झारखंड में ईडी के मनी लॉन्ड्रिंग मामलों पर अभियोजन स्वीकृति अटकी। सरकार की देरी पर ईडी कोर्ट पहुंची, कई आरोपी मामले कोर्ट में लंबित।
ईडी की Prosecution Approval Pending रांची: ईडी झारखंड में मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े कई मामलों की जांच में तेजी ला रहा है। इनमें मनरेगा घोटाले की आरोपी पूर्व आईएएस पूजा सिंघल, जमीन घोटाले का मामला जिसमें डीसी रह चुके छवि रंजन आरोपी हैं, रिम्स के कर्मचारी अफसर अली, टेंडर कमीशन घोटाले से जुड़े वीरेंद्र राम और संजीव लाल जैसे नाम शामिल हैं। कई अलग-अलग मामलों में ईडी ने अपने स्तर पर अनुसंधान पूरा कर लिया है और साक्ष्य भी राज्य सरकार को दे चुकी है।
ईडी की Prosecution Approval Pending:
इसके बावजूद किसी भी मामले में अब तक अभियोजन स्वीकृति नहीं मिली। एजेंसी का कहना है कि सरकार की ओर से देरी के कारण आरोपियों के खिलाफ आगे की प्रक्रिया अटकी हुई है। ईडी ने राज्य सरकार को कई बार पत्र भेजकर अनुमति मांगी, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई सामने नहीं आई है।
Key Highlights
झारखंड में मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े आधा दर्जन से अधिक मामलों की जांच ईडी कर रही है
पूजा सिंघल, छवि रंजन, अफसर अली, वीरेंद्र राम और संजीव लाल के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति लंबित
ईडी ने साक्ष्य के साथ राज्य सरकार से अनुमति मांगी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं
कार्रवाई में देरी को देखते हुए ईडी ने कोर्ट में क्रिमिनल याचिका दायर की
चार तारीख गुजर जाने के बाद भी सरकार ने जवाब नहीं दिया
याचिका अब भी कोर्ट में लंबित
ईडी की Prosecution Approval Pending:
इसी स्थिति को देखते हुए ईडी ने अदालत में एक क्रिमिनल याचिका दायर की है। याचिका 21 नवंबर पिछले साल दाखिल की गई थी। इसमें अदालत को जानकारी दी गई है कि सरकार को आवश्यक स्वीकृति भेज दी गई है, लेकिन वह कार्रवाई नहीं कर रही। अनुरोध किया गया है कि अदालत चाहे तो इन मामलों की जांच सीबीआई या किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराए।
ईडी की Prosecution Approval Pending:
कोर्ट ने इस याचिका पर चार बार सुनवाई की, लेकिन हर बार राज्य सरकार ने अगली तिथि ले ली। न तो कोई जवाब प्रस्तुत किया और न ही कोई ठोस रुख स्पष्ट किया। इस वजह से याचिका अब भी अदालत में लंबित है और ईडी मामलों में आगे बढ़ाव रुक गया है।
ईडी की Prosecution Approval Pending:
ईडी का कहना है कि समय पर अभियोजन स्वीकृति न मिलने से गंभीर आर्थिक अपराधों में कार्रवाई की गति प्रभावित होती है, जबकि साक्ष्य स्पष्ट होने पर त्वरित कार्रवाई जरूरी है। अब आगे निर्णय क्या होगा, यह अदालत की सुनवाई और राज्य सरकार के रुख पर निर्भर करेगा।
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