे रजनीश यादव को कहलगांव से आगामी चुनाव में मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं।
यह कदम झारखंड और बिहार के राजनीतिक गठजोड़ की नई बानगी मानी जा रही है। दूसरी ओर, कांग्रेस के प्रवीण सिंह कुशवाहा भी इस सीट से टिकट के प्रबल दावेदार हैं।
झारखंड में कांग्रेस कोटे से मंत्री दीपिका पांडे सिंह, जो गोड्डा की महगामा सीट से विधायक हैं, का इस इलाके में मजबूत नेटवर्क है। इसलिए कहलगांव की राजनीति अब झारखंड के नेताओं की दिलचस्पी का केंद्र बन चुकी है।
Bihar-Jharkhand Political Connection: बेलहर: झामुमो की चुनावी परंपरा जारी
बांका जिले की बेलहर विधानसभा सीट पर झामुमो ने पिछले तीन विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी उतारे हैं।
2015 में कटोरिया के पूर्व विधायक राजकिशोर प्रसाद झामुमो के टिकट पर लड़े और 10,408 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे।
इससे पहले 2010 में सुरेंद्र प्रसाद गुप्ता और 2005 में शैलेन्द्र कुमार ने झामुमो से चुनाव लड़ा था।
यह लगातार उपस्थिति दर्शाती है कि झामुमो ने बेलहर को अपनी राजनीतिक प्रयोगशाला के रूप में बनाए रखा है।
हालांकि जीत अभी तक नहीं मिली, पर पार्टी का लक्ष्य इस क्षेत्र में आदिवासी वोटरों को फिर से संगठित कर मजबूत आधार बनाना है।
Bihar-Jharkhand Political Connection: कटोरिया: झारखंड मुक्ति मोर्चा की निरंतर उपस्थिति
कटोरिया विधानसभा सीट बांका जिले की दूसरी अनुसूचित जनजाति (एसटी) आरक्षित सीट है और झामुमो यहां 1990 से लगातार चुनाव लड़ रही है।
2015 और 2020 दोनों चुनावों में अंजला हांसदा को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया। भले ही उन्हें तीसरे स्थान से आगे बढ़ने का मौका नहीं मिला, लेकिन झामुमो ने इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति कायम रखी।
इस इलाके की जनजातीय आबादी झारखंड के संथाल परगना इलाके से सांस्कृतिक रूप से जुड़ी हुई है, जिससे यहां झारखंडी नेतृत्व का प्रभाव सहज दिखता है।
Bihar-Jharkhand Political Connection:मनिहारी: झामुमो का दावा और महागठबंधन की रणनीति
कटिहार जिले की मनिहारी सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित है और झारखंड की सीमा से लगी हुई है।
यहां झामुमो ने 2015 और 2020 दोनों चुनावों में प्रत्याशी उतारे और लगातार दावा किया कि पार्टी का सीमावर्ती इलाकों में मजबूत संगठनात्मक ढांचा है।
अभी मनिहारी सीट से कांग्रेस के विधायक प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, लेकिन महागठबंधन में झामुमो इस सीट पर अपनी दावेदारी को लेकर सक्रिय है।
पार्टी का कहना है कि झारखंड सीमा से लगे आदिवासी बहुल इलाकों में उसका जनाधार अन्य दलों की तुलना में कहीं अधिक गहरा है।
Bihar-Jharkhand Political Connection: सीमावर्ती राजनीति का नया समीकरण
15 नवंबर 2024 को बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जमुई जिले के बल्लोपुर पहुंचे थे।
आचार संहिता लागू होने के बावजूद यह आयोजन राजनीतिक दृष्टि से काफी अहम माना गया।
राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे झारखंड और बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में एनडीए की जनजातीय राजनीति को साधने का प्रयास बताया था।
अब झारखंड के महागठबंधन ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाया है। बिहार की सीमावर्ती सीटों पर झारखंडी दलों को शामिल करके वह आदिवासी मतदाताओं को अपने पाले में लाने की रणनीति बना रहा है।
Bihar-Jharkhand Political Connection: बिहार की राजनीति में झारखंड का असर और गहराएगा
पूर्वी बिहार के सीमावर्ती जिलों में झारखंड का राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव आने वाले चुनावों में और बढ़ने की संभावना है।
यह केवल सीमाई संबंध नहीं, बल्कि साझा पहचान और संघर्ष की राजनीति है — जिसमें आदिवासी अस्मिता, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और जनजातीय स्वाभिमान जैसे तत्व निर्णायक बनेंगे।
झामुमो के सक्रिय होने से इन सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है और परिणाम अप्रत्याशित।
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